8948. सकळ सुधारै काम

ज्यां घट बहुळी बुध बसै, रीत नीत परिणाम।
घड़ भांजै, भांजै पडै़, संकळ सुधारै काम।।

जिनके भीतर रीति-नीति के परिणाम वाळी बुद्धि बहुतायत से रहती हो,वे किसी न किसी तरह अपने बिगड़े हुए सारे काम सुधार ही लेते हैं। मतलब यह बुद्धिमान समस्या का हल जैसे-तैसे निकाल ही लेते हैं।
जंगल में एक ऊंट मर गया था। एक गीदड़ ने उस मरे हुए ऊंट को देखा तो उसकी प्रसन्नता का पार नहीं रहा। उसने सोचा कि अपने लिए तो कई दिनों के भोजन का प्रबंध हो गया। मांस खाने के लालच में वह ऊंट का मृत शरीर खाता हुआ उसके अंदर घुस गया। वहीं बैठा बैठा वह कई दिनों तक उसका मांस खाता रहा। उसने बाहर निकलने का नाम ही नहीं लिया। मांस खा खा कर गीदड़ काफी मोटा हो गया। जब उसका मन भर चुका तो उसने सोचा कि चलो, अब बाहर निकलें। लेकिन इतने दिनों में ऊंट का चमड़ा धूप से सिकुड़ कर बहुत सख्त हो गया था और लाख कोशिश करने पर भी गीदड़ बाहर नहीं निकल सका।

अब तो गीदड़ के होश उड़ गए। उसने सोचा कि अब तो यहीं बेमौत मरना पड़ेगा। जब मौत का संकट सामने आ खड़ा होता है तो क्या आदमी और क्या जानवर उससे बचने के लिए अक्ल लड़ाने लगता है, कोई रास्ता ढूंढने लगता है। गीदड़ भी अक्ल लगाने लगा। तभी उसने बातचीत सुनकर यह जाना कि इधर से तो लोग आते जाते हैं। उसे संतोष हुआ कि वह बचने का उपाय कर सकता है। लेकिन सवाल यह है कि आदमी मुझे क्यों बचाएंगे? क्यों मेरी बात सुनेंगे? उसने अक्ल भिड़ाई और तय किया कि वह आदमियों के आने की आहट सुनी। जब वे उस मृत ऊंट के शरीर के पास आए तो गीदड़ ऊ ऊंट के शरीर के अंदर से जोर जोर से बोला कि अरे मनुष्यों।

मैं एक महात्मा हूं जो ऊँट के शरीर के अंदर प्रवेश करके तपस्या कर रहा था। लेकिन इतने दिनों में ऊंट का चमड़ा कड़ा हो गया है और मेरा बाहर निकलना कठिन हो रहा है। तुम किसी तरह ऊंट के चमड़े को नर्म कर दो, ताकि में इसके अंदर से बाहर निकल सकूं। बाहर निकलने पर मैं तुम्हें एक बहुत ही ज्ञान की बात बताऊंगा। राह चलते आदमी उस गीदड़ के चक्कर में आ गए। उन सबने पानी के घड़े ला लाकर उस ऊंट पर डाले। वे तब तक पानी डालते रहे, जब तक कि ऊंट का चमड़ा नर्म नही हो गया। फिर उन्होंने बड़ी कोशिश करके उस महात्मा का बाहर निकाला तो देखा कि वह तो एक गीदड़ है। गीदड़ ने बाहर आकर चैन की सांस ली और फिर बोला कि अब सुनो, मैं तुम्हें ज्ञान की बात बतलाता हूं। आदमी सोचने लगे कि जरूर कोई महत्वपूर्ण बात बतलाएगा। गीदड़ बोला कि सुनो, बात इतनी ही कहनी है कि कभी भूलकर भी ऊंट के चमड़े में मत घुस जाना अन्यथा तुमसे कभी निकला ही नहीं जाएगा।