विश्व प्रसिद्ध जयपुरी रज़ाईयों पर मंदी की मार

ऑनलाइन बिक्री और जीएसटी के बाद कोरोना ने व्यापारियों की कमर तोड़ी

जयपुर/कोपल हालन/ पिंकी कड़वे

सदियों से चली आ रही अपनी हस्त कला और कारीगरी के लिए राजस्थान विश्व प्रसिद्ध है, राजस्थान ने विभिन्न प्रकार की कारीगरी और कलाओं के बल पर देश में ही नहीं बल्कि विदेशों तक लोगों के दिल में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। गुलाबी नगरी जयपुर में हस्त निर्मित विभिन्न चीजों का व्यापार लोकप्रिय है। ठंड का मौसम चल रहा है ऐसे में जयपुरियां रज़ाई का अपना अलग ही क्रेज़ होता है। हल्की और मुलायम खूबियों वालीं रज़ाईयां देश और प्रदेश सहित पूरे विश्व में मशहूर हैं, जिसमें सबसे ज्यादा मांग अक्टूबर से जनवरी के महीनें में रहती है।

रज़ाई के जिक्र मात्र से जयपुर की याद आ जाती है क्योंकि, गर्म और हल्की होने के साथ- साथ सफर पर भी यह रज़ाई ले जाई जा सकती हैं, क्योंकि इनको फोल्ड करना बहुत ही आसान होता है, इसे मोड़कर आसानी से कहीं भी छोटी सी जगह में रखा जा सकता है। शहर के हवा महल,बापू बाजार, चौड़ा रास्ता, छोटी चौपड़ खरीदारी के मुख्य स्थान है जहाँ 100 प्रतिशत कॉटन का प्रयोग करके सिगंल, मिडियम, डबल बेड की रजाईयां बनाई जाती है जिसका मुल्य 300 से शुरू होकर 3,000 तक का है और इसमें सबसे ज्यादा 1,500-2,000 तक की डिमांड सर्वाधिक है। जयपुर रज़ाई को ‘एसी रज़ाई’ भी कहा जाता है, इसलिए इसकी मांग मुंबई और बैंगलोर तरफ भी देखने को मिलती है। हालांकि मुख्य रूप से उत्तर भारत के शहरों में इसकी डिमांड रहती है।

रजाई के लिए कॉटन, कपड़े का आयात-निर्यात

महाराष्ट्र से रज़ाई के कपड़े का आयात होता है जिसमें मलमल, रेशम, मखमल अहम है और इसमें सबसे मंहगा कपड़ा मलमल का होता है जिसकी बाजार में काफी मांग है। वहीं कॉटन को राजस्थान के गुलाब पुरा और गंगा नगर से मंगवाया जाता है जहाँ, कपास की गुणवत्ता खरी मानी जाती है। 3,000 कारीगारों की मदद से एक दिन में 7,000-8,000 रजाईयों को बनाया जाता है जो देश के अलग-अलग कोनों में निर्यात की जाती है और जिसकी डिमांड जापान, अमेरिका तक फैली हुई है।

250 से 300 ग्राम की रजाई

आज के आधुनिकरण के ज़माने में ये बात बेहद मायने रखती है कि यहा के कारीगर आज भी हस्त निर्मित रज़ाईयां तयार करते है। रज़ाई को हल्का और गर्म बनाने के लिए रुई को बेंत की मदद से तब-तक पींदा (रुई को साफ और बेंत से पतला) जाता है जबतक की यह पूरे आकार (शेप) में बराबर न हो जाएं। वहीं अगर बात करे इसके कवर कि तो यह ऊपर से नरम, मुलायम और रेश्मी होता है वहीं अंदर के हिस्से में सूती का कपड़ा लगा होता है। कवर का आकार ले चुके इस खोल में रूई को बराबर कर धागें से इसकी सिलाई की जाती है।

राजघरानों से आम लोगों तक

शताब्दियों पहले राजघराने से रज़ाईयों के चलन की शुरआत हुई, जयपुर के संस्थापक मिर्जा राजा सवाई जयसिंह ने भारत के हर एक कोने से अपनी कला में निपुण शिल्पियों को आमंत्रित कर इसकी शुरूआत की थी। आलम ये है कि आज भी लोगों में इसकी पहचान बरकरार है, राजनेताओ से लेकर आम निवासियों और विदेशों से आने वाले पर्यटको की पहली पसंद के रूप में ये आज भी शुमार है।

