8933. करम प्रवाणे किसनिया

  • हिकमत करो हजार, गढपतियां जांचो घणा।
  • धीरज मिलसी धार, करम प्रवाणे किसनिया।।


कोई भले ही कितनी ही चतुराइयां क्यों न कर ले, राजाओं तक को क्यों न जांच ले, लेकिन मिलेगा तो उसे भाग्य भाग्य के बल पर ही। अत: धीरज धारण कर भाग्य के अनुकूल होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए।
प्राचीनकाल में पुरंदर नाम का एक राजा था, जो भाग्य को नहीं मानता था। वह अपने ही हाथ में सभी शुभ-अशुभ कृत्य मानता था। पुरंदर की राजसभा में दामोदर और सुंदर नाम के दो ब्राहृाण थे। दामोदर को राजा की मान्यता स्वीकार नहीं थी। उसका कहना था कि मान्यता स्वीकार नहीं थी। उसका कहना था कि शुभ-अशुभ सभी मनुष्य के पूर्वकृत कर्म के अनुसार होते हैं। लेकिन सुंदर राजा पुरंदर को ही शुभ-अशुभ का कर्ता धर्ता मानता था और उस की स्तुति किया करता था।

अत: दामोदर और सुंदर दोनों में ही प्राय: विवाद हो जाता था। एक दिन राजा पुरंदर ने दोनों के विवाद को मिटाने और अपनी मान्यता स्थापित करने के लिए एक कार्य किया। मान्यता स्थापित करने के लिए एक कार्य किया। उसने दामोदर और सुंदर दोनों को ही एक अन्न और वस्त्र आदि दिए, लेकिन सुंदर को एक कूष्मांड फल अधिक दिया। राजसभा में यह सभी ने देखा। दोनों ही राजा की भेंट लेकर अपने अपने घर गए। दामोदर ने राजा द्वारा दिये हुए अन्न वस्त्र आदि अपनी स्त्री को दिखाकर कहा कि वैसे तो राजा ने हम दोनों पंडितों को बराबर बराबर वस्तुएं दी हैं, लेकिन सुंदर को एक कूष्मांड फल अधिक दिया है। तब उसकी स्त्री ने कहा कि मन में क्यों रखते हो? कूष्ठमांड की ही तो बात है। आप बाजार जाकर एक कूष्मांड खरीद लाइए। इस प्रकार दोनों बराबर हो जाएंगे। दूसरी ओर सुंदर ने भी राजा द्वारा दिये हुए अन्न वस्त्र आदि दिखलाए और कहा कि वैसे तो राजा ने हम दोनों पंडितों को बराबर वस्तुएं दी हैं, लेकिन मुझे यह कूष्मांड फल दामोर से अधिक दिया है। तब उसकी स्त्री ने कहा कि भला कूष्मांड खाता नहीं है, आप तो बाजार में जाकर दुकानदार को इसे बेच आइए। और सुंदर ने कूष्मांड शाक-फल वाले को बेच आया।

जब दामोदर कूष्मांड खरीदने पहुंचा तो संयोग से दुकानदार ने वही कूष्मांड उसे दे दिया। दामोदर ने उस कूष्मांड को पहचान लिया। घर ले जाकर जब उसने उस कूष्मांड को काटा, तो उसमें से मणि भौक्तिक स्वर्ण आभूषण आदि निकले। अब दामोदर को राजा के दिये दान का अंतर समझ में आया। अगले दिन दामोदर राजा द्वारा दिये गए वस्त्रों के अलावा कूष्मांड में से निकले आभूषणों को पहनकर राजसभा में गया। जबकि, सुंदर बिना आभूषणों के आया था। राजा ने जब उन दोनों को देखा तो आश्चर्यचकित रह गया। तब उसने सारा वृतांत ज्ञात किया। ज्ञात करने पर राजा पुरंदर को समझ में आ गया कि शुभ-अशुभ उसके हाथ में नही है। भाग्य की ही महत्ता है। पूर्वकृत पुण्यफल के कारण स्वर्ण आभूषण आदि दामोदर को प्राप्त हुए, जबकि सुंदर उनको प्राप्त करके भी प्राप्त नहीं कर सका। तब राजा पुरंदर ने राजसभा में सबके सामने भाग्य की सत्ता स्वीकार की।