जागो, लोगों जागो….

जो हुआ, सब ने देखा। जो हो रहा हैं, उसे भी सब देख रहे हैं। उस दौरान हम ने क्या खोया और कितना खोया उसे वापस नहीं पाया जा सकता मगर अब भी समय है नए सिरे से तैयार होकर खड़े होने का। सजग-सतर्क और सावचेत होने का। समय दिन-ब-दिन खराब होता दिख रहा है। आने वाले कल भयानक और भयंकर होने का संदेश दे रहा है। इसके बावजूद भी हम नहीं चेते तो और कितना खो सकते है, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। शहर की सभी हथाइयों पर आज उसी के चर्चे हो रहे है।


सजग-सतर्क और सावचेत होने के आह्वान के पीछे लापरवाही-बेपरवाही और डेढ़ हूशियारी का हाथ। सजग उन्हें किया जाता है, जो हर मुद्द्े को हलके अंदाज में लेते रहे हैं। सचेत उनको किया जा रहा है, जो दिन-ब-दिन बेपरवाह होते जा रहे हैं। सावधान रहने की अपील उनसे की जाती है जो विश्राम की मुद्रा में आ जाते है। इस पर कई लोग अचकच हो सकते हैं। उनका तर्क ये कि सैनिकों और पुलिस वालों को सचेत रहने का आह्वान किया जाता रहा है, इसका मतलब क्या! इसके माने क्या वो सचेत या सजग नहीं है? उनकी इस अचकचाहट का जवाब ये कि ऐसा नहीं है। इसका मतलब ये कि उन्हें और जागरूक किया जाए। हमारे फौजी भाई नींद में भी सावचेत रहते है। वो सावचेत रहते हैं तभी तो हम चैन की नींद लेते है। सरहदों के पहरूए चौबीस कलाक सचेत रहते हैं। ऐसे में उनसे सजग रहने का आह्वान करने का मतलब उनमें और ज्यादा जोश जगाना है। इसमें कोई शक-शुबा नहीं कि हमारे जवान जोशिले है-फुरतिले है। हमारे जवानों में देश भक्ति का जज्बा कूट-कूट के भरा है।


देश की हस्तियां उनके बीच जाकर जोश को चौगुना करे तो उसके परिणाम चीनी सैनिकों की ठुकाई के रूप में सामने आएंगे। इसका मतलब ये नहीं कि इससे पूर्व हमारे सैनिक सीमा पर घूमर या भगड़ा कर रहे थे और हस्तियों ने वहां जाकर उन्हें जगाया। ऐसा नहीं है, हमारे जंंगजू पहले से ही सचेत थे। हस्तियों ने उनके बीच जाकर सावचेती पे चार चांद लगा दिए। उसका परिणााम चीनी सैनिकों की पीठ दिखाई के रूप में सामने आया।


वो थी सरहद की बात और यहां बात हो रही है समाज की। एक हिसाब से देखा जाए दोनों की दिन और रात्रिचर्या में खासा फरक होता है। हम घर परिवार के साथ और सैनिक घर-परिवार से दूर। हम हर तीज त्यौहार पर खुशियां मनाते है और फौजी भाई सरहदों पर गरमी सरदी और धूल भरी आंधियों के साथ बर्फबारी से भी लड़ते है। एक ओर दुश्मन की नापाक नजरें और दूसरी तरफ कुदरत का कहर। उन सब के बावजूद हमारे जवान सजग पहरूए की भूमिका निभाते रहे है। उनकी सजगता के कारण ही समाज सुरक्षित है। इसकी पलट में समाज में वैसा नहीं होता जो एक जागरूक समाज में होना चाहिए। एक जागरूक नागरिक परिवार को जागरूक बना सकता है। जागरूक परिवार गली-गुवाड़ी और गली गुवाड़ी वाले क्षेत्र को और क्षेत्र वाले पूरे समाज को सजग और सतर्क बना सकते हैं मगर हम सब सो रहे हैं। हम सब ऊंघ रहे है। हम सब लुटलुटी लगाए हैं। इसी आलस्य के कारण हम आए दिन अपना कोई मीत खो रहे हैं। उसी ऊंघ के कारण किसी के सिर से पिता का साया उठ गया। इसी लेजीनेस की वजह से किसी के बुढ़ापे की लाठी टूट गई।

उसी नींद के कारण कई परिवारों के चिराग गुल हो गए। इन सब के बावजूद भी हम नहीं जागे तो हर गली-कूंचे से चिटकारें फूटने और प्रत्येक गुवाड़ी पर दुखों का पहाड़ टूटने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।


हथाईबाजों का इशारा कोरोना के बढ़ते प्रकोप और लोगों की दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही बेपरवाही की तरफ। बताने या जताने की जरूरत नहीं वरन देश का प्रत्येक नागरिक पिछले दिनों से संक्रमितों और कोरोना से हो रही मौतों का आंकड़ा बढ़ते देख रहे है। देश से लेकर राज्यों और राज्यों से लेकर जिला तालूका और शहर-गांव स्तर तक बढ़ते आंकड़े विचलित करने वाले हैं। उन्हें रोकने के लिए हम सब को जागरूक होना होगा। हम देख रह हैं कि इतना कुछ होने के बावजूद लोग सुधर नहीं रहे। ना मास्क-ना देह दूरी ना सरकारी गाइडलाइन की पालना। जहां देखों वहां भीड़। जहां देखों वहां बेपरवाही। इसी के चलते अस्पताल ठसाठस। मरीजों को स्थान नहीं मिल पा रहा है। सरकारी साधन संसाधन ओंछे पड़ते जा रहे है। शासन-प्रशासन अपनी ओर से जितना बन पड़ रहा है, कर रहे हैं। अगर हम भी बेपरवाह बने रहे तो सारे प्रयासों पर पानी फिर जाणा है। इन दिनों ऐसा ही हो रहा है। लोगों की लापरवाहियों के सामने सरकारी प्रयास बौने साबित हो रहे हैं।


इन सारे गवाह-सबूतों को देखते हुए हथाईबाजों की प्रार्थना है कि संभल जाओ। जाग जाओ। सतर्क हो जाओ। सजग हो जाओ। नो मास्क नो एंटी। सेनेटाइजर और थोड़े अंतराल के बाद हाथ धोवन। देह दूरी। इम्यूनिटी बढ़ाने वाले तरीकों पर जोर। जरूरी होने पर ही घर से निकलें। भीड़भाड़ ना करे। प्रशासन-शासन की गाइड लाईन का पालन करें। प्रशासनोन्मुखी ना होकर खुद सचेत बनें। इसी में हमारी और हमारे परिवार के साथ सब की भलाई हैं।