दसवां वेद: सिर पर है करतार

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सांसो मत कर मूरखा, सिर पर है करतार।
वो ही सारै जगत रो, सांसो मेटण हार।।

हे मुर्ख। चिंता मत कर, क्योंकि सिर पर कर्तार है। वह सारे संसार के लोगों की चिंता मिटाने वाला है।

अत: औरों से आस की बजाय उसकी आस कर तुम्हारी सारी चिंताएं मिट जाएंगी। एक बार एक बादशाह अपने दल-बल के साथ शिकार खेलने को निकला।

शिकार करता हुआ वह जंगल में भटक गया। काफी देर तक वह भटकता रहा और भटकते भटकते आखिर वह एक गांव में जा पहुंचा।

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बादशाह वेष बदला हुआ था, अत: उसे किसी ने पहचाना नहीं। जब किसी ने पहचाना नहीं तो उसकी आवभगत कौन करता। उस गांव में एक जाट रहता था, जो अतिथियों का बड़ा सत्कार करता था।

औरों से आस की बजाय उसकी आस कर तुम्हारी सारी चिंताएं मिट जाएंगी

उसने बादशाह को अतिथि समझ कर अपने यहां ठहरा लिया और उसे खिलाया-पिलाया तथा रात को सोने के लिए उसे स्थान भी दिया।

बादशाह मन ही मन लगा तो उसने जाट को अपना परिचय दिया और कहा कि जब तुम्हें किसी बात का कष्ट हो तो तुम बेहिचक मेरे पास आना। समय व्यतीत होने लगा।

एक साल अकाल पड़ा। न मनुष्यों के खाने के लिए अन्न पैदा हुआ, न पशुओं के लिए घास ही। लोग बेहाल हो गए।

दुर्दिन आये देखकर एक दिन जाट ने सोचा कि क्यों न बादशाह के पास चलूं । कष्ट के समय बादशाह ने अपने पास आने को कहा भी था।

जाट गांव से रवाना हुआ और बादशाह के पास जा पहुंचा। जाट ने बादशाह को अपना परिचय दिया। बादशाह ने भी उसे पहचान कर उसका सत्कार किया। लेकिन इतने में नमाज का वक्त हो गया। बादशाह नमाज पढने को जाने लगा।

जाट ने तब वहां किसी से पूछा कि बादशाह क्या कर रहे हैं? उत्तर मिला कि बादशाह सलामत खुदा से दुआ मांग रहे हैं।

जब जाट को पूरी बात मालूम हुई तो वह सोचने लगा कि बादशाह तो खुद मांगता है।

फिर यह जिससे मांगता है, मैं भी उसी से क्यों न मांगूं? यह सोचकर जाट उसी वक्त वहां से चल दिया और गांव आकर ईश्वर की प्रार्थना में लग गया।

ईश्वर की कृपा से उसके दिन बदल गए। वह बहुत मालदार हो गया। संयोग से बादशाह का एक बार फिर उससे मिलना हुआ। बादशाह को पहचान लिया।

जाट ने अपना परिचय दिया। तब बादशाह ने जाट से पूछा कि तुम उस दिन चलें क्यों गए थे? किस काम के लिए आए बताया भी नहीं।

जाट ने कहा कि आप भी किसीसे मांग रहे थे, सो मैं ने भी उसी से मांगने का निश्चय किया। और बसी से मांगा और आज उसी की कृपास से मेरे सब तरह के ठाठ लग गए हैं।