
वरना के आगे कुछ भी भरीज सकता है। कुछ भी के माने आडेइकट नहीं। ऐसा भी नही कि जिस का जिस पर जी आया, भर दिया। असल में यह चेतावनी है, जो फिर दोहराई जा रही है। चेतावनी के जरिए डेढ़ हूशियारों को आगाह किया जा रहा है। जगाया जा रहा है। चेताया जा रहा है। अभी भी वक्त है, जाग जाओ वरना खाली स्थान पर क्या भरीजेगा, कोई नही जानता। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
खाली स्थान भरने पर इससे पूर्व भी कई दफे चर्चा हो चुकी है। एक-दो-चार-पांच या बार-बार कर लेंगे तो कौन सा पहाड़ टूट जाएगा। हम को एक बात अब तक समझ में नही आई कि पहाड़ टूटने वाली कहावत के महावत ने भाखर-डूंगर को ही क्यूं चुना। टूटने-तोडऩे को भतेरी चीजें है। इतनी चीजें कि गिनते-गिनते केलक्यूलेटर हांफ जाए। एक-एक को गिनाणा संभव ही नहीं, नामुमकिन है मगर खास-खास को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। तोडऩा हैं तो कप-प्लेट तोड़ो। कुरसी-टेबिल तोड़ो। पत्थर तोड़ो। भांडे-बरतन तोड़ो। गमले तोड़ो। लोह-लंगर तोड़ो। तोड़ाताड़ी पर पत्रवाचन करने का मतलब ये नही कि कांच-शीशे तोडऩे ही है।
हथाईबाज ठहरे पक्के गांधीवादी। तोडफ़ोड़ से दूर। काहे को तोडऩा-काहे को फोडऩा। हां, दही-हांडी, फोडऩे की परंपरा निभानी हो तो हम-आप भी पीछे नही वरना मालिक बचाए। ऐसा भी नहीं कि हथाईपंथी हंडरेड परसेंट तोडफ़ोड़ विरोधी रहे हों। कई बार उनने इसका समर्थन भी किया है। जरूरत पड़ी तो आइंदा भी करेंगे।
उनका कहना है। उनका मानना है। उनका संदेश है कि तोडऩा ही है तो घमंड-गुस्से को तोड़ो-छोड़ो। तोडऩा ही है तो रार-ऐंठ तोड़ो-छोड़ो। तोडऩा ही है तो राग-द्वेष तोड़ो-छोड़ो। तोडऩा ही हैं तो गुमान और दुष्प्रवतियों को तोड़ो-छोड़ो। आतंकवाद और आतंकवादियों का नेटवर्क तोड़ो। देशद्रोहियों के गंदे विचारों को तोड़ो। नीचता और वाहियातपने को तोड़ो-छोड़ो। जब तोडऩे के लिए इतना कुछ है तो उनने पहाड़ को ही क्यूं चुना। इसके दो कारण हो सकते हैं-या तो कहावतकार पहाड़ प्रेमी रहा होगा या फिर विरोधी। प्रेमी इसलिए कि उसने सारी चीजों को ताक पे रख कर पहाड़ का गान किया और विरोधी इसलिए कि उसने तोड़भांग में पहाड़ को जोड़ दिया। अच्छा हुआ कि बदनाम हुए तो क्या.. नाम तो हुआ..वरना पता नहीं की हो जांदा।
बात घूम-फिर कर वरना पे आ गई। यूं कहें कि वरना पे ले आए तो ज्यादा बेहतर रहेगा। कारण ये कि हमें वापस इसी पे आना था। पहले वरना और फिर खाली स्थान पे चर्चा। बड़े-सयाने कहते हैं कि जगह चाहे कोई भी हों, खाली नही रहती। हां, महसूस जरूर होती है। कई जगह ऐसी जिन का स्थान कोई नही ले सकता। सूई की जगह सूई काम आती है और तलवार की जगह तलवार। कोई लूणा को हवाई जहाज समझ के उड़ाना चाहे तो ऐसा होना संभव नही है।
स्कूली समय में हमने हिन्दी द्वितीय की परीक्षा में भतेरे खाली स्थान भरे। ऑब्जेक्टिव मे सवाल आते-खाली स्थानों की पूर्ति करो। परीक्षार्थियों को करनी पडती। जो सवाल आते वो तो फटाफट कर लेते उसके बाद यहां-वहां ताकाझांकी। कभी कोई हूशियार विद्यार्थी बता देता कभी कोई सर मदद कर देते। कुल जमा काम हो जाता। हम को मेरिट मेे तो आना नही था-ना वैसे करम किए, पासिंग माक्र्स आ जाते वही बहुत। घरवाले उसी में राजी। ग्रेस से पास होने पर भी मिठाईयां बंटती थी। सप्लीमेंटरी आने पर मिर्चीबड़ा और ब्रेड पार्टी। कपलीमेंटरी आने पर दाल के बड़े। कुल जमा टेम निकल गया। वो समय बड़ा आसान था। सुनहरा था। अपणायत और सहयोग से छिलमिछल था। जगू काका घर से पकड़ के ले गए और सरकारी नौकरी पे चढा दिया वरना आज के हाल-हूलिए देख लो। यहां भी वरना आ गया। वरना के पीछे एक चेतावनी छुपी नजर आती है।
बाजवक्त चेतावनी सुरमिन्नी साबित हो चुकी है। पति ने ऊंची आवाज में पत्नी से कहा-‘पांच मिनट में नाश्ता तैयार हो जाना चाहिए, वरना..। उसकी चेतावनी पूरी होती इससे पहले पत्नी ने जवाबी फायर ठोक दिया- वरना क्या कर लोगे? बिना नाश्ता किए चला जाऊंगा। पति ने खुद की हवा निकालते हुए जवाब दिया। पर हथाईबाज जो चेतावनी दे रहे हैं, वो खासी गंभीर है। चेत गए तो सब के लिए ठीक रहेगा, वरना खाली स्थान मे क्या भरिजेगा, कोई नहीं जानता।
देश-प्रदेश में कोरोना का कहर थमा नहीं है। थमना तो दूर और ज्यादा बरप रहा है। शासन-प्रशासन के इंतजाम ओछे पड़ते जा रहे हैं तिस पे लोग लापरवाहियां बरतने से बाज नहीं आ रहे। उन्हें ना तो मास्क की चिंता ना देह दूरी की फिकर। बाजारों में भीड़ उमड़ रही है। फिजिकल डिसटेंस की चिंदिया बिखर रही है। किसी को फिकर नहीं, जब कि जिम्मेदार लोग समझा-समझा के थक गए। हथाईबाज भी समझा चुके हैं। कई बार समझा चुके हैं। लापरवाही ना बरतने की बात कह चुके हैं। सचेत-सतर्क और सावधान रहने की अपील कर चुके हैं। एक बार हाथ जोड़ के प्रार्थना। एक बार फिर गुजारिश। एक बार फिर आगाह। एक बार फिर फिर चेतावनी कि जाग जाओ..वरना परिणाम घातक हो सकते हैं। आप हमारे लिए बहुत कीमती हैं। सो प्लीज सावधान रहें। सचेत रहें। सरकारी गाइड लाइन की पालना करें, वरना…।