श्रीलंका की तरह ये देश भी कंगाली की तरफ बढ़े

श्रीलंका

इनमें कई भारत के पड़ोसी, जानें कैसे हैं यहां के हालात?

श्रीलंका में आर्थिक संकट के चलते हालात काफी खराब हो चुके हैं। राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे देश छोड़कर भाग चुके हैं। श्रीलंका की जनता सड़कों पर उतर आई है। महंगाई के चलते खाने-पीने के दाम काफी बढ़ चुके हैं। गरीब भूखे सोने को मजबूर हो चुके हैं।
पेट्रोल-डीजल के लिए लोगों की लंबी लाइनें लग रहीं हैं। श्रीलंका भारी विदेशी कर्ज में डूबा था। कई बार विदेशी कर्ज चुकाने के लिए समय मिला, लेकिन श्रीलंका नहीं कर पाया। अंत में श्रीलंका ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया।
श्रीलंका इकलौता देश नहीं है, जो इस तरह के आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। दुनिया में अभी ऐसे कई देशों में इस तरह के हालात बन चुके हैं। इनमें कई भारत के पड़ोसी मुल्क हैं।

ये देश भी हो चुके हैं दिवालिया

श्रीलंका से पहले अमेरिकी देश अर्जेंटीना साल 2000 से 2020 के बीच दो बार दिवालिया हो चुका है। 2012 में ग्रीस, 1998 में रूस, 2003 में उरुग्वे, 2005 में डोमिनिकन रिपब्लिक और 2001 में इक्वाडोर भी दिवालिया हो चुका है। इसके अलावा जर्मनी, जापान, यूके जैसे 83 देश अलग-अलग समय पर दिवालिया घोषित हो चुके हैं।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस साल श्रीलंका के अलावा लेबनान, रूस, सूरीनाम और जाम्बिया भी समय से कर्ज नहीं चुका पाए और दिवालिया घोषित हो गए। बेलारूस, म्यांमार, पाकिस्तान, अर्जेंटीना, ट्यूनीशिया, यूक्रेन जैसे देश भी इसी कगार पर हैं।

पहले जानिए श्रीलंका में कैसे शुरू हुआ आर्थिक संकट?

यह समझने के लिए आपको एक दशक पहले चलना होगा। बात साल 2009 की है। श्रीलंका 26 साल से जारी गृहयुद्ध से निकला था। युद्ध के बाद की उसकी जीडीपी वृद्धि वर्ष 2012 तक प्रति वर्ष 8-9त्न के उपयुक्त उच्च स्तर पर बनी रही, लेकिन वैश्विक कमोडिटी मूल्यों में गिरावट, निर्यात की मंदी और आयात में वृद्धि के साथ वर्ष 2013 के बाद उसकी औसत जीडीपी विकास दर घटकर लगभग आधी रह गई।
2008 में गृहयुद्ध के दौरान श्रीलंका का बजट घाटा बहुत ज्यादा था। ऊपर से वैश्विक मंदी का भी दौर था। इसके चलते श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग समाप्त होता गया, जिसके कारण देश को वर्ष 2009 में ढ्ढरूस्न से 2.6 बिलियन डॉलर का कर्ज लेना पड़ा। इस कर्ज का असर 2013 के बाद देखने को मिला। जीडीपी तेजी से घट रही थी और कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा था। 2016 में श्रीलंका एक बार फिर 1.5 बिलियन डॉलर कर्ज के लिए आईएमएफ के पास पहुंचा, लेकिन आईएमएफ की शर्तों ने श्रीलंका की आर्थिक स्थिति को और बदतर कर दिया।
खैर, श्रीलंका की कमाई का मुख्य जरिया पर्यटन और खेती है। 2019 में इसे भी जोरदार झटका लगा। अप्रैल 2019 के बाद कोलंबो के विभिन्न गिरिजाघरों पर कई हमले हुए। पर्यटन अचानक से 80 फीसदी तक घट गया और इसका असर विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ा। 2019 में सत्ता में आई गोतबाया राजपक्षे की सरकार ने अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिए टैक्स घटा दिया। किसानों को भी कई तरह की रियायत दे दीं, जिससे अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान हुआ। वहीं, श्रीलंका ने आईएमएफ से भी ज्यादा कर्ज चीन से ले लिया, जिसने देश को पूरी तरह तोड़ दिया।


अभी श्रीलंका पुराने नुकसान से जूझ ही रहा था कि साल 2020 में कोरोना महामारी ने हालात पूरी तरह से खराब कर दिए। कोरोना के चलते चाय, रबर, मसालों और कपड़ों के एक्सपोर्ट पर असर पड़ा। पर्यटक आए नहीं, जिससे श्रीलंका के राजस्व और विदेशी मुद्रा की कमाई में जबरदस्त गिरावट आ गई। सरकार के व्यय में वृद्धि के कारण वर्ष 2020-21 में राजकोषीय घाटा 10 फीसदी से अधिक हो गया और ‘ऋण-जीडीपी अनुपातÓ वर्ष 2019 में 94 प्रतिशत के स्तर से बढ़कर वर्ष 2021 में 119त्न हो गया। उधर, सरकार ने खेती में केमिकल के प्रयोग पर पूरी तरह से रोक लगा दी। इसके चलते कृषि उत्पादन पर बुरी तरह से असर पड़ा और कृषि से होने वाली आय भी घट गई।
कोरोना के इन दो साल में श्रीलंका पूरी तरह डूब गया। एक तरफ कर्ज का ब्याज चुकाना पड़ रहा था और दूसरी तरफ देश के लिए ईंधन व अन्य जरूरी सामान आयात करना था। धीरे-धीरे श्रीलंका के पास मौजूद विदेशी मुद्रा पूरी तरह से खत्म हो गई, जिसके बाद अप्रैल 2022 में श्रीलंका ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया।

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