आचार्य ने अभिभावकों के कर्तव्य बताए

भीलवाड़ा। तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में नवरात्र में अष्ट दिवसीय आध्यात्मिक अनुष्ठान जारी है। जैन अगम आधारित प्रवचनमाला में रविवार को आचार्य ने कहा कि पुत्र वह है, जो अपने कुल की परंपरा व मर्यादा की रक्षा करता है।

आगम में पुत्र के दस प्रकार बताए गए हैं। मूल पुत्र एक ही होता है जो पिता से उत्पन्न होता है, परंतु विभिन्न संदर्भों में पुत्र के उपरोक्त कई प्रकार होते हैं। पिता और पुत्र का एक दूसरे के प्रति कर्तव्य और दायित्व होता है। पिता का कर्तव्य है वह अपने पुत्र को शिक्षित, योग्य और संस्कारित बनाए, आर्थिक अर्जन आदि में भी पुत्र सक्षम बन सके।

उसी प्रकार पुत्र का कर्तव्य है, कि वृद्धावस्था में अपने अभिभावकों की सेवा करे। कोई व्यक्ति कितना ही बड़ा बन जाए, पर मां-पिता के लिए वह बेटा ही होता है। अभिभावक व संतान दोनों धर्म की दृष्टि से एक दूसरे का सहयोग करते हुए आगे बढ़ें यही काम्य है। साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने कहा कि व्यक्ति अपने जीवन में कोई लक्ष्य निर्धारण करे, उसके लिए जरूरी है लक्ष्य के प्रति सकारात्मक चिंतन।

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