साब-करमचारी और…

यह तो सरासर नाइंसाफी है। खुल्ले-खाले में अन्याय है। एक तो साब जी ने रात को दस बजे करमचारी को सरकारी काम से घर बुलवाया ऊपर से कुत्ते से कटवा दिया। इसकी शिकायत भी पुलिस में हो गई, अब सवाल ये कि कार्रवाई कुत्ते के खिलाफ होगी या कुत्ते वाले के खिलाफ। होगी तो किस प्रकार की और किन धाराओं के तहत, नही होगी तो क्यूं नहीं। रात को दस बजे करमचारी को घर बुलाने का तो कोई तुक नहीं। जो काम रात में हुआ, वह अगले दिन सुबह भी हो सकता था। तिस पे घर पे बुला के कुत्ते से कटवाना तो मिल के मरवाना जैसे हालात पैदा कर गया। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

हैडिंग के आगे छूटे स्थान को भरने को कहा जाए तो ज्यादातर लोग वही भरेंगे, जो शब्द आपके-इनके और उनके दिमाग में खदबदा रहा है। यह जरूरी नही कि जो शब्द आपके जेहन में गूंजे वह सही हो। आप ऐसा सोच सकते हैं कि लिखा वो सही है, मगर शरतिया तौर पे ऐसा नही कहा जा सकता। इम्तहान में परीक्षार्थी सवालों के जवाब अपने-अपने हिसाब से देते रहे हैं। कई के सही होते हैं कई के गलत। कई के आधे-अधूरे। कई को पूरे नंबर मिलते हैं-कई को कम। कई को अंडा। सही लिखने वाले नंबर देखकर संतुष्ट और गलत लिखने वाले बजाय खुद के पैर देखने के, कॉपियां जांचने वालों को गालियां देते दिख जाएंगे।
ऐसा होना भी नई बात नही है। खुद को सही ठहराने की परंपरा सी बनती जा रही है। मैं सही हूं-बाकी सब गलत। मैंने कह दिया जो सही-बाकी सब गलत। कई बार मानखा खुद को सही ठहराने के लिए इतने हलके स्तर पे पहुंच जाता है कि उसके आगे कोई स्तर ही नही बचता। कई लोग अगली पार्टी का चरित्र हनन करने से भी नही चूकते। इसके लिए झूठ-फरेब-मक्कारी-कमीनियत या चारसौबीसी की आड़ लेनी पडे तो भी कोई हर्ज नहीं। उन्होंने शीर्षक के आगे छोड़ी गई खाली जगह में ‘वो भर दिया, इसका मतलब ये नही कि ‘वो सही हैं।

जहां तक हमारा खयाल है लगभग सभी पाठकों के जेहन में ‘वो ही उछल होगा। कारण ये कि ऐसी राग-सुर गूंजने पर ऐसी खदबहाहट होती है। पति-पत्नी और.. के आगे ‘वो लगाने की लकीर पीट सबने दी जबकि ऐसा हो भी सकता है नहीं भी हो सकता है। पति-पत्नी और पुत्र-पुत्री से लेकर अम्मा-बाबा भी हो सकते है। पति-पत्नी और भैया-भाभी की ओर सूई घूम सकती है। पति-पत्नी और साले-साली भी, हो सकते हैं। ऐसा यहां पर भी मगर दिमाग में ‘वो। हो सकता है कई ने लिख भी दिया हो। कौन सी नेगेटिव मार्किंग होणी है। गलत है तो है। सही है तो है। सही में शाबासी और गलत में नंबर कटने नही है फिर चिता क्यूं करनी।

कई लोग इस हैरत में कि पहले पेरेग्राफ में कुत्ते और काटने का जिक्र किया गया है। शिकायत का हवाला भी है, तो कही ऐसा तो नही कि खाली स्थान पे कुत्ते को बिठा दिया जाए। इसमें भी लोचे के आसार। कारण ये कि साब और करमचारी के बीच काम-कार्य आ सकता है। घूस की राशि की हिस्सा-पांती आ सकती है। दस्तखत करने या ना करने अथवा फाइल कंपलीट करने को लेकर लोचा हो सकता है। ‘वो भी संभावित। कुत्तों का बाड़ा तो दूर तक नजर नही आता ना ओपता है। साहब-बीवी और गुलाम चल गया। पति-पत्नी और वो चला लिया। साब-करमचारी और कुत्ता अटपटा जरूर लगता है मगर है वही। वो कैसे, तो इसका खुलासा भी हो जाणा है। ऐसा तो है नही कि हथाईबाज ‘आधेटे में उठ जाएंगे या कि घर की ओर रूख कर देंगे। जब शुरू किया है तो अंजाम तक पहुंचाने का जिम्मा भी हमी का।

कुत्ता-कुत्ते या कुत्तों पे पत्रवाचन करने से कोई फायदा नहीं। कुत्ता मानखा जमात का पुराना दोस्त है। पुरातन काल से यह दोस्ती चली आ रही है। कुत्तों की अपनी खांपें-अपने नाम। गली-गुवाड़ी के कुत्तों से लेकर कारों-कोठियों वालों के कुत्ते। गली के कुत्ते भूरिया और कालिया। कोठी वालों के जैकी-जूली। साड्डा कुत्ता-कुत्ता और ज्वाड़ा कुत्ता टॉमी। कुत्ता मानखों का वफादार दोस्त तो उस पर कुत्ता हर हाल में कुत्ता होता है, का टेग भी। कुत्ता वफादार भी और काटकूट ले तो चौदह इंजेक्शन की तैयारी।

हवा अलवर से आई। वहां कलेक्टर कार्यालय के अतिरिक्त प्रशासनिक अधिकारी एडीएम सर के एक जरूरी कागज पे साइन करवाने रात 8.30 बजे उनके बंगले पे गया। सर ने कागज मे रही कुछ कमियां दूर करके लाने की बात कही। रात साढे दस बजे करमचारी वापस साब के बंगले पे पहुंचा तो उनके कुत्ते ने ऐसा हमला बोला कि करमचारीजी लहूलुहान हो गए। कुत्ते ने अंगुली हाथ-पैर और पांव में ‘बटके भर लिए। करमचारीजी ने इसकी शिकायत कोतवाली थाने में लिखित में दी। जिसमे उसने कार्यालय समय के बाद कर्मचारी को घर पे बुलाने को लेकर एतराज जताया और कुत्ते द्वारा काटे जाने पर कार्रवाई की मांग की।

पुलिस उसकी शिकायत पे क्या कार्रवाई करेगी। करेगी या नही करेगी। इस घटना के विरोध में करमचारी संगठन क्या रूख अपनाते हैं। यह सब बाद की बात-फिलहाल शीर्षक के खाली पड़े स्थान में ‘कुत्ता बिठा दिया गया। तो शीर्षक हुआ-‘साब.. करमचारी और कुत्ता..।