सस्ते की आड़ में फाइबर पहुंचा रहा शरीर को नुकसान

सस्ते सामान की होड़ में हर कोई शामिल है ऐसे में ऑनलाइन खारीदारी का अपना अलग ही बाजार है जिससे घर बैठे कोई भी चीज़ किफ़ायती दामों पर मुहैया हो जाती है। फाईबर की कीमत कॉटन से पांच गुना कम होने के कारण ऑनलाइन बेचे जाने वाले समान में 99 फीसदी सबसे खराब क्वालिटी की फाइबर का इस्तेमाल होता है, जो स्वास्थ के लिए नुक्सानदायक होता है और लोगों में स्किन ऐलर्जी का खतरा पैदा करता है। इससे अस्थमा और कैंसर जैसी बिमारियों का खतरा भी बना रहता है। वहीं अगर बात करे कॉटन की तो यह गरम तासीर की होती है। सर्दी के दिनों में शरीर को गर्म रखने के लिए इसे एक अच्छे विकल्प के रूप में देखा जाता है साथ ही इसके इस्तेमाल से सांस लेने में भी परेशानी नहीं होती। इसकी खास बात यह भी है कि इससे त्वचा में जलन नहीं होती है।

आमदनी पर ऑनलाइन ही नहीं जीएसटी ने भी बुरा प्रभाव डाला है: दिनेश लश्करी

दिनेश लश्करी

पिछले काफी समय से रज़ाईयों की बिक्री पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा है, जिसकी वजह से रज़ाई बाजार को काफी नुकसान उठाना पड़ा है। व्यापारियों के मुताबिक कोरोना काल इसका बड़ा कारण है, इसके अलावा जीएसटी और ऑनलाइन सेल्स ने भी बिक्री पर बुरा प्रभाव डाला है। रज़ाईयों के व्यापारी दिनेश लश्करी ने बताया कि 1000 से कम कीमत वाली रज़ाई पर 5 फीसदी और इससे ज्य़ादा कीमत वाली पर 12 फीसदी जीएसटी लग जाता है। वहीं दूसरी समस्या यह भी है कि अन्य शहरों जैसे यू.पी, एम.पी, हरियाणा और पंजाब से आने वाले छोटे व्यपारी के पास जीएसटी नम्बर न होने के कारण हमें 20,000 से 25,000 रू. का नुकसान झेलना पड़ता है। वहीं ऑनलाइन बाजारीकरण का रूख न अपनाने के पीछे इनका कहना है कि ऐसा करने पर बड़ी कंपनियां 18-20 फीसदी का मार्जिन लगाती है और माल को लाने ले जाने में 20 फीसदी मार्जिन और जुड़ जाता है जिससे सीधे-सीधे 40 फीसदी का नुक्सान झेलना पड़ता है।

कोरोना काल के चलते रज़ाई व्यवसाय में 25 फीसदी की गिरावट आई: हरि ओम लश्करी

हरि ओम लश्करी

जयपुर रज़ाई व्यापार संग के अध्यक्ष हरि ओम लश्करी ने बताया की सबसे ज्य़ादा मांग वाले महीने अक्टूबर से जनवरी के होते है जिसमें 10-15 लाख रज़ाईयों की बिक्री से 10-15 करोड़ का मुनाफ़ा बाजार में देखने को मिलता है। साथ ही विदेशो में लगने वाले एग्जि़बिशन से भी इनकी पहचान को एक अलग मुकाम हासिल हुआ है। कोरोना काल के चलते रज़ाई व्यवसाय में 25 फीसदी की गिरावट आई है, इससे व्यापार पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। ज्य़ादा जीएसटी के चलते रज़ाईयों की बिक्री में काफ़ी कमी आई है, जिसके चलते सरकार को रजाई पर सिर्फ 5 फीसदी जीएसटी लगाने पर गौर करना चाहिए, ताकी व्यापार में बढ़ोत्तरी हो सके।