लखी घूस

आप ने देखा या नहीं देखा पर सुना तो जरूर होगा। अखबारों में बांचा भी होगा। हो सकता है किसी ने लाइव देखा हो। हो सकता है किसी की नजर वारदात के बखत बनाए वीडियो की वायरलपंथी पे पड़ गई हो। कुल जमा देखा-सुना-पढा, उसके बावजूद किसी ने गंभीरता से गौर नही किया कि आज कल घूस भी लखी हो गई है। टटपूंजिए सौ-पचास-पांच सौ-हजार में निपट जाते होंगे। ज्यादातर लखी क्लब के सदस्य। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

अगर कोई हैरतभरे अंदाज से किसी को कहे-‘भाई महंगाई आसमान छू रही है तो यकीन मानिए अगला बंदा महंगाई को आसमान पे पहुंचाने वाले को ऐसे घूरेगा मानो वो अभी अभी जंगल से छूटकर आया हो। छूटने का अपना भरा-पूरा कुनबा है। लंबी-चौड़ी कायनात है। छूटना के तार कई प्रकार की ‘छूट से जुड़े हुए। अब तो खैर दस्युराज खलास प्राय हो गया, वरना एक जमाने में डाकू अंकलों का जोरदार आतंक हुआ करता था।

भिंड-मुरैना-अम्बा-चंबल के बीहड़ों में डाकू चाचा का राज। ये फलाणे का गिरोह-वो ढिमके का। दस्युरानियां भी हुआ करती थी। ये फूलमती की गैंग-वो सूतली बाई की। कोई डाके डालते। कोई धां..धू.. करते तो कोई किसी रईशजादे के बच्चों का अपहरण कर फिरौती मांगते। रकम ले आओ ‘छूट ले जाओ। किसी की गिरफ्त से छूटना-छूट। जमानत पे छूटना। पकड़ से छूटना। जेल से छूटना आदि-वगैरा भी ‘छूट से जुड़े हुए।

एक छूट वो जो ग्राहकों को ललचाने के लिए दी जाती है। त्यौंहार-पर्वों पर बाजारों में अक्सर भांत-भांत की स्कीम्स लांच होती है। इत्ते की खरीद पर इत्ते की छूट। दो चड्डियों के साथ बच्चे की बंडी की छूट। दस साबुन की बट्टी पे दो बट्टियों की छूट। कुल जमा छूट का अपना रूतबा है। जब इतनी छूटों का प्रचलन है तो जंगल की छूट ने किस का क्या बिगाड़ा। इसका मतलब ये कि यदि आप महंगाई बढने और बढते रहने की बात करेंगे तो किसी को हैरत नही होणी है। वरन वो आप को ऐसे देखेगा मानो आप येड़े हों। इसका मतलब ये कि महंगाई का बढना हैरतनाक नही रहा। इसकी पलट में कोई कहे कि पेटरोल के दाम चालीस रूपए लीटर हो गए तो मुंह आश्चर्य से फट सकता है। ऊपर का सांस ऊपर-नीचे का नीचे और मुंह से ‘आह।

एक जमाना था जब चुनावी मौसम और सदनों के सत्र के दौरान महंगाई और भ्रष्टाचार मुद्दे बन के टपकते थे। सदनों में तूफान खड़ा हो जाता। महंगाई ने भतेरों की कुर्सी हिला दी। भ्रष्टाचार ने सरकार पलट दी। मगर अब धमक तक नही हो रही। महंगाई बढ रही है तो बढ रही है, कोई चीखने वाला नहीं। कोई चिल्लाने वाला नहीं। कोई चीखे तो चीखे। चिल्लाए तो चिल्लाए। कोई सुनने वाला नहीं। आज जो दिल्ली की गद्दी खूंद रहे हैं वो अपने विपक्षी काल में पेटरोल के पैंतीस-चालीस रूपए पहुंच जाने पर बवाल मचा देते थे। सड़कें जाम कर देते थे। रेलों-बसों के पहिए रोक दिया करते थे आज उनके राज में पेटरोल-डीजल आग लगा रहे हैं और वो मलगोजे मार रहे हैं।

हथाईबाजों का कहना है कि जब हर चीज महंगी हो रही है तो घूसपंथी में उछाल आना भी लाजिमी है। जब नून-तेल-गैस-आटा-चावल-दाल और साक के दाम बढ सकते हैं तो घूस क्लब के सदस्यों ने क्या बिगाड़ा। कुमेद ्रक्लब की सदस्यता लेना महंगा हो गया। फायन क्लब महंगा हो गया। बेटरी क्लब की फीस बढ गई तो घूस क्लब के सदस्य पीछे क्यूं रहने वाले।

आप ने देखा होगा कि राज्य में पिछले दिनों से घूसखोरी पकडऩे के किस्सों की बाढ आई हुई है। पकड़े जाएं सो घूसखोर वरना अंदरखाने ना जाने कितने लोग ‘तियापांचाÓ करते होंगे। घूस खाऊ भी ऐसे-वैसे नहीं। कोई आईएएस तो कोई आईपीएस। कोई आरएएस तो कोई आरटीएस। निरीक्षक इन में। उप निरीक्षक इन में। प्रबंधक इन में। महाप्रबंधक इन में। घूस राशि भी लाखों में। कोई दो लाख लेते धरा गया तो कोई पांच लाख लेते। कुछ तो अपने सहायक घूसाधिकारी के साथ पकड़े गए जिन्हें हम-आप दलाल कहते हैं। ऐसा लगता हैं मानों घूसपंथियों ने रेट तय कर दी। जो सौ-पचास-हजार लेगा उसे क्लब से बाहर कर दिया जाएगा। खानी ही है तो लाख-पांच लाख खाओ। हजार-पांच सौ में क्या रखा है। हजार लेते पकड़े गए तो भी घूसखोर का मुलम्मा और लाखों लेते धरे गए तो भी वही, झोळ तो क्यूं ना लखी घूस का जैकारा लगाया जाए।

हथाईबाज सब देख रहे हैं। सब सुन रहे हैं। समन लाने वाले पांडु को पचास रूपए लेते देखा तो हजार लेते साब को भी। अब लखी क्लब के रोजिना दीदार हो रहे हैं। कुल जमा ये सब ठीक नहीं है।