बटकाबाज मंतरी

हम को उसकी तरह पड़ोस में ताकाझांकी करने की आदत नही है, ना हमें ऐसा बायलापना सुहाता है। वो काटे-कुतरे-बटके भरे-फाड़े-खींचे। उसकी मरजी। उसी के लोग उसी पे हंसे तो हंसे। उन्हीं के लोग उनकी नौटंकी पे खिलखिलाएं तो खिलखिलाएं। वो तो समझे थे दो-चारेक ही जोकर हैं। किसे पता था कि जोकर भी जोकर को देख के रंग बदलता है। जब रंग बदल ही दिया तो रंगत यहां तक आणी स्वाभाविक हैं। जब बात निकली है, तो दूर तलक जाएगी ही। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
हमें एक फिलिम का डायलॉग याद आ गया। फिलिम का नाम तो हवा हुई गवा, मगर संवाद अटका हुआ है। फिलिम के एक सीन में एक अंकल कहते बताए गए-‘यहां गुल भी है.. बहार भी है.. सिंह भी है और साहब भी है।

उसी तर्ज से मिलती-जुलती हथाई की शुरूआती पगडंडी। जब पगडंडी में इतना सब कुछ है, तो मुडिया रोड या मुख्य सड़क पर कितना कुछ देखने-सुनने को मिलेगा इसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। संवाद उस समय टपका जब हीरोजी एक क्लब में मौज-मजे कर रहे एक अंकलजी से पूछते हैं-‘आप ने गुलबहार सिंह साहब को देखा क्या? प्रत्युत्तर में अंकलजी वहां चल रहे नजारे की ओर अंगुली उठाते हुए वो डायलॉग उगलते हैं। उसी से मिलता-जुलता टोटका हथाई के पहले पेरे में। जिस में ताकाझांकी से लेकर नाटक-नौटंकी और जोकर-वोकर सब कुछ है।

कई ज्ञानी-ध्यानी ताकझांक का जिक्र होते ही समझ गए होंगे कि हवा का रूख किस की ओर है। लोग खुद के आजू-बाजू में देख रहे होंगे। दोनों अपनी-अपनी जगह पे सही। ये कहे हम सही और तुम गलत-तुम कहो हम सही और वो गलत तो तांता लंबा खिंच जाएगा। उसकी तो लत पड़ी हुई है-हमारी आदतें भी कम नहीं। कई लोगों को सीआईडीपना दिखाने का शौक लगा हुआ है। ऐसे महानुभाव और महानुभावियां अपने आजू-बाजू वालों पर पूरी नजर रखते हैं। खुद के घर की फिकर नहीं और मांगीलालजी से लेकर देवीलालजी के घर पर पूरी नजर। इस गली से लेकर उस गुवाड़ी तक की सारी अफवाहों पर पंख लगाने में उनका योगदान भी। जब तक वो पंचायती ना कर लें, रोटी नही भाती। खा भी ले तो हजम नही होती। पहले ऐसे पंचायती केंद्रों पर आधी आबादी का कब्जा हुआ करता था, अब इस गंैग में खुद को मरद समझने वाले भी शामिल हो गए।

अगर कोई देश ऐसे करे तो हैरत होणा लाजिमी है मगर हमें नही होती। कारण ये कि वह देश भी इस बीमारी से ग्रस्त है। उसे हमारी थाली का साक और रोटिएं गिनने की लत लग चुकी है। हम क्या खाते हैं। क्या पीते हैं। क्या पहनते हैं। हमारे रिश्ते किन-किन से है। रिश्ते कैसे हैं। हमारी हर गतिविधि पे जो नजर रखे दुनिया वाले उसे पाकिस्तान के नाम से जानते हैं। पता नहीं उसे ऐसा करने में क्या मजा आता है कि ले दे के भारत ही नजर आता है। अगर वो बजाय हमारे यहां अस्थिरता फैलाने के अपने लोगों की भलाई के बारे में सोचे तो ज्यादा ठीक रहेगा। वो बजाय हमारे यहां ताकाझांकी करने के अपने नाटककारों-नौटंकियों और जोकरों की हरकतें सुधारे तो उसी की सेहत के लिए ठीक रहेगा।

दुनिया वाले पाकिस्तान में पिछले अरसे से जोकरों की बढती संख्या भी देख रहे हैं। वो आतंक और आतंकवाद की फैक्ट्री चलाने के लिए आखे विश्व में बदनाम है। विश्व के किसी भी मुल्क बम फूटे-आतंकवादी हमला हो तो पाकिस्तान का नक्शा ही सामने आता है। वही पाकिस्तान पिछले दिनों से मजाक स्थल के रूप में भी चावा होता जा रहा है। कई लोगों ने तो उसे नौटंकीस्तान और जोकरीस्तान तक कहना शुरू कर दिया। वहां के पीएम से लगा के मंतरी और संतरी जैसी हरकतें करते हैं वैसी सरकस के जोकर भी नहीं करते होंगे। सरकस के जोकरों की हरकतें भी इस के मंतरियों के आगे उच्च स्तरीय लगती है। आप ने पाव-आधा किलो के परमाणु बम के बारे में कही पढा या सुना। वहां के एक मंतरी ने उसकी व्याख्या तक कर डाली। दुनिया भर के परमाणु विज्ञानी हैरान। महाशक्तियां परेशान। ऐसे बमों के बारे में हमने भी कभी नही सुना। वैसे बम पाकिस्तान के एक मंतरी। ने भारत पर बरसाने की गीदड़ भभकी दे डाली। ऐसा लगा मानों वहां के नाटक मंतरी बम की नहीं आलू-प्याज की बात कर रहे हों।

वहां के पंजाब सूबे का एक मंतरी नौटंकी करने में उनका बिग ब्रदर। उसे लोग कतरनबाज-कुतरनबाज-बटकाभरू-फाडू और खींचू जैसी उपमाओं से विभूषित करने लग गए। वो है पंजाब सूबे का जेल मंत्री। भाईजी अपनी विधानसभा क्षेत्र में एक व्यापारिक प्रतिष्ठान का उद्घाटन करने गए। कैंची इतनी भौंथरी कि फीता कटा ही नही।

दो-चार दफे प्रयास किए मगर नाकाम। इस पर मंत्री महोदय ने फीते को दांत से काट-काट के दो टुकड़े कर दिए। लो कट गया फीता। हो गया उद्घाटन। उनकी यह जोकरगिरी देख कर वहां मौजूद लोग खूब हंसे। उमपाएं दी। दी तो दी। उन्होंने जो करना था सो कर दिया, बाकी सब झिकाळ। हमें उसके किए धरे से कोई मतलब नहीं, पर वहां के लोग हैरत में कि और कितनों की नौटंकी देखनी पडेगी।

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