दसवां वेद: है सिंघणियां आज लग

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है सिंघणियां आज लग, निरबीजां धर नांय।

वंस उजाळण बाहुड़ी, मिलै झूंपड़ा मांय।।

धरती कभी निर्बीज नहीं होती है। आज भी स्त्री के रूप में सिंहनियां मौजूद है। वंश को उज्जवल करने वाली ऐसी वीर नारियां तो झोंपड़ी में भी मिल जाती है।

दसवां वेद


(गतांक से आगे) राणाजी रणक्षेत्र में स्त्री के घायल होने की बात सुनकर स्वयं वहां पहुंचे। देखा तो लोहे के टोप के नीचे गज गज भर लंबे केश खून से लथपथ चिपके हुए हैं। राणाजी ने घायल ठकुरान से पूछा कि आप अपना परिचय दीजिए।

यदि आप शत्रु पक्ष की हो तब भी मैं आपका सम्मान करूंगा। ठकुरानी ने उतर दिया कि कोसीथल ठाकुर की मैं मां हूं। राणाजी ने आश्चर्यचकित होका पूछा कि आप युद्ध में क्यों आई? ठकुरानी ने कहा कि अन्नदाता का हुक्म था और इस वक्त शामिल न होना मेवाड़ के प्रति हरामखोरी होती।

ठाकुर अभी बालक है, इसलिए कर्र्तव्य का पालन करने के लिए मैं आई हूं। ठकुरानी की बात सुनकर राणाजी गदगद हो गए। उन्होंने ठकुरानी से पूछा कि आपको इस वीरता के बदले इज्जत देना चाहता हूं, जो आपकी इच्छा हो सो कहें। ठकुरानी सोच में पड़ गई कि वह क्या मांगे? उसके सामने अपने बेटे का भोला चेहरा घूमने लगा।

ठकुरानी ने राणाजी से अरज की कि मुझे कोई ऐसी चीज दीजिए कि जिससे मेरा बेटा पांच सरदारों में ऊंचा सिर करके बैठ सकै। राणाजी ने तब उन्हें सम्मान सूचक एक कलंगी बख्शते हुए कहा कि यह कलंगी तुम्हारे घराने में पीढियों तक तुम्हारी वीरता के प्रतीक स्वरूप कायम रहेगी और तुम्हारे वंशज इसे पहनकर गौरव से मस्तक ऊंचा करेंगे। (समाप्त)

चाचा और भतीजा गंगा स्नान के लिए गए। गंगा पर स्नान करने वालों की अपार भीड़ थी। किसी ने गंगा के किनारे फल का त्याग किया, किसी ने दूध का। चाचा बोला कि मैं तो क्रोध का त्याग करूंगा। भतीजे ने कहा कि चाचाजी, क्रोध का त्याग करना बड़ा कठिन है।

लेकिन चाचा अपने निश्चय पर अडिग रहा। गंगा-स्नान करके दोनों घर आ गए। भतीजे ने ब्राहृाणों को भोज दिया, लेकिन उसने अपने चाचा को नहीं बुलाया। भतीजे की चार्चा ने अपने पति से कहा कि तुम्हारे भतीजे ने बड़ा भोज किया है और तुमसे कहा भी नहीं। लेकिन उसके पति ने जरा भी रोष प्रकट नहीं किया।

चाचा बिना बुलाये भी भतीजे के घर चला गया। जब वह जीमने बैठा तो भतीजे ने एक धोबा धूल चाचा की पत्तल में डाल दी।

लेकिन चाचा जरा भी क्रूद्ध नहीं हुआ, वह चुपचाप खड़ा हो गया। तब भतीजा चाचा से लिपट गया और बोला कि चाचाजी, आपने सचमुच क्रोध का त्याग किया है। उसके बाद दोनों ने साथ बैठकर भोजन किया।