8920. काग भया परधान

  • उड हंसा सरवर गया, काग भया परधान।
  • जा विप्पर घर आपणै, सिंध किसका जजमान।।


हे ब्राहृाण। हंस तो उड़कर मानसरोवर चला गया है और अब कौआ मंत्री बन चुका है। अत: अब स्थितियां बदल चुकी है। तुम अपने घर लौट जाओ, क्योंकि सिंह किसी का जजमान नहीं होता है।
किसी जंगल में एक शेर रहता था। उसका मंत्री हंस था। कौआ उसका अंगरक्षक था और सियार गुप्तचर। कुछ अन्य जानवर भी यथास्थान काम कर रहे थे। एक दिन यात्रा पर निकला हुआ एक ब्राहृाण जंगल में रास्ता भटक गया। वह परेशान इधर-उधर डोल रहा था। घूमते-घूमते उसे प्यास लग आई थी। संयोग से कौए की नजर उस पर पड़ गई। कौए ने सोचा कि आज तो राजाजी के घर बैठे ही भोजन आ गया है। इसके संकेत के लिए वह कांव-कांव करने लगा। उधर ब्राहृाण ने सोचा कि यहां कौआ बोल रहा है, निश्चय ही यहीं आस पास पानी बोल रहा है, निश्चय ही यही आस पास पानी होनी चाहिए। और वह उधर ही बढता चला गया। चलते-चलते वह शेर की गुफा के सामने पहुंच गया। जैसे ही उसने शेर को देखा, उसके पैरों के तले की जमीन खिसक गई। उसकी धिग्गी बंध गई। सियार ने शेर का उस पर आक्रमण करने को इशारा किया। तभी हंस ने शेर को ब्राहृाण पर आक्रमण करने का मना कर दिया। हंस ने शेर को कहा कि यह ब्राहृाण है और ब्राहृाण गुरू होता है। भला गुरू पर कभी आक्रमण किया जाता है? गुरू तो ज्ञान देता है, आशीर्वाद देता है। सो गुरू को तो दक्षिणा दी जाती है। तब शेर ने हंस से पूछा कि तो अब मुझे क्या करना चाहिए? हंस ने कहा कि इसे दक्षिणा स्वरूप धन देना चाहिए। तब शेर ने अपनी गुफा से आभूषण लाकर ब्राहृाण को भेंट में दिए। ब्राहृाण अब तक सहज हो चुका था। उसने आशीर्वाद देते हुए दक्षिणा ग्रहण की ओर इसके बाद वह अपने मार्ग आगे चल पड़ा। कुछ समय बाद ब्राहृाण की लड़की का विवाह तय हो गया। तब ब्राहृाण ने सोचा कि विवाह में काफी धन चाहिएगा, क्यों न मैं जजमान शेर के पास जाऊं, ताकि मुझे अच्छा-खासा धन प्राप्त हो जाए। ब्राहृाण जंगल की ओर चल पड़ा। मन ही मन सोचता जा रहा था कि अच्छा-खासा धन मिलेगा तो मैं अपनी पुत्री का विवाह बड़ी धूमधाम से करूंगा। लेकिन जब वह शेर की गुफा पर पहुंचा, तो उसने देखा कि हंस के स्थान पर अब कौआ मंत्री था और वही मंत्री का कार्य कर रहा था। ब्राहृाण जानता था कि भले हंस के कारण ही मेरी जान बची थी और मुझे काफी धन मिला था। कौआ तो उसे मरवाने की फिराक में था। इस स्थिति में उसे भय महसूस हुआ। उसने सोचा कि आज तो लेने के देने पड़ गए। कौआ उस समय कुछ बोलता, तभी शेर उसको देखकर बोल पड़ा कि ब्राहृाण देवता, आप जैसे आए हैं, वैसे ही तुरंत लौट जाएं। अब हंस यहां मंत्री नहीं है अब तो कौआ यहां मंत्री है। और कौआ कहता है कि भला शेर भी किसी का जजमान हुआ करता है।