
गोविन्द शरण प्रसाद
गिलोय का वैज्ञानिक नाम है-टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया। इसे अंग्रेजी में गुलंच कहते हैं। कन्नड़ में अमरदवल्ली , गुजराती में गालो , मराठी में गुलबेल , तेलगू में गोधुची ,तिप्प्तिगा , फारसी में गिलाई,तमिल में शिन्दिल्कोदी आदि नामों से जाना जाता है। गिलोय में ग्लुकोसाइन, गिलो इन , गिलोइनिन , गिलोस्तेराल तथा बर्बेरिन नामक एल्केलाइड पाये जाते हैं। अगर आपके घर के आस-पास नीम का पेड़ हो तो आप वहां गिलोय बो सकते हैं । नीम पर चढी हुई गिलोय उसी का गुड अवशोषित कर लेती है, इस कारण आयुर्वेद में वही गिलोय श्रेष्ठ मानी गई है जिसकी बेल नीम पर चढी हुई हो. गिलोय हमारे यहां लगभग सभी जगह पायी जाती है। गिलोय को अमृता भी कहा जाता है ।
यह स्वयं भी नहीं मरती है और उसे भी मरने से बचाती है, जो इसका प्रयोग करे । कहा जाता है की देव दानवों के युद्ध में अमृत कलश की बूँदें जहाँ जहाँ पडी, वहां वहां गिलोय उग गई । यह मैदानों, सडक़ों के किनारे, जंगल, पार्क, बाग-बगीचों, पेड़ों-झाडिय़ों और दीवारों पर लिपटी हुई दिख जाती है। इसकी बेल बड़ी तेजी से बढ़ती है। इसके प ो पान की तरह बड़े आकार के हरे रंग के होते हैं। गर्मी के मौसम में आने वाले इसके फूल छोटे गुच्छों में होते हैं और इसके फल मटर जैसे अण्डाकार, चिकने गुच्छों में लगते हैं जो बाद में पकने पर लाल रंग के हो जाते हैं। गिलोय के बीज सफेद रंग के होते हैं।
जमीन या गमले में इसकी बेल का एक छोटा सा टुकड़ा लगाने पर भी यह उग जाती है और बड़ी तेज गति से स्वछन्द रूप से बढ़ती जाती है और जल्दी ही बहुत लम्बी हो जाती है । गिलोय को अमृता, गड़ूची, मधुपर्जी आदि अनेक नामों से भी जाना जाता है। कुछ तीखे कड़वे स्वाद वाली गिलोय देशभर में पायी जाती है। आयुर्वेद में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। आचार्य चरक ने गिलोय को वात दोष हरने वाली श्रेष्ठ औषधि माना है। वैसे इसका त्रिदोष हरने वाली, रक्तशोधक, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली, ज्वर नाशक, खांसी मिटाने वाली प्राकृतिक औषधि के रूप में खूब उपयोग किया जाता है।
यह एक झाडीदार लता है। इसकी बेल की मोटाई एक अंगुली के बराबर होती है इसी को सुखाकर चूर्ण के रूप में दवा के तौर पर प्रयोग करते हैं। टाइफायड, मलेरिया, कालाजार, डेंगू, एलीफेंटिएसिस, विषम ज्वर, उल्टी, बेहोशी, कफ, पीलिया, धातु विकार, यकृत निष्क्रियता, तिल्ली बढऩा, सिफलिस, एलर्जी सहित अन्य त्वचा विकार, झाइयां, झुर्रियां, कुष्ठ आदि में गिलोय का सेवन आश्चर्यजनक परिणाम देता है। यह शरीर में इंसुलिन उत्पादन क्षमता बढ़ाती है। रोगों से लडऩे, उन्हें मिटाने और रोगी में शक्ति के संचरण में यह अपनी विशिष्ट भूमिका निभाती है। सचमुच यह प्राकृतिक ‘कुनैन’ है।
