पांच हजार साल से किया जा रहा है योग, इन्होंने की थी शुरुआत

योग का इतिहास
योग का इतिहास

क्या आप जानते हैं कि इतिहास में योग शब्द का उल्लेख सबसे पहले पवित्र ग्रंथ ऋग्वेद में किया गया था। प्राचीन काल से लोग शारीरिक, मानसिक व अध्यात्म के रूप योग करते आ रहे हैं। योग विद्या में शिव को पहले योगी या आदि योगी तथा पहले गुरु या आदि गुरु के रूप में माना जाता है। उत्तरी भारत में योग की उत्पत्ति 5,000 साल पहले पढऩे को मिलती है। सिन्धु घाटी सभ्यता में योग से सम्बन्धित सबसे प्राचीन ऐतिहासिक साक्ष्य मिले।

योग का इतिहास

योग का इतिहास
योग का इतिहास

ऐसा माना जाता है कि योग का अभ्यास सभ्यता की शुरुआत के साथ ही शुरू हो गया था। योग के विज्ञान की उत्पत्ति पांच हजारों साल पहले हुई थी, जब न तो कोई धर्म था और न ही किसी तरह के विश्वास ने जन्म लिया था। यौगिक विद्या में, शिव को पहले योगी या आदियोगी और पहले गुरु या आदि गुरु के रूप में देखा जाता है। कई हज़ार साल पहले, हिमालय में कांतिसरोवर झील के तट पर, आदियोगी ने पौराणिक सप्तऋषियों या “सात संतों” को अपना गहन ज्ञान प्रदान किया था। ऋषि इस शक्तिशाली योग विज्ञान को एशिया, मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका सहित दुनिया के विभिन्न हिस्सों में ले गए। हालांकि, भारत में योग प्रणाली को अपनी पूर्ण अभिव्यक्ति मिली। अगस्त्य, सप्तर्षि जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की, ने योग को जीवन जीने का एक तरीका बना दिया।

मुहर और फॉसिल

सिंधु घाटी सभ्यता की मुहरों और जीवाश्म अवशेषों में योग साधना करने वाली आकृतियां देखी जा सकती हैं। जिससे साफ होता है कि योग भारत में प्राचीन समय से है। इसके अलावा योग की उपस्थिति लोक परंपराओं, सिंधु घाटी सभ्यता, वैदिक और उपनिषद, बौद्ध और जैन परंपराओं, दर्शनों, महाभारत और रामायण के महाकाव्यों, शैवों, वैष्णवों की ईश्वरवादी परंपराओं और तांत्रिक परंपराओं में भी देखी जा सकती है।

सूर्य नमस्कार

सूर्य नमस्कार
सूर्य नमस्कार

यह वह समय था जब गुरु के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन में योग का अभ्यास किया जा रहा था और इसके आध्यात्मिक मूल्य को विशेष महत्व दिया जाता था। यह उपासना का एक हिस्सा था और योग साधना इसके अनुष्ठानों में अंतर्निहित थी। वैदिक काल में सूर्य को सर्वाधिक महत्व दिया गया था और इसी के प्रभाव के कारण हो सकता है कि सूर्य नमस्कार की प्रथा शुरू की गई हो। प्राणायाम दैनिक अनुष्ठान का एक हिस्सा था और आहुति देने के लिए था। वैसे तो पूर्व-वैदिक काल में योग का अभ्यास किया जा रहा था, लेकिन महान ऋषि महर्षि पतंजलि ने अपने योग सूत्र के माध्यम से योग की मौजूदा प्रथाओं, इसके अर्थ और इसके संबंधित ज्ञान को व्यवस्थित और संहिताबद्ध किया। पतंजलि के बाद, कई ऋषियों और योग गुरुओं ने योग के संरक्षण और विकास के लिए बहुत योगदान दिया।

किसी एक धर्म का हिस्सा नहीं

योग किसी विशेष धर्म या समुदाय का हिस्सा नहीं है, यह हमेशा से आध्यात्मिक, शारीरिक और मानसिक प्रथाओं का एक समूह रहा है। जो भी योग का अभ्यास करेगा, उसे कई शारीरिक और मानसिक फायदे मिलेंगे, फिर चाहे वह किसी भी धर्म, जातीयता या फिर संस्कृति पर विश्वास करता हो।

प्रणायाम

जिंदा रहने के लिए हम सभी का सांस लेना जरूरी है। प्राणायाम सांस लेने की एक प्राचीन तकनीक है, जो भारत में योग प्रथाओं से उत्पन्न हुई। इसमें कई तरह से अपनी सांस को नियंत्रित करना भी शामिल है। यह दिमाग में जागरूकता विकसित करने में मदद करता है और दिमाग पर नियंत्रण स्थापित करने में मदद करता है। शुरुआति चरण में नाक और मुंह के जरिए सांस अंदर लेना और बाहर छोडऩे का अभ्यास अहम होता है।

ध्यान

दिमाग को एकाग्र करके किसी एक चीज पर केन्द्रित कर देना ध्यान कहलाता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि ध्यान एक शांत और सुखी मन बनाए रखने की कुंजी है। आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन नींद से कहीं ज्यादा आराम ध्यान करने से पहुंचता है। ध्यान का अभ्यास करने से मन शांत होता है, एकाग्रता बढ़ती है, धारणा स्पष्ट होती है, संप्रेषण में सुधार होता है, अधिक आतंरिक शक्ति और विश्राम जैसे कई लाभ होते हैं। आज की तनाव भरी दुनिया में नकारात्मक भावनाओं से छुटकारा पाने के लिए ध्यान का अभ्यास एक आवश्यकता बन गई है।

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