बणां बुणूं के नक्की करो नीं !

आखिर वही हुआ, जिस की संभावना पहले ही जता दी गई थी। आखिर वही हुआ, जो होना तय था। लेखक अपने। निर्माता अपने। निर्देशक अपने। कैमरा अपना। कैमरामैन अपने। पूरी यूनिट अपनी। इसके बाद शक की गुंजाइश ही नही रहती। छह माह बाद भी वही होणा है जिस की पटकथा पूर्व में लिखी जा चुकी है। हमारा तो यही कहना है कि जो बाद में करोगे, वह अभी किया जा सकता है। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।


हथाईबाजों के अनुसार कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहां जिन की चलती है.. उन्ही की चलती है। उनकी मरजी के बिना कोई पूरी बाराखडी तो क्या, ‘क से कबूतर और ‘ख से खरगोश भी नही लिख सकता। इस का अंगरेजीकरण करें तो कोई टू का पूरा टेबल तो क्या टू वन जा टू भी नही लिख सकता। हम नीली छतरी वाले की बात नही कर रहे। उसकी मरजी जल-थल और नभ पर चलती है। पाताल तकातक में उस का हुक्म चलता है। हम उसकी इच्छा या मरजी की बात नहीं कर रहे वरन उन क्षेत्रों का बखान करना चाहते हैं जहां इनकी-उनकी के सिवाय किसी की नही चलती। अगर पूरी विगत बांचणे बैठ गए तो कलंैडर के पन्ने बदलने तय समझो। मगर खास-खास की अनदेखी भी नहीं की जा सकती। जहां जिसकी हुकूमत चलती है.. वहां उन्हीं की चलती है। उनके बाद अगर कोई होगा तो उन्हीं का होगा। उन्हीं में से होगा। उन्हीं के कुनबे से होगा, कोई अपवाद हो जाए तो कह नहीं सकते वरना ‘घर की रेवड़ी घर मे। मजाल पड़ी जो कोई बाहरी बंदा उस पर नजर डाल दे। जिनने डाली उन्हें ‘टांगाटोळी करके बाहर पटक दिया गया। उसके बाद अब तक किसी ने हिम्मत नही की। आगे क्या होगा वह भी कांच की तरह साफ नजर आ रहा है।


एक जमाना था, तब घर में बड़े-बुजुर्गों का कहा माना जाता था। संयुक्त परिवार। साझा चूल्हे। नो थ्हारी-नो म्हारी। सब कुछ अपना-सब कुछ हमारा। भाईयों में प्रेम। औरतों में सद्भाव। बच्चों में एका। पता भी चलता कि कौन सा डीकरा छोटे भाई का है और कौनसी डीकरी बड़े भाई की। घर-परिवार के फैसले आई-बाबा करते थे। इस से पूर्व वो सबकी राय जानने की कोशिश करते। सब का यही कहना होता-‘आप करोगे, सो सही है। ऐसा होता भी था। सब की राय जानने के बाद बुजुर्गों ने जो कह दिया, वह फुल एंड फाइनल। उसमें कोई ना-नुकर नहीं। कोई इफ-बट नहीं। आज वो तस्वीर दरक गई। घर-समाज के बड़े-बडेरे हांशिए पर पड़े हैं।

कुछ पारंपरिक परिवारों को भले ही छोड़ द्यो, वरना ज्यादातर घरों में बुजुर्गों की कोई पूछ नहीं। हां, पेंशन लाने के दिन उनकी पसंद का खाना जरूर खिलाया जाता है। बेटा-पोता या बींदणी गाडी पर बिठा कर बैंक ले जाते है। जैसे ही रकम हाथ में आई, रवैया और नजरें फिर बदल जाती है। बुजुर्ग भी जानते है.. उनके रवैये पर मुस्कराते हैं.. पर मजबूर। जो लोग समझौते नही कर पाते या कि बेटे-बहू-के कहे अनुसार नही चलते उनके लिए वद्धाश्रम की शरण लेने के अलावा और कोई रास्ता नहीं
स्कूल में सर-मैम और प्रिंसिपल की चलती है। अस्पताल में नर्स-कंपाउंडर और डाक साब का राज। अब तो वार्ड ब्यॉय और बाईजी भी मरीजों के परिजनों को हड़काने से बाज नही आते। चौकीदार भी पीछे नहीं। सरकारी कार्यालयों में बाऊजी अफसर से ऊपर। कौन सा पन्ना चलेगा। कौन सी फाइल रूकेगी। कौन सा प्रकरण भागेगा, सब उनकी मरजी पर। निजी प्रतिष्ठानों में मालिक और उनके चंगुओं-मंगुओं का राज। दल-दलों में भी सही स्थिति। कहने को तो सियासी दल अपने यहां लोकतंत्र की बात करते हैं मगर इक्का-दुक्का के अलावा कहीं लोक नजर आते हैं ना तंत्र। हाईकमान ने कह दिया वो लोह की लकीर। टीएमसी में दीदी का राज-बसपा में बहनजी का। आरजेडी में लालू एंड परिवार की हुकूमत-जेडीयू में कथित मिस्टर क्लीन। लाल सलाम की लाली खल्लास होने की ओर वरना वहां भी खंूटे गड़े रहते। कांगरेस तो गांधी-नेहरू परिवार के बिना अधूरी। कैसी विडंबना हैं कि डेढ-सौ साल की ओर अग्रसर पारटी- ‘कुनबे से बाहर नही निकल पाई। ले देकर एक ही परिवार। ऐसा लगता है मानों कुनबे ने पारटी का पट्टा बनवा के रखा है।


पिछले दिनों- ‘बाहरी-बाहरी की बांग लगी तो लोगों ने सोचा कि कुछ होगा। सोनियाजी ने नया अध्यक्ष तलाशने की राग छेड़ी-तब भी कुछ लोगों को लगा कि कुछ होगा। पर हथाईबाजों ने पहले ही घोषणा कर दी थी कि कुछ होणा-जाणा नही है। उन्होंने परसों-नरसों ‘आओ, अध्यक्ष-अध्यक्ष खेले शीर्षक से छपी हथाई में इस बात का खुलासा कर दिया था कि पारटी में जो कुछ चल रहा है, वह नूरा कुश्ती के अलावा कुछ नही है। हथाईपंथियों ने यह भी कहा था कि अव्वल तो सोनियाजी को अंतरिम अध्यक्ष पद से हटाने वाला कोई नही।

बढती उम्र और बीमारी के कारण उन्होंने पद छोड़ भी दिया तो साहबजादे तैयार। वो नही तो साहबजादी-तुम आगे बढो..हम तुम्हारे साथ हैं.. के सुर तैयार। गनीमत रही कि नाटक जल्दी खतम हो गया। पारटी के वरिष्ठजनों ने अपने आप को नौजवान समझने वालों को बता दिया कि उनके खंूटे उखाडऩा आसान नही है।
हथाईबाज जानते हैं कि आने वाले दिनों में वही होना है, जिस की हवा चल रही है। सोनिया जी अगले छह माह तक अंतरिम अध्यक्ष बनी रहेगी उसके बाद कुरसी पे कौन बिराजेगा-बताने की जरूरत नहीं। जो कल होना है, वह आज क्यूं नही हो सकता। जब उन्हें ही अध्यक्ष बनाना है तो बणां बुणू के नक्की करो नी।