सोचा था कि येड़ों को नए आइडिया के बारे में क्या पता चलेगा। जो कुछ हैं, वो हम हैं। हम से बढ कर कौन। वो जरदा-बिड़ी का फटका मार रहे होंगे और हम निकल जाएंगे। पर, वो भूल गए कि उन से बड़े तुर्रम खान भी बैठे हैं। उनके सामने तुम्हारी कोई कुबद-आइडियाज चलने वाले नहीं। तुम डाल-डाल, हम पात-पात। तुम पात-पात, हम जड़-जड़। दिमाग सकारात्मक बातों की ओर लगाया होता तो इतना जोरदार झटका नहीं लगता। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
कई बार लगता है कि ‘हम से बढकर कौन और ‘हम चौड़े गली संकरी वाली कहावत अब रीत में बदलती जा रही है। क्या पिद्दी और क्या पिद्दी का सोरबा। इसके बावजूद घमंड-गुमान सातवें आसमान पर। हम आज तक ये बात नहीं समझ पाए कि जो लोग ‘सातवें आसमान की बात करते हैं वो लाए कहां से। आसमान तो एक है। जैसा अपने यहां-वैसा रूस-अमेरिका में। ऐसा तो है नहीं कि भारत में आसमान नीला हो और अमेरिका में गुलाबी और रूस में बेंगणिया। तारे यहां भी दिखते हैं-वहां भी। नभ में पंछी यहां भी स्वच्छंद विचरण करते हैं-वहां भी। सूरज यहां भी निकलता है-वहां भी। यह बात दीगर है कि वहां सूरज दादा के दर्शन रोजाना नहीं होते। चंदा मामा यहां भी शीतल चांदनी बिखेरते है-वहां भी। यहां के और वहां के आकाश मिलते-जुलते। फिर सातवां आसमान कहां से आ गया। एक मिनट के लिए मान लें कि हर देश का आसमां अलग-अलग। तब तो जित्ते देश-वित्ते आकाश होने चाहिए थे। पर वो सातवें पर ही आकर क्यूं अटके।
इस पर एक सवाल और। सात से पहले छह। उससे पहले पांच। उससे पहले चार, तीन, दो, एक। इस के माने आसमां सात मंजिल का। मल्टी स्टोरी। जैसे आसमां ना होकर सात माले का मॉल हो। पहली मंजिल में पंछियों का डेरा। दूसरे में जल-पानी। तीसरे में चांद। चौथे में सूरज। पांचवें में तारों का जमघट। बाकी के दो याने कि छठी और सातवीं मंजिल में ग्रह-नक्षत्र। एक में शुक्र-शनि-मंगल। दूसरे में बुध-गुरू-राहू-केतु। हम जानते हैं कि आसमान एक है। इसके बावजूद सातवें आसमान की चर्चा समझ से बाहर।
गौर करने लायक बात ये कि टॉप फ्लोअर से जोडऩे वालों ने इसे इस कदर जोड़ा कि किंतु-परंतु की गुंजाइश ही नहीं। इमारत सात मंजिल की हो तो लिफ्ट या सीढियों के रास्ते ऊपर-नीचे आया-जा सकता है। सातवें आसमां का सफर कैसे तय होगा। इस का खुलासा किसी भी ज्ञानी-ध्यानी ने नहीं किया। जरूरत इसलिए नहीं पड़ी कि वो जानते हैं थे कि समय दिन-ब-दिन उलटा-पुलटा आने वाला है। तभी तो उसके तार घमंड-गुस्से-नशे और नाज-नखरों से जोड़े गए। अपन अक्सर कहते हैं-‘गुस्सा सातवें आसमान पर। घमंड सातवें आसमान पर। गुरूर सातवें आसमान पर। नाज-नखरे सातवें आसमान पर। ये सारे अवगुण मानखा जमात के दिमाग में घुसे हुए। वही तो सातवां आसमान। बोले तो-शरीर के टॉप पर।
जिन के दिमाग में हमेशा कुबद-घुसी रहती है। जो मानखे मद-घमंड और गुरूर में मगरूर रहते हैं वो हम से बढकर कौन वाली गलतफहमी पाले हुए। ऐसे लोगों को ढंूढने की जरूत नहीं। आस-पड़ोस में ही मिल जाएंगे। हो सकता है घर में भी मिल जाएं। किसी को अपने भीतर झांकने की फुरसत मिल जाए तो झांक के देख लेना, हो सकता है अंदर बैठा मिल जाए। कहते हैं कि कुबदी-अहंकारी और घमंडी को दुश्मन की दरकार नहीं रहती। खुद उसके ये अवगुण दुश्मनी निकालने के लिए काफी हैं।
हथाईबाज देख रहे हैं कि लोगों का दिमाग नकारात्मक बातों की ओर ज्यादा झुकता जा रहा है। उन की सोच नकारात्मक। उनके विचार नकारात्मक। उनके बोल घटिया। उनके करम नकारात्मक। उन का दिमाग हर समय उसी में लगा रहता है। ऐसे लोग सामने वाले को लल्लू समझते हैं। वो नहीं जानते कि यहां सेर के सवा सेर बैठे हैं। अब तो सवा सेर पीछे छूट गए। किलो का जमाना आ गया। मण-क्ंिवटल वाले लोग झुके नजर आते हैं और वो आज भी सेर की ढेरी लिए बैठे हैं। कुबद नहीं छूटे गोपाल।
हथाईबाज हर तौर-तरीके में आए बदलाव के साथ-साथ तस्करी में आया परिवर्तन भी देख रहे हैं। तस्कर नित नई कुबद करने से बाज नहीं आ रहे। ट्रक के निचले हिस्से में तस्करी का माल ऊपर चावल के कट्टे। दूध के टैंकर में तस्करी का माल। एंबुलेंस के जरिए तस्करी। कभी यहां छुपाई। कभी वहां। इसके बावजूद पकड़े जाते हैं फिर भी कुबद नहीं छूटे राम। नई कुबद बीस करोड़ के एसी के रूप में चौड़े आई।
मुंबई कस्टम विभाग ने सिंगापुर से आए एक एसी कसाइमेंट की ठोक-परख की तो चौंकाने वाले खुलासे हुए। बक्सों में सोना छुपाकर रखा था। उस की कीमत करीब बीस करोड़ और वजन करीब बीस किलो। एसी की कीमत 36 लाख। तस्करों ने अपनी कुबद से उसे बीस किलो छत्तीस लाख का बना दिया। सोचा था कि भा’ सा जरदा-बिड़ी में मस्त होंगे। कौन इतनी चैकिंग करेगा। पर उनकी कुबद धरी रह गई। अफसरों की सक्रियता उन पर भारी पड़ गई। हथाईबाजों का कहना है कि ऐसे लोग अपना दिमाग कुबद और नकारात्मकता की बजाय सकारात्मक कार्यों में लगाएं तो कितना अच्छे रहे।