
जरूरी नही कि वहां जो कुछ हो रहा है, वो यहां भी हो। यह भी जरूरी नही कि जो यहां हो रहा है, वह वहां भी हो। यहां की वहां हुई तो वहां वाले जाने और वहां की यहां हुई तो योजनाओं का विस्तार निहायत जरूरी हो जाएगा। हर पकड़म पकड़ाई योजना पर अलग-अलग मेहनताना। इस पर इत्ते-उस पर उत्ते। उस पर उतने-इस पर इतने। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
यहां-वहां के अपने मायने। यहां के अपने मायने-वहां के अपने। इन पर लोगों के अपने-अपने विचार हो सकते हैं। वो लोग यहां और वहां के तार भी अपने हिसाब और सुविधा के अनुसार जोड़ सकते है। आजकल ज्यादातर क्षेत्रों में यही सब कुछ हो रहा है। प्रतिबद्धता और वचनबद्धता की बातें जरूर की जाती है मगर हकीकत में ऐसा होता दिखाई नही देता। मिसाल के तौर पे सौगंध-शपथ को ले लीजिए। कोर्ट-कचहरी में धार्मिक ग्रंथों को हाजर-नाजर मानकर सौगंध उठवाई जाती है। मैं सौगंध उठाकर कहता हूं कि जो कुछ कहूंगा-सच कहूंगा-सच के सिवाय और कुछ नहीं कहूंगा। इसके बावजूद जो कहाई-गवाही कैसी होती है, किसी से छुपी नही है। इन दिनों कानपुर वाले विकास दुबे कांड के जोरदार चर्चे हैं। विकास का एनकाउंटर हो चुका है।
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मगर उसके किस्से छन-छन कर बाहर आ रहे हैं। विकास ने वर्ष 2000 में यूपी के दरजा प्राप्त एक मंतरी की थाने में घुसकर हत्या कर दी थी। उस समय वहां करीब डेढ दरजन पुलिस वाले मौजूद थे। इस के बावजूद विकास का बाल भी बांका नही हुआ। सिपाही सही गवाह देते-सांची-सांची बता देते तो-उसे सजा हो के रहती मगर ऐसा कुछ नही हुआ। सिपाहियों ने भी कोर्ट में सौगंध उठाई होगी। साफ है कि गवहियां कैसी होती है।
डॉक्टर्स शपथ लेते हैं। पुलिस-प्रशासनिक अधिकारी अपने फर्ज-कर्तव्यों की शपथ लेते हैं। मंतरी पद की शपथ ली जाती है। जिसमे राग-द्वेष के बिना काम करने का वादा किया जाता है। इन दिनों राजस्थान में जो कुछ हो रहा है वह कौन से प्यार का पैगाम है, पूरा देश देख रहा है। मुख्यमंत्री का खेमा अलग-बर्खास्त उपमुख्यमंत्री का अलग। दोनों खेमें शपथ की चिंदिया उड़ा रहे हैं। समझ में नही आता कि शपथ-सौगंध उठाना सौ प्रतिशत झूठी प्रक्रिया है या लोगबाग अंटी लेकर सौगंध उठाते हैं। कुछ तो है तभी तो-कसमें-वादे प्यार-वफा सब बातें हैं बातों का क्या.. के सुर बरसों-अरसों पहले फूट गए थे। अब सुर के शब्द कदम-कदम पर बिखरे नजर आ रहे हं। क्या यहां और क्या वहां।
यहां के माने यहां और वहां के माने वहां। जो आप के सामने हो रहा है। जो आपके घर में हो रहा है। जो अपने समाज में हो रहा है। जो अपने तालुका-सूबे और देश में हो रहा है वो अपना। अपना बोले तो यहां और जो दूसरी जगह पे हो रहा हो। वह वहां। मिसाल के तौर पर किसी अन्य देश को लिया जा सकता है। अमेरिका को ले ल्यो। रूस-जापान-ब्रिटेन को ले ल्यो। फ्रांस को ले ल्यो। जर्मनी-थाईलैंड या मलेशिया को ले ल्यो।
वहां जो भी होगा वह उनके खाते में। हमारे यहां के कानून-कायदे अलग उनके वहां के अलग। ऐसा नही है कि जो हमारे यहां होता है वैसा वहां पर भी किया जाना अनिवार्य हो। अपन किसी देश के कानून-कायदों को अपने यहां लागू करते हैं क्या? नही। ठीक वैसे अपने नियम वहां लागू नही होते। उनके अपने कानून-कायदे, हमारे अपने। खुदा ना खास्ता वहां का एक नियम अपने यहां लागू कर दें तो पांच-पच्चीस और तैयार।
ऐसा होता भी है। यदि जनता से जुड़ा कोई फारमूला सॉलिड निकल जाए तो उसे अन्य जगहों पर लागू किया जा सकता है। राज्य ऐसा करते रहे हैं। क्षेत्र भले ही कोई सा हो। फारमूला फिट होना चाहिए। चिकित्सा क्षेत्र में कोई टोटका राजस्थान में हिट-फिट हो जाए तो उसका उपयोग महाराष्ट्र में हो सकता है। शिक्षा या रोजगार क्षेत्र में तेलंगाना फारमूला सफल हो जाए तो उसे यूपी-बिहार सरकार लागू कर सकती है। देश-देशों में भी एक-दूसरे के अनुभवों का लाभ लिया जा सकता है। लें या ना लें यह यहां-वहां की सरकार पर निर्भर। उदाहरण के तौर पे टिड्डों को ले ल्यो।
देश के कई राज्यों में इन दिनों टिड्डी-दलों का भयंकर प्रकोप है। सरकार उन के सफाए के लिए प्रयास कर रही हैं मगर फाकों के आगे सारे प्रयास बोने साबित हो रहे हैं। लोग अब टिड्डे पकड़ो-कमाओ योजना शुरू करने की मांग कर रहे हैं। चीन-पाकिस्तान में टिड्डों का भक्षण किया जाता है। नेपाल में एक टिड्डी पकडऩे पर एक रूपया मिलता है। गोरखे प्रतिदिन दो सौ-चार सौ टिड्डे पकड़ के संबंधित अफसर-विभाग केे हवाले कर देते है।
वहां की सरकार टिड्डियों को मुर्गियों का भोजन बनाने पर विचार कर रही है। हथाईबाजों ने सुना कि अपने यहां भी टिड्डी पकड़ो-कमाओ योजना शुरू करने की मांग उठ रही है। पूरी होना या ना होना कल की बात। यदि हो गई तो कई क्षेत्रों में ऐसी योजना लागू होने की मांग उठ सकती है। आवारा पशु पकड़ो-पांच रूपए लो। मिलावटी सामान पकड़वाओ-दो रूपए लो। ऐसा हुआ तो भेदियों-मुखबिरों की बाढ आ जाणी है। लोग पार्ट टाइम जॉब शुरू कर देंगे। भाईसेण पूछेंगे-‘साब कहा गए। जवाब मिलेगा-‘टिड्डे पकडऩे। लिहाजा उनके नियम उन्हें मुबारक। जिस हमारे हम को।