इसका नियमित प्रयोग सभी प्रकार के बुखार, लू, पेट कृमि, रक्त विकार, निम्र रक्तचाप, हृदय दौर्बल्य, क्षय (टीबी), मूत्र रोग, एलर्जी, उदर रोग, मधुमेह, चर्म रोग आदि अनेक व्याधियों से बचाता है। गिलोय भूख भी बढ़ाती है। इसकी तासीर गर्म होती है। एक बार में गिलोय की लगभग 20 ग्राम मात्रा ली जा सकती है। गिलोय की बेल को हलके नाखूनों से छीलकर देखिये नीचे आपको हरा,मांसल भाग दिखाई देगा । इसका काढा बनाकर पीजिये । यह शरीर के त्रिदोषों को नष्ट कर देगा । आज के प्रदूषणयुक्त वातावरण में जीने वाले हम लोग हमेशा त्रिदोषों से ग्रसित रहते हैं।
हमारा शरीर कफ ,वात और पित्त द्वारा संचालित होता है । पि ा का संतुलन गडबडाने पर पीलिया, पेट के रोग जैसी कई परेशानियां सामने आती हैं । कफ का संतुलन बिगडे तो सीने में जकडऩ, बुखार आदि दिक्कते पेश आती हैं । वात [वायु] अगर असंतुलित हो गई तो गैस ,जोडों में दर्द ,शरीर का टूटना ,असमय बुढापा जैसी चीजें झेलनी पड़ती हैं ।
अगर आप वातज विकारों से ग्रसित हैं तो गिलोय का पाँच ग्राम चूर्ण घी के साथ लीजिये । पित्त की बिमारियों में गिलोय का चार ग्राम चूर्ण चीनी या गुड के साथ खालें तथा अगर आप कफ से संचालित किसी बीमारी से परेशान हो गए है तो इसे छ: ग्राम कि मात्र में शहद के साथ खाएं। गिलोय एक रसायन एवं शोधक के रूप में जानी जाती है जो बुढापे को कभी आपके नजदीक नहीं आने देती है। यह शरीर का कायाकल्प कर देने की क्षमता रखती है।
किसी ही प्रकार के रोगाणुओं ,जीवाणुओं आदि से पैदा होने वाली बिमारियों, खून के प्रदूषित होने बहुत पुराने बुखार एवं यकृत की कमजोरी जैसी बिमारियों के लिए यह रामबाण की तरह काम करती है । मलेरिया बुखार से तो इसे जातीय दुश्मनी है। पुराने टायफाइड ,क्षय रोग, कालाजार ,पुराणी खांसी, मधुमेह [शुगर ] ,कुष्ठ रोग तथा पीलिया में इसके प्रयोग से तुंरत लाभ पहुंचता है । बाँझ नर या नारी को गिलोय और अश्वगंधा को दूध में पकाकर खिलाने से वे बाँझपन से मुक्ति पा जाते हैं। इसे सोंठ के साथ खाने से आमवात-जनित बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं ।
गिलोय तथा ब्राह्मी का मिश्रण सेवन करने से दिल की धडक़न को काबू में लाया जा सकता है।
गिलोय तथा ब्राह्मी का मिश्रण सेवन करने से दिल की धडक़न को काबू में लाया जा सकता है। इसमें प्रचुर मात्रा में एन्टी आ सीडेन्ट होते हैं। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर सर्दी, जुकाम, बुखार से लेकर कैंसर तक में लाभकारी है। स्वस्थवृत्त सूत्र – मित-भुक्, हित-भुक्, ऋ त-भुक सूत्र का पालन करें, स्वास्थ्य के लिए हितकारी भोजन का सेवन करें, मौसम के अनुसार खायें, भूख से कम भोजन करें। यह सभी तरह के व्यक्ति बड़े आराम से ले सकते हैं । ये हर तरह के दोष का नाश करती है । दीर्घायु प्रदान करने वाली अमृत तुल्य गिलोय और गेहूं के ज्वारे के रस के साथ तुलसी के 7 पत्ते तथा नीम के पत्ते खाने से कैंसर जैसे रोग में भी लाभ होता है।
