8955. अबळा है क बलाय

डोरी सूं डर जाय, ना तर डरै न न्हार सूं।
अबळा है क बलाय, चातर जाणै चकरिया।।

डरने को तो स्त्री डोरी से भी डर जाती है, नहीं डरती है तो वह सिंह से भी नहीं डरती। अब यह अबला है या बला यह तो विद्वान लोग ही जानते हैं।
(गतांक से आगे) दस बजते ही कोतवाल साहब सज धर कर आ पहुंचे। मंत्री की बेटी ने कोतवाल को एक कमरे में बैठा दिया। फिर वह उनके लिए खाने पीने की चीजें जुटाने लगी। देर होती देखकर कोतवाल साहब जल्दी करने लगे तो मंत्री की लड़की ने कहा कि अब रात आगे क्या देर है। ग्यारह बजते बजते बडे अधिकारी ने दरवाजे पर दस्तक दी तो कोतवाल साहब ने पूछा कि कौन है?

मंत्री की लडकी ने कहा कि बड़े अधिकारी है। यह सुनकर कोतवाल साहब की सिटटी पिटटी गुम हो गई। उन्होंने मंत्री की लडकी से कहा कि मुझे शीघ्र कहीं छिपा। मंत्री की लडकी ने कहा कि मैें कहां छिपाऊं। अंत में जब कोतवाल साहब बहुत ही गिड़गिड़ाने लगे तो उसने उनके ऊपर एक फटा हुआ टाट डाल दिया और उसके दोनो हाथों में दीपक टिका दिए। अब बडें अधिकारी की आवभगत होने लगी। इतने में दीवानजी आ गए। अब बडे अधिकारी ने कहा कि मुझे जल्द छिपा। मंत्री की लडकी ने उन्हें मुर्गा बनाकर एक कोने में खड़ा कर दिया और फिर उसे कपड़ा ओढाकर उसकी पीठ पर रख दिया। अब दीवानजी की खातिरदारी होने लगी। इतने में राजाजी आ गए।

मंत्री की लडकी ने दीवान जी को छिपाने के लिए उनको एक ओढनी ओढाकर चक्की पीसने के लिए बैठा दिया। अब राजाजी की खातिरदारी होने लगी। थोडी देर बाद मंत्री की लडकी किसी दूसरे कमरे में जाकर निश्चिंत होकर सो रही। इधर राजाजी उसका इंतजार करते करते ऊंघने लगे। वे किसी को पुकारते तो कोई उतर नहीं मिलता। राजाजी सोचने लगा कि लडकी न जाने कहां चली गई। बड़े असमंजस में पड़ गए। अपने आप से कहने लगे कि कहां आ फंसे। दीपक की बत्ती मंद होने लगी तो राजाजी उसे ठीक करने के लिए उठे।

उधर कोतवाल ने सोचा कि मेरी शामत आ गई। वह गिड़गिड़ाता हुआ राजा के पैरों पर गिर पड़ा। राजा कोतवाल को इस रूप में देखकर हक्का बक्का रह गया। उसने डांटकर कोतवाल से पूछा कि तूम यहां कैसे? कोतवाल ने उतर दिया कि हुजूर, मैं ही नहीं, बड़े अधिकारीजी, कोने में खडे हैं और दीवानजी चक्की पीस रहे हैं। सवेरा हुआ तो मंत्री की लडकी वहां आई। उसने राजा से कहा कि महाराज, गुस्ताखी माफ हो। अपने मुझसे एक सवाल पूछा था कि औरत अधिक चतुर होती है कि मर्द? मैंने कहा था कि औरत अपने इस कथन को सिद्ध कर दिखाया है। लडकी की बात सुनकर राजा बड़ा शर्मिन्दा हुआ और उसके बाद वह चुपचाप महल को चला गया। कोतवाल बडा अधिकारी और दीवान ने भी अपने अपने घर की राह ली। (समाप्त)