भिखारी भाईयों की-जै

क्यूं भाई, इन के जैकारे पर इतनी अचकच क्यूं। आप को तो-पूरे जोश और खरोश के साथ हमारे सुर में सुर मिलाना चाहिए था। कारण ये कि जब इनकी जै हो सकती है.. जब उनकी जै हो सकती है..। जब इन के नाम का जैकारा लग सकता है। जब उनके नाम का जैकारा लग सकता है-तो हमारे भिखारी भाईयों ने किसी का क्या बिगाड़ा,, तो लग जाए एक जोरदार जैकारा। लग जाए एक नारा-भिखारी भाइयों की-‘जै..। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।


भिखारियों का महिमा मंडन करने पे किसी को हैरत होवे तो सौ बार होवे..। भिखारियों का गुणगान करने पे कोई जले तो सवा सौ दफे जले। भिखारियों की वाहवाही करने पर कोई ‘भुटे तो डेढ सौ बार भुटे। आगे बढने से पहले ‘भुटे का खुलासा करना जरूरी। आज कल की नस्ल का तो पता नहीं, हमारे बखत के लोग इसकी परिभाषा बखूबी जानते हैं। बचपने में हम किसी को चिढ़ाया करते थे तो एंड का तकिया कलाम होता-‘भुट-भुट चणे की दाल, उड़ गई टोपी-रह गए बाल। नई नस्ल समझ रही होगी कि भुट्टे का अपभ्रंश-‘भुटे होता होगा, पर वैसा नही है। भुटने अथवा भुट-भुट जाने का मतलब जलन। किसी बात पर रश्क करना। किसी की उन्नति-प्रगति और विकास पे ईष्र्या करना।

अगर नई नस्ल इसे भुट्टे से जोड़ती है तो उसकी यह सोच गलत नही है। भुट्टा भुनने के बाद खाया जाता है। बरसात का मौसम। धीमी-धीमी बारिश। अंगीठी मे पड़े अंगारे। उससे भुट्टे की भुनाई। उस पर नींबू और मसाले की मालिश। उसके बाद खाने का मजा ही कुछ और है। इसकी समरी ये कि भूना हुआ भुट्टा आगे चल कर ‘भुटना बन गया। हो सकता है भिखारी का जयकारा लगने पर वो लोग ‘भुट गए हों, जिनने जैकारों पर अपना एकाधिकार समझ लिया। वो मानते रहे.. वो जानते रहे.. वो समझते रहे कि उनके अलावा किसी और का जैकारा लग ही नही सकता। हो सकता है वो भिखारी भाईयों का जैकारा सुन कर ‘भुट रहे हों। वो जलें तो जलें। वो मिणमिणाएं तो मिणमिणाएं। वो ईष्र्याएं तो ईष्र्याएं.. आखिर कोई गहरी बात होगी तभी तो हथाईपंथियों ने भिखारियों के नाम का जैकारा लगाया। वरना उन्होंने प्रभु, भारत माता और अपने-अपने माता-पिता के अलावा किसी का जैकारा नही लगाया।


भिखारी के बारे में पढ-सुन कर आंखों के सामने कई अजब-अजीब चेहरे घूम जाते है। बदन पर फटे कपड़े। लंबे-लंबे बाल। गंदा और बदबूदार बदन। हाथ मे कटोरा या फैली हुई हथेली और होंठों पे-‘दो बाबजी.. अथवा किसी देवी-देवता के नाम पर मांगने के सुर। कई महिलाएं अपने बच्चों के साथ भीख मांगती है। कुछ भिखारी जोड़े के साथ अपना काम करते हैं। भिखारी इस गली में-भिखारन उस गली में। गली पूरी नप जाए तो दोनों बाहर वाले पेड़ के नीचे बैठकर हिसाब-किताब करते मिल जाएंगे।


भिखारियों को लेकर कई धाराएं फूटती नजर आती है। शासन-प्रशासन-बाजवक्त भिखारियों के दुश्मन बन जाते हैं। उनका मानना है कि इस जमात के कारण शहर और देश की ‘हेटी लगती है। बाहर से आपने वाले ‘पावणे एक गलत संदेश लेकर जाते हैं। कई दफे उन्हें हटाने-भगाने के लिए अभियान भी चलाए जाते हैं। कुरसीदार छाती ठोक कर कहते हैं-‘फलां स्थान को भिखारी मुक्त बना दिया गया। उनकी छाती ठुकाई थमती ही नही कि चौक-चौबारों में भिखारी फिर दिख जाते हैं। टोले-मौहल्ले फिर से-‘देने वाले दाताराम के सुर से गूंज उठते हैं।


कोई उन्हें-भगाए-दुत्कारे-हड़काए यह उन का नजरिया। हमारे वास्ते-भिखारी अलग ही पहचान रखते हैं। बिन भिखारी शहर सून। भिखारी हैं तो रंगत है। भिखारी हैं तो दान है। भिखारी हैं तो दानदाता है। भिखारी हैं तो पुण्य है। भिखारी है तो पुण्यवान है। भिखारी है तो दया है। भिखारी हैं तो दयावान है। भारतीय संस्कृति-सभ्यता और समाज में ऐसे कई अवसर आते हैं, जब मुक्तहस्त से दान-पुण्य किया जाता है। लोग श्रद्धा मुजब दान-पुण्य करते हैं। भिखारी नही होते तो तुम्हारा दान कौन ग्रहण करता और कौन पुण्य। कोई दानदाता बना है तो भिखारियों की वजह से। भिखारी नही होते तो पुरखों के पीछे दान-पुण्य कैसे होता। पर हमारे द्वारा भिखारी भाईयों के महिमा मंडन का कारण कुछ और है जिस का बखान इन दिनों सोशल मीडिया पर भी हो रहा है। वहां भी भिखारियों की मजबूती, सहनशीलता और रोग प्रतिरोधक क्षमता का गुणगान किया जा रहा है।


देश-दुनिया में इन दिनों कोरोना कहर ढा रहा है। दुनियाभर में करोड़ो-संक्रमित और लाखों की मौत हो चुकी है। भारत में कई हस्तियां कोरोना के काल का ग्रास बन चुकी है तो कई लपेटे में। शासन-प्रशासन राग गाइडलाइन आलाप रहे हैं। मास्क लगाओ। दो गज की दूरी रखो। हाथों को नियमित रूप से धोते रहो। स्वच्छ रहो। अपने आस-पास सफाई रखो। काढा पीओ। गरम पानी का उपयोग करो और ना जाने कैसे-कैसे टोटके बताए जा रहे हैं। इन में से भिखारी भाईयों पर दो-चार भी लागू हो रहे हों तो बता द्यो। ना मास्क। ना सेनेटाइजर। ना देह दूरी। ना-नहाना। ना धोना। न जाने कितने हाथ लगा खाना इनके नसीब में । इसके बावजूद एक भिखारी कोरोना से मरा हो तो बता द्यो।
उनकी इसी मजबूती-सहनशीलता और रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता को देखकर जैकारा लगाया-‘भिखारी भाईयों की-जै।