
संवत्सरी महापर्व का भव्य रूप में समायोजन, पूरे दिन श्रद्धालुओं को मिलती रही आध्यात्मिक खुराक
विशेष प्रतिनिधि, छापर (चूरू)। पर्युषण महापर्व का शिखर दिवस बुधवार को ‘संवत्सरी महापर्वÓ आध्यात्मिक उल्लास और श्रद्धा के साथ जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में समायोजित हुआ। हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने जहां उपवास, अष्टप्रहरी, छह प्रहरी, चार प्रहरी पौषध का आचार्यश्री के श्रीमुख से प्रत्याख्यान कर अपने जीवन को धर्म से भावित बनाने का प्रयास किय, वहीं आचार्यश्री की अमृतवाणी सहित अनेकानेक चारित्रात्माओं से पूरे दिन विभिन्न विषयों पर धर्मचर्चा का श्रवण कर अपने जीवन को धन्य बनाया। बुधवार को सूर्योदय से पूर्व ही आचार्यश्री महाश्रमणजी का प्रवास स्थल प्रवचन पण्डाल व उसके आसपास का स्थल श्रद्धालुओं की विराट उपस्थिति से जनाकीर्ण बना हुआ था। प्रात:काल अर्हत् वंदना के उपरान्त आचार्यश्री के श्रीमुख से मंगलपाठ का श्रवण व आचार्यश्री द्वारा संवत्सरी महापर्व के संदर्भ में उपस्थित श्रद्धालुओं को उनके धारणा के अनुसार अनेक रूपों में उनके उपवास, तपस्या व पौषध का पचक्खान कराया।

आचार्य कालू महाश्रमण समवसरण आज उपवास के माध्यम से साधनारत श्रद्धालुओं से भरा हुआ था। मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के निर्धारित समय पर आचार्यश्री महाश्रमणजी मंचासीन हुए और मंगल महामंत्रोच्चार किया। साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने आचार्य महाप्रज्ञजी द्वारा रचित गीत ‘आत्मा की पोथी पढऩे का…Ó गीत का संगान किया। आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आज भगवान महावीर से सम्बद्ध जैन धर्म का अति महत्त्वपूर्ण दिन है। संवत्सरी महापर्व के इस दिन की बराबरी में या तुलना में कोई अन्य दिवस प्रस्तुत किया जा सके, ऐसा याद नहीं आता। यों तो अक्षय तृतीया, भगवान महावीर जयंती जैसे धार्मिक तथा जन्मोत्सव, पट्टोत्सव आदि-आदि कई दिन अथवा दिवस मनाए जाते हैं, किन्तु संवत्सरी की तुलना में कोई दिन नहीं। आज का दिन उपवास, साधना, आत्मनिरीक्षण, खानपान का त्याग करने अर्थात् संयम करने की प्रधानता से पूर्ण है। यह संयम प्रधान दिवस है। पर्युषण के सात दिन मानों इस शिखर दिवस की अगवानी में आते हैं। इस दिन को साधु-साध्वी ही नहीं, गृहस्थ लोग भी मनाते हैं। चारित्रात्माओं के तो आज चौविहार उपवास होता ही है, गृहस्थों के भी उनकी धारणा के अनुसार उपवास होता है। आज सायंकाल वार्षिक प्रतिक्रमण भी होता है।

40 लोगस्स का ध्यान भी किया जाता है। इसके साथ पौषध का आभूषण अष्ट, छह, चार के द्वारा इस संवत्सरी के उपवास को शोभित करने वाले होते हैं। इस दौरान जितनी अधिक से अधिक सामायिक हो सके तो आत्मा का कल्याण हो सकता है।
आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि माता-पिता का यह कत्र्तव्य है कि बच्चा बोलना सीखे तो उसे पहले नवकार महामंत्र कंठस्थ हो जाए। प्रतिदिन नाश्ते से पहले-पहले नवकार महामंत्र की एक माला हो जाए। खानपान भी शुद्ध हो। जमीकंद, मांसाहार आदि का उपयोग न हो। विदेश जाएं, होटल जाएं या हॉस्टल में जाएं, लेकिन आहार की शुद्धि का पूर्ण ध्यान रखने का प्रयास करना चाहिए। दवाइयों में भी यदि किसी प्रकार के नॉनवेज की जानकारी करें तो उनके विकल्प को तलाशने का प्रयास होना चाहिए। नशीले पदार्थों के सेवन से बचने का प्रयास हो। कहीं कोई इसके लिए मनुहार भी करे तो उसे विनम्रता के साथ टाल देने का प्रयत्न हो। संवत्सरी अच्छी आध्यात्मिक और कल्याणकारी खुराक देने वाली बने।
आचार्यश्री ने ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्राÓ के क्रम को आगे बढ़ाते हुए वर्धमान के बचपन में खेल के दौरान निर्भीक रहने, अध्ययन के पहले ही दिन पाठशाला से मुक्ति, बसंतपुर के नरेश की पुत्री यशोदा से विवाह, पुत्री प्रियदर्शना का जन्म, उसकी शादी और उसे भी एक पुत्री होने की कथा, माता-पिता द्वारा अनशन स्वीकार करना, उनके प्रयाण के बाद भाई से दीक्षा की अनुमति मांगना, भाई का दो वर्ष का समय देना, दो वर्ष तक वर्धमान द्वारा अनेक नियमों का पालन, दो वर्ष बाद दीक्षा की तैयारी, मृगशिर कृष्णा दशमी को उनके दीक्षित होने, सर्व सावद्य योग का त्याग, बारह वर्ष के कठोर तप कर विहार करना, प्रथम दिन से ही उनके ऊपर आने वाले अनेक परिषहों का वर्णन, चण्डकौशिक सर्प का उद्धार, शूलपाणि यक्ष द्वारा परिषह, अंत में क्षमायाचना करना, केवल ज्ञान और दर्शन की प्राप्ति, अनेक वर्षों तक जनकल्याण और अंत में कार्तिक कृष्णा अमावस्या को इस शरीर का त्याग करने के प्रसंगों को आचार्यश्री ने बड़ी ही रोचक शैली में वर्णन किया। इसके साथ-साथ आचार्यश्री ने सभी मौकों पर चतुर्विध धर्मसंघ को भगवान महावीर के जीवन से विविधि प्रेरणाएं भी प्रदान की। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने संवत्सरी महापर्व के महत्त्व को व्याख्यायित किया। इसके उपरान्त पूरे दिन अनेक प्रसंगों पर साधु-साध्वियों द्वारा गीत, व्याख्यान के माध्यम से श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक प्रेरणा प्रदान करने का कार्य जारी रहा। दोपहर बाद लगभग ढाई बजे पुन: आचार्यश्री प्रवचन पण्डाल में पधारे और वहां श्रद्धालुओं को विविध पाथेय प्रदान किया।
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