8925. जद गुण को गाहक मिलै

  • जद गुण को गाहक मिलै, हीरो लाख बिकाय।
  • जद गुण को गाहक नहीं, कौडी बदळै जाय।।

जब गुण का ग्राहक मिलता है तो हीरा लाखों में बिकता है। लेकिन जब गुण का कोई ग्राहक नहीं होता, तब वह कौड़ी बदले जाता है। तात्पर्य यह कि गुणों को समझने वाला ही गुण रखने वालों की कद्र करता हैं, उन्हें उचित सम्मान होता है।
एक बार उज्जयिनी में जब चोरों का उपद्रव बहुत बढ गया, तो राजा विक्रमादित्य ने उन चोरों को खुद पकडऩे का निश्चय किया। चोरों को पकडऩे के लिए विक्रमादित्य ने स्वयं चोर का वेश धारण किया और रात के समय चौराहे पर जाकर खड़ा हो गया। थोड़ी देर बाद वहां श्रीचंद्र, गुणचंद्र, भूरिचंद्र और धीरचंद्र नाम के चार चोर वहां इकठटे हुए। उन्हें देखकर विक्रमादित्य उनके पास पहुंचा और बोला कि मंै भी एक चोर हूं, लेकिन मैं यह जानना चाहता हूं कि तुम लोगों में क्या क्या गुण है? एक चोर ने कहा कि मैं खात्र-विधि विशारद हूं। दूसरा बोला कि मैं शकुन और स्वर विद्या का ज्ञाता हूं। तीसरे ने बताया कि मैं मंजूषा, पेटी आदि को सूंघकर उसमें रखी वस्तु बता सकता हूं। चौथे ने अपना गुण प्रकट किया कि मैं रात या दिन में कभी भी एक बार सुने शब्द से वर्षों बाद भी उस पुरूष को शब्द सुनकर पहचान सकता हूं। चारों ने जब विक्रमादित्य से पूछा तो बोले कि मैं विक्रम चोर हूं और मेरे साथ में रहने वाले चोर भाइयों को कभी प्राण दंड नहीं मिलता है।

इसके बाद वे पांचों मिल कर चोरी करने के लिए चल पड़े। जब पहला चोर सेंध लगाने लगा, तो दूसरा चोर बोला कि मेरे शकुन के अनुसार घर का स्वामी जाग रहा है। फिर उल्लू के शब्द सुनकर उसने कहा कि घर का स्वामी हमें देख रहा है। आगे प्रवेश करते हुए कुत्ते का स्वर सुनकर विक्रम ने पूछा कि मित्र, यह क्या कहता है? उसने कहा कि यह कह रहा है कि प्रवेश मत करो, मत करो। इतने में दूसरा कुत्ता बोला तो फिर पूछा। उसने कहा कि यह कुत्ता कर रहा है कि चुप रहो, अपना स्वामी विद्यमान है। विक्रम ने मन ही मन उसकी कला की प्रशंसा की। आगे चलने पर महल में छह पेटियां मिली।

तीसरे चोर ने उन्हें सूंघ कर बताया कि इनमें रत्न और स्वर्ण भरे पड़े है। उन्होंने एक पेटी सेंध के मुंह पर रखी और पांच पेटियां उठाकर चलते बने। दूसरे दिन मिलने का संकेत करके वे अपने अपने स्थान चले गए। प्रात काल राजा की रखवाली में भी महल में सेंध पड़ी देखकर कोटवाल ने एक पेटी सेंध के मुंह पर पाकर उसे अपने घर में ले जाकर रख दी। कोटवाल ने फिर विक्रमादित्य से जाकर कहा कि रात को महल में सेंध लगी। तब विक्रमादित्य ने संकेत स्थल पर इकटठे हुए चोरों को पकड़वा दिया। विक्रमादित्य ने कहा कि इन्हें मार दो। यह सुनकर चौथा चोर बोला कि महाराज, हमारे साथ पांचवें आप ही थे, अत: अपने गुण-कथन का पालन कीजिए। तब राजा ने उनसे वे पांच पेटियां मंगवा कर अपने सेवक के रूप में रख लिया। फिर छठी पेटी कोतवाल के यहां से मंगवा कर उसे देश निकाला दे दिया। इस प्रकार चोरों चोर चोरी करना छोड़कर राज्य मान्य व्यक्ति बन गए।