सत्र के ग्रह नक्षत्र

ग्रह-नक्षत्र के खेल के बारे में तो सुना था, सत्र-सत्र का खेल देखने को मिल जाएगा, इस बात का भान तक नहीं था। सत्र बॉल कभी इन के पाले में जा रही है-कभी उनके पाले। सत्र के नक्षत्र कहां जा रहे हैं.. किस की ओर जा रहे हैं.. कब तक जाते-चलते-रहेंगे, कोई नही जानता। खुद सियासी पंडित अपनी पोथी-पुराण खंगालने में जुटे हैं और उधर प्रस्ताव के अपने सुर-‘इधर चला मैं.. उधर चला..। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

हम भले ही इक्कीसवीं सदी में जाने का दावा करें। दम भरें.. इतराएं कि हम इक्कीसवीं सदी में जा रहे हैं। हम ट्वेंटी फस्ट सेंचुरी में विचरण कर रहे हैं मगर सत्य तो यह है कि अधिकांश लोग आज भी ग्रह-नक्षत्रों में उलझे नजर आते हैं। यह हमारी परंपरा और संस्कृति रही है। हम भले ही आधुनिक होने का दम भरें या दावा करें मगर अपनी जमीन से जुड़े हुए हैं। आप को याद होगा-रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह फ्रांस गए थे उस वक्त राफेल की पूजा करके आएं। राफेल पर ओम उकेरा- स्वास्तिक बनाया और नारियल चढाया। बड्डे-बड्डे डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर में जाने से पूर्व बाहर बने मंदिर में धोक देते हैं। हाथ जोड़कर ऑपरेशन की सफलता की मन्नत मांगते हैं। विज्ञानी से लेकर मौसम विज्ञानी और मौसम विज्ञानी से लेकर अंतरिक्ष विज्ञानी अपना मिशन कामयाब होने की प्रार्थना करते रहे हैं। यह हमारी श्रद्धा है। यह हमारा ईश्वर के प्रति विश्वास है। यह हमारी नीली छतरी वाले के प्रति
आस्था है।
अपने यहां हर अच्छे काम के लिए मुहूर्त-चौघडिय़ा देखा जाता है। जनमतरी बनाओ तो मराज पूरे लेखे-जोखे की खोजबीन करने के बाद फाइनल टच देते हैं। बच्चा कब पैदा हुआ। सुबह-शाम-दोपहर या रात को। समय के साथ काल तिथि-वार और अन्य ज्योतिषीय गणना के बाद जनमपतरी बनती है। शादी के बखत कन्या और कन्हैयालाल की जनमतरी के अनुसार गुण मिलाए जाते है। पंडितजी की सलाह के अनुसार आगे की कार्रवाई की जाती है। मगर हम यह कहे कि-जनम से लेकर जीवन के लगभग हर कदम पर ज्योतिष-मुहूर्त का सहारा लिया जाता है-तो भी गलत नहीं।

अस्पताल से जच्चा-बच्चा के घर आने के बाद मुहूर्त के अनुसार सूरज पूजा जाता है। फिर अन्नप्रासन समारोह होता है। नामकरण संस्कार होते रहे हैं। आज कल घेटिया चाल का बोलबोला सिर चढ कर बोलता है। घेटिया चाल बोले तो भेड़चाल। भेड़ों को स्थानीय भाषा में ‘घेटिए और ‘घोने कहा जाता है। वो झुंड के रूप में चलते हैं तो चलने का अंदाजा ही कुछ और नजर आता है। झुंड के सबसे आगे चलने वाली भेड़े सबका नेतृत्व करती है। वो इधर घूमे तो झुंड इधर- वो उधर तो झुंड उधर। कई लोग अपने संस्कार को ‘ताक पर रखते दिखाई देते हैं। नाम के मामले में तो जोरदार घोनागिरी। जो मन में आया रख दिया। रॉकी-जैकी-सूजी-चंकी-चिंकी और ना जाने कैसे-कैसे नाम रख दिए जाते हैं। मराज राशि के अनुसार नाम रखने को कहें तो मुंह चिढाते हैं। हमारे जमाने में राम-श्याम-हरि-किशन-गोविंद आदि नाम रखे जाते थे। विष्णु-गिरधारी-लक्ष्मण और भागीरथ हर गली मे मिल जाया करते थे। बाईसा की बात करें तो सीता-सावित्री-शांति और श्यामा जैसे नाम प्रचलित। भगवती-लीला-कमला और गायत्री जैसे नाम कॉमन। उस जमाने के लोगों की सोच थी कि नाम के साथ देव-देवों के भी नाम। इसी बहाने भगवान का नाम भी जुबां पर आ जाता। अब वो बातें हवा हो गई।

आप सच-सच बताना, आप में से किसी ने अपनी पोती का नाम लिछमी या पौते का नाम हनुमान रखा? जवाब साफ है-नहीं। कारण ये कि लोगों पर अंधानुकरण हॉवी होता जा रहा है। हमारी गली में भैरू काका रहते हैं। बेटे का नाम राधेश्याम और पोते का नाम रॉकी। कहां भैरूप्रसाद-कहंा राधेश्याम और कहां रॉकी। पूछा तो पता चला कि जिस दिन रॉकी फिल्म लगी-बच्चा उसी दिन पैदा हुआ लिहाजा वही नाम रख दिया। पड़ोसी मसखरी करते है-‘यदि उस दिन ‘रोटी या ‘कालिया फिलिम रीलिज हुई होती तो?


कई बार घट-चौघडिय़ा-मुहूर्त देख कर कार्य करने के बावजूद ‘खाडे पड जाते हैं। ऐसा होने पर किस्मत और समय पर दोषारोपण। कोई कहे किस्मत मे यही लिखा था। कोई कहे समय का फेर है भाई। कोई ग्रह-नक्षत्र की ओर अंगुली उठाए बिना नही रहता। जैसे इन दिनों हो रहा है।
राज्य में इन दिन सरकार और राजभवन के बीच तलवारें खिंची हुई है। कहंा की सियासी लड़ाई कहां पहुंचा दी गई। टंटा सीएम अशोक गहलोत और डीसीएम रहे सचिन पायलट के बीच था और है, भाईसेणों ने राजभवन का पार्टी बना दिया।

सरकार विधानसभा सत्र बुलाना चाहती है ताकि बहुमत सिद्ध कर सके। ऐसा हुआ तो वो कम से कम छह माह की तो गई। राज्यपाल सरकार के ‘बुलावे पर इफ-बट कर रहे हैं। क्यूं बुलाना चाहते है। ऐसा कौन सा पहाड टूट रहा है जो सत्र बुलाना जरूरी है। कोरोनाकाल में ऐसा क्यूं किया जा रहा है। सरकार प्रस्ताव भेज रही है राज्यपाल नए-नए सवालों के साथ फाइल वापस भेज रहे हैं। तीन बार प्रस्ताव तो भेज दिए गए आगे क्या होगा, कह नही सकते।
हथाईबाज इस टकराहट को उचित नही मानते। कोरोनाकाल में सिर्फ एक सूत्री कार्यक्रम कि लोगों को संक्रमण से बचाएं कैसे। सियासी झगड़े-टंटे बाद में निपट लेंगे। अभी पूरा ध्यान कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा कम करने की ओर मगर ऐसा हो नही रहा। राज्य का पूरा सियासी घटनाक्रम ‘बमचकरी बना हुआ। सत्र के ग्रह नक्षत्र कब सुधरेंगे। तुम जानो ना हम।