मकर संक्रांति के दिन से सूर्य नहीं होता है उत्तरायण, दोनों पर्व हैं अलग-अलग

मकर संक्रांति
मकर संक्रांति

सूर्य हर माह मेष से लेकर मीन राशि में गोचर करता है इसलिए हर माह संक्रांति होती है। सूर्य के मकर में गोचर करने को मकर संक्रांति कहते हैं, लेकिन अब परंपरा और प्रचलन से यह माना जाने लगा है कि सूर्य के मकर में प्रवेश करते ही सूर्य उत्तरायण हो जाता है, जबकि इस बात को हमें अच्छे से समझने की जरूरत है कि सचाई क्या है?

मकर संक्रांति
मकर संक्रांति

दरअसल, मकर संक्रांति और उत्तरायण दो अलग-अलग खगोलीय और धार्मिक घटनाएं हैं। पंचांग के ज्ञाता जानते हैं कि हजारों वर्ष पहले मकर संक्रांति और उत्तरायण दोनों का दिन एक ही था, लेकिन अब नहीं। जैसे यह मान्यता स्थापित हो चली थी कि 14 जनवरी को ही मकर संक्रांति आती है उसी तरह यह भी मान्यता स्थापित हो चली है कि सूर्य के मकर राशि में जाने को ही उत्तरायण कहते हैं, लेकिन यह सत्य नहीं है।

दक्षिण से उत्तरी गोलार्ध की यात्रा

उत्तरायण शब्द उत्तर और अयन से मिलकर बना है जिसका अर्थ क्रमश: उत्तर दिशा और छह महीने की अवधि से है। ज्योतिष मान्यता के अनुसार यह उत्तरायण शीत अयनकाल के दिन आता है। वर्तमान में इसका पालन करना बंद कर दिया गया है जबकि भीष्म पितामह ने अपने शरीर को छोडऩे के लिए उत्तरायण अर्थात शीत अयनकाल को ही चुना था। उस वक्त माघ माह चल रहा था। सूर्यदेव 6 माह की अपनी दक्षिणी गोलार्ध की यात्रा पूर्ण करके उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश करते हैं तभी कहा जाता है कि सूर्य उत्तरायण हुआ है। मकर संक्रांति का दिन कालांतर में लगातार शीत अयनकाल से दूर होता गया और अभी भी दूर होता जा रहा है। उदाहरणार्थ वर्ष 1600 में, मकर संक्रांति 10 जनवरी को थी और वर्ष 2600 में यह 23 जनवरी की होगी।

इसके बाद वर्ष 7015 में मकर संक्रांति 23 मार्च को मनाई जाने लगेगी। उस समय भारत में गर्मी की शुरुआत रहेगी। लेकिन सूर्य का उत्तरायण होना तो तभी होता है जबकि सूर्य दक्षिणी गोलार्ध की अपनी 6 माह की यात्रा पूर्ण करके उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश करता है। उल्लेखनीय है कि इस वर्ष 2023 में 22 दिसंबर को सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में गति करेगा। अत: इस भ्रम को दूर कर लेना चाहिए कि मकर संक्रांति के दिन ही उत्तरायण पर्व मनाया जाता है। सदियों से ऐसे कई भ्रम अभी भी जारी है।

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