मांडना कला को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास

बारां में शुरू होगा राजस्थान स्कूल ऑफ मांडना आर्ट्स, पांच प्रशिक्षक करेंगे तैयार

बारां। प्रदेश की मांडना कला को संरक्षित किया गया है। लोककला आगामी पीढ़ी तक पहुंच सके इसके लिए बारां में राजस्थान स्कूल ऑफ मांडना आर्ट्स प्रारंभ होगा। देश की विख्यात मांडना कलाकार कौशल्यादेवी इसकी संस्थापक होगी।

इंटैक कल्वीनर जितेंद्र शर्मा ने बताया कि इंटेक बारां चेप्टर ने बारां में राजस्थान स्कूल ऑफ मांडना आर्ट्स को विधिवत रूप से प्रारंभ करने की तैयारियां शुरू कर दी हैं। लगभग 5-6 महीने में इसका बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर शुरू हो जाएगा। इसमें देश की विख्यात मांडना कलाकार कौशल्या देवी संस्थापक होगी। स्कूल के लिए उन्होंने अपने निजी पैतृक मकान उपलब्ध कराने की सहमति दे दी है। इंटेक की ओर से संरक्षित किए गए 100 मांडनों का इसमें प्रदर्शन होगा। साथ ही रेगुलर क्लास भी लगाई जाएगी।

मांडना कलाकार कौशल्या का जन्म अरण्यखेड़ा कोटा में 1 सितंबर 1942 में जन्म हुआ। वहीं 10वीं तक पढ़ी हैं। उन्होंने मां कमलादेवी वशिष्ठ से मांडना बनाना सीखा। कौशल्या देवी का विवाह 1956 में मुंशी भवानीशंकर शर्मा के साथ विवाह हो गया था। 1991 में इंटेक के को कन्वीवर ठाकुर रणवीर सिंह के सुझाव पर मांडना कला को संरक्षित किया गया।

मांडना कला का डॉक्यूमेंटेशन किया गया है। इसमें मांडनों के बनाने का स्थान, मांडनों के प्रकार, मांडनों की अंर्त कथाएं, मांडना बनाने से लाभ, मांडने का गीत का दस्तावेजीकरण किया गया है। सौ मांडनो को संरक्षित करके इंटेक ने केंद्रीय लाइब्रेरी में रख लिया है, ताकि आने वाली पीढ़ी में यह कला सहेजी जा सके। मांडना जमीन पर गोबर पीली मिट्टी लीपकर गेरू और पांडु से बनाए जाते हैं। वहीं 2 गुणा 3 फीट के फ्रेम प्लाईशीटस इंटेक ने ऑयल पेंट से संरक्षित किया है।

देश की विख्यात मांडना कलाकार कौशल्यादेवी को इंटेक स्टेट सेंटर की ओर से लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड मिल चुका है। बारां नवरत्न सम्मान, जिला स्तरीय प्रशासन सम्मान प्राप्त है। कोटा इंटेक चेप्टर की ओर से महाराज इज्यराज सिंह ने सम्मानित किया है। वहीं जोधपुर महाराज गजसिंह ऑफ जोधपुर ने एक महीने तक मेहरानगढ़ फोर्ट में मांडनों की प्रदर्शनी लगाई है। जहां हजारों देशी विदेशी पर्यटकों ने मांडना कला देखी।

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