
म्यांमार में देश की चुनी हुई सरकार का तख्तापलट कर अपने हाथों में लेने वाले कमांडर इन चीफ ऑफ द डिफेंस सर्विस मिन ऑन्ग ह्लेनिंग वर्ष 2011 से ही इस पद पर काबिज हैं। वो नेशनल डिफेंस सिक्योरिटी काउंसिल के भी सदस्य हैं।
इस काउंसिल के प्रमुख देश के राष्ट्रपति होते हैं। इससे पहले ह्लेनिंग ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ ऑफ द मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस भी रह चुके हैं। वर्ष 2011 की शुरुआत में उन्हें सेना का जनरल बनाया गया था। इसके बाद 2013 में वो फाइव स्टार जनरल बनाए गए। 5 नवंबर 2020 को ही उन्हें तातमदेव, जो म्यांमार की सेना का आधिकारिक नाम है, ने सीनियर जनरल घोषित किया था, जो देश के उप-राष्ट्रपति के बराबर होता है।

वर्ष 2011 में इरावेडी न्यूज ने खबर दी थी कि ये बहुत लोगों का मानना है कि ह्लेनिंग ने चीन के सैन्य अधिकारियों से नवंबर 2011 में बैठक की थी और म्यांमार और चीन के बीच सैन्य क्षेत्र में समझौते को मजबूती करने की कोशिश की थी।

माना ये भी जाता है कि इस दौरान उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग से भी मुलाकात की थी। मार्च 2012 में उन्होंने देश की राजनीति में सेना की अहम भूमिका को जारी रखने का भी समर्थन किया था। अप्रैल 2012 में म्यांमार की सरकार ने उन्हें वाइस सीनियर जनरल के पद पर आसीन किया था।

ह्लेनिंग पर लगातार ये आरोप लगते रहे हैं कि उनकी सेना के जवान उत्तरी म्यांमार में लगातार अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार उल्लंघन में शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग का कहना है कि रखाइन क्षेत्र में सेना इस तरह के कई मामलों में लिप्त हे। इसको लेकर यूएन ने कई बार चिंता भी जाहिर की है।

यूएन का यहां तक आरोप है कि सेना यहां पर नरसंहार, युद्ध अपराध में भी शामिल रही है। इन आरोपों को उस वक्त हवा मिली जब सोशल मीडिया साइट फेसबुक ने उनके साथ देश के 19 दूसरे शीर्ष अधिकारियों पर प्रतिबंध लगा रखा है। टिवटर ने भी ह्लेनिंग पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। संयुक्त राष्ट्र की एक जांच रिपोर्ट बताती है कि रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ हुए अपराधों में देश के कई अधिकारी शामिल रहे हैं।
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