गिलोय और पुनर्नवा मिर्गी में लाभप्रद होती है। इसे आवश्यकतानुसार अकेले या अन्य औषधियों के साथ दिया जाता है।
गिलोय और पुनर्नवा मिर्गी में लाभप्रद होती है। इसे आवश्यकतानुसार अकेले या अन्य औषधियों के साथ दिया जाता है। अनेक रोगों में इसे पशुओं के रोगों में भी दिया जाता है। इसको लगाना बेहद आसान है और इसके लिए खास देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती। इस उपयोगी बेल को हर घर में लगाया जाना चाहिए। इसकी डंडी का ही प्रयोग करते हैं; पत्तों का नहीं । उसका लिसलिसा पदार्थ ही दवाई होता है । डंडी को ऐसे भी चूस सकते है । चाहे तो डंडी कूटकर, उसमें पानी मिलाकर छान लें । हर प्रकार से गिलोय लाभ पहुंचाएगी । इसे लेते रहने से रक्त संबंधी विकार नहीं होते। ह्लश3द्बठ्ठह्यखत्म हो जाते हैं , और बुखार तो बिलकुल नहीं आता । पुराने से पुराना बुखार खत्म हो जाता है।
इससे पेट की बीमारी, दस्त, पेचिश, आंव, त्वचा की बीमारी, liver की बीमारी, tumor, diabetes, बढ़ा हुआ ESR, टीबी, white discharge, हिचकी की बीमारी आदि ढेरों बीमारियाँ ठीक होती हैं । अगर पीलिया है तो इसकी डंडी के साथ; पुनर्नवा (साठी; जिसका गाँवों में साग भी खाते हैं) की जड़ भी कूटकर काढ़ा बनायें और पीयें । kidney के लिए भी यह बहुत बढिय़ा है गिलोय के नित्य प्रयोग से शरीर में कान्ति रहती है और असमय ही झुर्रियां नहीं पड़ती । शरीर में गर्मी अधिक है तो इसे कूटकर रात को भिगो दें और सवेरे मसलकर शहद या मिश्री मिलाकर पी लें। अगर platelets बहुत कम हो गए हैं, तो चिंता की बात नहीं, aloe vera और गिलोय मिलाकर सेवन करने से एकदम platelets बढ़ते हैं। कैंसर की बीमारी में 6 से 8 इंच की इसकी डंडी लें इसमें wheat grass जूस और 5-7 पत्ते तुलसी के और 4-5 पत्ते नीम के डालकर सबको कूटक काढ़ा बना लें । इसका सेवन खाली पेट करने से aplastic anaemia ठीक होता है ।
विभिन्न रोगों और मौसम के अनुसार गिलोय के अनुप्रयोग- गिलोए रस 10-20 मिलीग्राम, घृतकुमारी रस 10-20 मिलीग्राम, गेहूँ का जवारा 10-20 मिलीग्राम , तुलसी 7 प ो, नीम 2 प ो, सुबह शाम खली पेट सेवन करने से कैंसर से लेकर सभी असाध्य रोगों में लाभ होता है यह पंचामृत शरीर की शुद्धि व् रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए अत्यंत लाभकारी है… इसे रसायन के रूप में शुक्रहीनता दौर्बल्य में भी प्रयोग करते हैं व ऐसा कहा जाता है कि यह शुक्राणुओं के बनने की उनके सक्रिय होने की प्रक्रिया को बढ़ाती है । इस प्रकार यह औषधि एक समग्र कायाकल्प योग है-शोधक भी तथा शक्तिवर्धक भी ।
