बोलियों से लिया भगवान का अभिषेक पूजन, शांतिधारा और महाआरती का लाभ

बांसवाड़ा। शहर के दिगंबर जैन समाज के जिनालयों में समाज के श्रद्धालुओं ने पर्यूषण पर्व के तीसरे दिन उत्तम आर्जव धर्म मनाया। शहर के प्राचीन आदिनाथ जैन मंदिर महालक्ष्मी चौक में हुए धार्मिक कार्यक्रमों की जानकारी देते हुए समाज के अध्यक्ष पंकज गांधी ने बताया कि जिनालय में सुबह श्रीजी की मूर्ति पर शांतिधारा और अभिषेक पूजन के कार्यक्रम हुए।

वहीं शाम को आरती की गई। इधर वासुपूज्य भगवान के जिनालय में दस लक्षण पर्व के तहत भगवान सुपार्श्वनाथ भगवान का गर्भ कल्याणक और उत्तम आर्जव धर्म के अवसर पर अभिषेक की बोली के लाभार्थी बदामी लाल सुरेशचंद्र वोरा, शांतिधारा के लाभार्थी बंसी लाल कैलाशचंद्र सिंघवी, पूजन के लाभार्थी दिलीप वाणावत और श्रीजी की आरती के लाभार्थी संजय जैन के एंड आर परिवारजन रहे।

वहीं शहर की खांदू कॉलोनी स्थित श्री श्रेयांस नाथ दिगंबर दशा नरसिंहपुरा जैन मंदिर परिसर में पंडित अभिषेक जैन के आचार्यत्व में अभिषेक और शांतिधारा का लाभ डांगरा सूर्यकिरण, पंचोरी धनपाल विजयचंद ने लिया। वहीं तत्वार्थ सूत्र का वाचन अंतिम जैन, सुनीता रजावत, वंदना रजावत, याशिका कीकावत ने किया। दिन में एक घंटा हुई धार्मिक कक्षा में पंडित अभिषेक जैन ने तत्वार्थ सूत्र के तीसरे अध्याय का पाठ करवाया।

शाम को सामूहिक प्रतिक्रमण और सामयिकी के बाद आरती की गई। आदिनाथ जैन मंदिर मोहन कॉलोनी रातीतलाई में हुई धर्म सभा में आचार्य सुंदर सागर महाराज ने कहा कि सरलता का भाव ही आर्जव धर्म कहलाता है। इस अवसर पर संघस्थ आर्यिका सुनयमति माताजी ने कहा कि आचार्य पूज्यपाद स्वामी ने सर्वार्थ सिद्धि में कहा था कि योगों की वक्रता न होना ही आर्जव धर्म है। मन,वचन और काया ये तीन योग होते हैं। जब इन तीनों में सरलता हो तो वहीं आर्जव धर्म होता है। मन में कुछ विचार है और वचनों में दूसरे प्रकार के भाव हैं।

इसके अलावा काया से तीसरे प्रकार के कार्य हों तो इसे मायाचारी कहा जाता है। कुटिल भाव या मायाचारी परिणामों को छोड़ कर शुद्ध ह्यदय से चारित्र का पालन करता है। उस मुनिराज के नियम से आर्ज और धर्म होता है। पानी में लहरें उठें तो उनमें मुख्य नहीं देख सकते हैं। इसी प्रकार यदि मन,वचन,काया की कुटिलता हो तो अपने सरलता गुण का आनंद नहीं ले सकते हैं। सरलता के द्वार ही धर्म की उपलब्धि होती है।

समाज के प्रवक्ता मयंक जैन, प्रिंस जैन ने बताया कि पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के तीसरे दिन आचार्य श्री संघ के सानिध्य में सुबह पंचामृत अभिषेक और शांतिधारा का लाभ विमल कुमार मणीलाल वैध परिवार और ऋषभ कुमार नानालाल नश्नावत परिवार को मिला। वहीं शाम को श्रीजी की मूर्ति की आरती की गई। वहीं श्रद्धालुओं ने अनंतमति नामक नाटक का प्रभावी मंचन किया। इस अवसर पर समाज के अध्यक्ष पवन नश्नावत, मगनलाल नश्नावत, अजबलाल नश्नावत, विमल वैद्य, दिनेश रजावत, इंद्रसिंह मौजूद रहे।

नेमिनाथ और मूलनायक भगवान का अभिषेक किया

नौगामा। आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर, भगवान महावीर समवशरण मंदिर, सुखोदय तीर्थ नसियाजी में आर्जव धर्म के दिन वागड़ के बड़े बाबा आदिनाथ भगवान नेमिनाथ भगवान व मूलनायक के प्रथम अभिषेक शांतिधारा का लाभ पिंडारमिया मेहुल कैलाश चंद्र, गांधी सुधीर कुमार नवीनजी, पंचोरी विपुल कुमार लक्ष्मी लाल, नानावटी मनोज कुमार विनोद को प्राप्त हुआ।
प्रकार के भाव हैं। इसके अलावा काया से तीसरे प्रकार के कार्य हों तो इसे मायाचारी कहा जाता है। कुटिल भाव या मायाचारी परिणामों को छोड़ कर शुद्ध ह्यदय से चारित्र का पालन करता है।

उस मुनिराज के नियम से आर्ज और धर्म होता है। पानी में लहरें उठें तो उनमें मुख्य नहीं देख सकते हैं। इसी प्रकार यदि मन,वचन,काया की कुटिलता हो तो अपने सरलता गुण का आनंद नहीं ले सकते हैं। सरलता के द्वार ही धर्म की उपलब्धि होती है। समाज के प्रवक्ता मयंक जैन, प्रिंस जैन ने बताया कि पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के तीसरे दिन आचार्य श्री संघ के सानिध्य में सुबह पंचामृत अभिषेक और शांतिधारा का लाभ विमल कुमार मणीलाल वैध परिवार और ऋषभ कुमार नानालाल नश्नावत परिवार को मिला। वहीं शाम को श्रीजी की मूर्ति की आरती की गई। वहीं श्रद्धालुओं ने अनंतमति नामक नाटक का प्रभावी मंचन किया। इस अवसर पर समाज के अध्यक्ष पवन नश्नावत, मगनलाल नश्नावत, अजबलाल नश्नावत, विमल वैद्य, दिनेश रजावत, इंद्रसिंह मौजूद रहे।

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