हर माह में दो बार त्रयोदशी तिथि पड़ती है। एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में। त्रयोदशी तिथि भगवान भोलेनाथ को समर्पित है। त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखा जाता है। इस दिन प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना की जाती है। सप्ताह के जिस दिन त्रयोदशी तिथि होती है, उसी के आधार पर प्रदोष व्रत का नाम भी पड़ता है। शास्त्रों में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। इस बार मार्गशीर्ष माह का पहला प्रदोष व्रत कृष्ण पक्ष में सोमवार को पड़ रहा है। इस कारण इसे सोम प्रदोष व्रत कहते हैं। सोम प्रदोष के दिन ही कुछ विशेष योग भी बन रहे हैं।
सोम प्रदोष व्रत तिथि
मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि आरंभ: 21 नवंबर, सोमवार, प्रात: 10.06 मिनट पर
मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि समाप्त: 22 नवंबर, मंगलवार, प्रात: 08.48 मिनट पर
प्रदोष व्रत की पूजा सायंकाल में की जाती है, इसलिए सोम प्रदोष व्रत 21 नवंबर को रखा जाएगा।
शुभ मुहूर्त
प्रदोष पूजा का शुभ मुहूर्त आरंभ : 21 नवंबर, सायं 5.24 मिनट से
प्रदोष पूजा का शुभ मुहूर्त समाप्त : 21 नवंबर, रात्रि 08.05 मिनट पर शुभ योग
प्रदोष व्रत के दिन सुबह से लेकर रात 09 बजकर 06 मिनट तक आयुष्मान योग बन रहा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस योग में पूजा करने का दोगुना फल प्राप्त होता है।
सोम प्रदोष की पूजा विधि
सोम प्रदोष के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर साफ सुथरे वस्त्र धारण करें।
अब एक चौकी रखें और उस पर भगवान शिव और माता पार्वती का चित्र या कोई मूर्ति स्थापित करें।
इसके बाद षोडशोपचार पूजन करें।
संध्या के समय पुन: स्नान के बाद शुभ मुहूर्त में पूजन आरंभ करें।
गाय के दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल आदि से शिवलिंग का अभिषेक करें।
फिर शिवलिंग पर श्वेत चंदन लगाकर बेलपत्र, मदार, पुष्प, भांग, आदि अर्पित करें।
इसके बाद विधि पूर्वक पूजन और आरती करें। सोम प्रदोष का महत्व
पौराणिक मान्यता के अनुसार सोम प्रदोष व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प दोष या ग्रहण दोष है उन्हें सोम प्रदोष का व्रत जरूर रखना चाहिए। प्रदोष व्रत रखने और शिव पूजा करने से रोग, ग्रह दोष, कष्ट, पाप आदि दूर होते हैं।
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