निर्धारणानुसार प्रयोग-जीर्ण ज्वर या 6 दिन से भी अधिक समय से चले आ रहे न टूटने वाले ज्वरों में गिलोय चालीस ग्राम अच्छी तरह कुचल कर मिट्टी के बर्तन में पाव भर पानी में मिलाकर रात भर ढक कर रखते हैं व प्रात: मसल कर छान लेते हैं । 80 ग्राम की मात्रा दिन में तीन बार पीने से जीर्ण ज्वर नष्ट हो जाता है । ऐसे असाध्य ज्वरों में, जिसके कारण का पता सारे प्रयोग परीक्षणों के बाद भी नहीं चल पाता (पायरेक्सिया ऑफ अननोन ऑरीजन) समूल नष्ट करने का बीड़ा गिलोय ही उठाती है । एक पाव गिलोय 8 सेर जल में पकाकर आधा अवशेष जल देने से पर ज्वर दूर होता है व जीवनशक्ति बढ़ती है । हर्बल पंचामृत – गिलोय-रस 10 से 20 मिलीग्राम, घृतकुमारी रस 10 से 20 मिलीग्राम, गेहूं का ज्वारा 10 से 20 मिलीग्राम, तुलसी-7 प ो, सुबह शाम खाली पेट सेवन करने से कैंसर से लेकर सभी असाध्य रोगों में अत्यन्त लाभ होता है। यह पंचामृत शरीर की शुद्धि व रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए अत्यन्त लाभकारी है। गिलोय – सर्दी जुकाम, बुखार आदि में एक अंगुल मोटी व 4 से 6 लम्बी गिलोय लेकर 400 ग्राम पानी में उबालें, 100 ग्राम रहने पर पीयें। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता/इम्यून सिस्टम को मजबूत कर त्रिदोषों का शमन करती है व सभी रोगों, बार बार होने वाले सर्दी, जुकाम बुखार आदि को ठीक करती है। घृतकुमारी – ताजा प ाा लेकर छिलका उतारकर अन्दर के गूदेदार भाग या रस निकालकर 20 से 40 मिली ग्राम सेवन करें। यह सभी वात-रोग, जोड़ों का दर्द, उदर रोग, अम्लपित्त, मधुमेह इत्यादि में लाभप्रद है। तुलसी – प्रात: काल खाली पेट 5 से 10 ताजा तुलसी के प ो पानी के साथ लें। इसका काढ़ा यूं भी स्वादिष्ट लगता है नहीं तो थोड़ी मिश्री या शहद भी मिलाकर ले सकते हैं । इसकी डंडी गन्ने की तरह खडी करके बोई जाती है । इसकी लता अगर नीम के पेड़ पर फैली हो तो सोने में सुहागा है । अन्यथा इसे अपने गमले में उगाकर रस्सी पर चढ़ा दीजिए, देखिए कितनी अधिक फैलती है यह बेल और जब थोड़ी मोटी हो जाए तो प ो तोडकर डंडी का काढ़ा बनाइये या शरबत। दोनों ही लाभकारी हैं । यह त्रिदोशघ्न है अर्थात किसी भी प्रकृति के लोग इसे ले सकते हैं । गिलोय का लिसलिसा पदार्थ सूखा हुआ भी मिलता है । इसे गिलोय सत कहते हैं । इसका आरिष्ट भी मिलता है जिसे अमृतारिष्ट कहते हैं । अगर ताज़ी गिलोय न मिले तो इन्हें भी ले सकते हैं । यदि गिलोय को घी के साथ दिया जाए तो इसका विशेष लाभ होता है, शहद के साथ प्रयोग से कफ की समस्याओं से छुटकारा मिलता है। प्रमेह के रोगियों को भी यह स्वस्थ करने में सहायक है।
ज्वर के बाद इसका उपयोग टॉनिक के रूप में किया जाता है। यह शरीर के त्रिदोषों (कफ ,वात और पित्) को संतुलित करती है और शरीर का कायाकल्प करने की क्षमता रखती है। गिलोय का उल्टी, बेहोशी, कफ, पीलिया, धातू विकार, सिफलिस, एलर्जी सहित अन्य त्वचा विकार, चर्म रोग, झाइयां, झुर्रियां, कमजोरी, गले के संक्रमण, खाँसी, छींक, विषम ज्वर नाशक, सुअर लू, बर्ड लू, टाइफायड, मलेरिया, कालाजार, डेंगू, पेट कृमि, पेट के रोग, सीने में जकडऩ, शरीर का टूटना या दर्द, जोडों में दर्द, रक्त विकार, निम्र रक्तचाप, हृदय दौर्बल्य, क्षय (टीबी), लीवर, किडनी, मूत्र रोग, मधुमेह, रक्तशोधक, रोग प्रतिरोधक, गैस, बुढापा रोकने वाली, खांसी मिटाने वाली, भूख बढ़ाने वाली पाकृतिक औषधि के रूप में खूब प्रयोग होता है। गिलोय भूख बढ़ाती है, शरीर में इंसुलिन उत्पादन क्षमता बढ़ाती है। अमृता एक बहुत अच्छी उपयोगी मूत्रवर्धक एजेंट है जो कि गुर्दे व पित्ताशय की पथरी को दूर करने में मदद करता है और रक्त से रक्त यूरिया कम करता है। गिलोय रक्त शोधन करके शारीरिक दुर्बलता को भी दूर करती है। यह कफ को छांटता है। धातु को पुष्ट करता है। ह्रदय को मजबूत करती है। इसे चूर्ण, छाल, रस और काढ़े के रूप में इस्तेमाल किया जाता है और इसके तने को कच्चा भी चबाया जा सकता है।
गिलोय के कुछ अन्य अनुप्रयोग- गिलोय एक रसायन है, यह रक्तशोधक, ओजवर्धक, ह्रुदयरोग नाशक ,शोधनाशक और लीवर टोनिक भी है। यह पीलिया और जीर्ण ज्वर का नाश करती है अग्नि को तीव्र करती है, वातरक्त और आमवात के लिये तो यह महा विनाशक है। गिलोय के 6? तने को लेकर कुचल ले उसमे 4 -5 पत्तियां तुलसी की मिला ले इसको एक गिलास पानी में मिला कर उबालकर इसका काढा बनाकर पीजिये। और इसके साथ ही तीन च मच एलोवेरा का गुदा पानी में मिला कर नियमित रूप से सेवन करते रहने से जिन्दगी भर कोई भी बीमारी नहीं आती। और इसमें पपीता के 3-4 प ाो का रस मिला कर लेने दिन में तीन चार लेने से रोगी को प्लेटलेट की मात्रा में तेजी से इजाफा होता है प्लेटलेट बढ़ाने का इस से बढिय़ा कोई इलाज नहीं है यह चिकन गुनियां डेंगू स्वायन लू और बर्ड लू में रामबाण होता है। वर्तमान में कोरोना प्रकोप से भी इससे बचाव होगा ।
गैस, जोडों का दर्द ,शरीर का टूटना, असमय बुढापा वात असंतुलित होने का लक्षण हैं। गिलोय का एक च मच चूर्ण को घी के साथ लेने से वात संतुलित होता है । गिलोय का चूर्ण शहद के साथ खाने से कफ और सोंठ के साथ आमवात से स बंधित बीमारीयां (गठिया) रोग ठीक होता है। गिलोय और अश्वगंधा को दूध में पकाकर नियमित खिलाने से बाँझपन से मुक्ति मिलती हैं। गिलोय का रस और गेहूं के जवारे का रस लेकर थोड़ा सा पानी मिलाकर इस की एक कप की मात्रा खाली पेट सेवन करने से रक्त कैंसर में फायदा होगा। गिलोय और गेहूं के ज्वारे का रस तुलसी और नीम के 5-7 पत्ते पीस कर सेवन करने से कैंसर में भी लाभ होता है। क्षय (टी .बी .) रोग में गिलोय सत्व, इलायची तथा वंशलोचन को शहद के साथ लेने से लाभ होता है। गिलोय और पुनर्नवा का काढ़ा बना कर सेवन करने से कुछ दिनों में मिर्गी रोग में फायदा दिखाई देगा।एक च मच गिलोय का चूर्ण खाण्ड या गुड के साथ खाने से पि ा की बिमारियों में सुधार आता है और क ज दूर होती है। गिलोय रस में खाण्ड डालकर पीने से पि ा का बुखार ठीक होता है और गिलोय का रस शहद में मिलाकर सेवन करने से पि ा का बढऩा रुकता है।