लाखों के पिंचर

सवाल ये नहीं कि पिंचर पे लाखों रूपए कैसे खर्च हो रहे हैं। सवाल ये कि जब पिंचर पे लाखों रूपए खर्च हो रहे हैं तो दीगर खड्डे-खाडों पर कितने होते होंगे। यह रिसाव रोकने के कई जरिए हैं। यहां भी सवाल कि जरिए ढूंढे तो कौन। इस पर सलाह ये कि शासन-प्रशासन को खुद का एक अलग विभाग खोल के मिस्त्री-सहायकों को बंधी-बंधाई तनखा पे रख लेना चाहिए ताकि ट्यूब में और ज्यादा पिंचर ना हों। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

पिंचर असल में ‘पंक्चर का स्थानीय भाषा में अनुवाद है साथ ही ‘पंक्चर का अपभ्रंश भी। अगर लिखाई की बात करें तो आप को साइकिल से लेकर ट्यूब-टायर वाले मिस्त्रियों की दुकानों पर टंगे बोडों में ‘पंक्चर लिखा मिल जाएगा और यदि ठेठ देशी अंदाज में कहा जाए तो ‘पंक्चर की जगह ‘पिंचर ही निकलेगा। किसी शब्द या नाम का अपभ्रंश होना कोई नई बात नही है। मोर को मोरिया और कबूतर को कबुड़ा कह दो तो मोर और कबूतर बुरा मानने वाले नहीं। बात अपने यहां की नहीं। देश का कोई क्षेत्र ले ल्यो।

जो असर स्थानीय भाषा का होता है वह किसी का नही होता। अंगरेजी भले ही माध्यम भाषा के रूप में प्रसिद्ध हो, मगर स्थानीय भाषा का अपना रूतबा है। कोई ठेठ गुवाड़ी-गांव में जाकर ओनियन.. ओनियन.. का रट्टा मारे तो दिमाग से बाहर। प्याज की राग छेड़े तो हो सकता है किसी को समझ में आ जाए और अगर ‘कांदा कह दिया जाए तो किसी को अगलें-बगलें झाकणे की भी जरूरत नहीं। इसी प्रकार लहसुन का अपभ्रंश लसण और तरबूज का देशीकरण मतीरा।

यदि किसी का वाहन पंक्चर हो जाए तो मिस्त्री के पास जाकर यही कहेंगे कि भाई पिंचर निकाल दो। वाहन साइकिल भी हो सकता है। फटफटिया-बाइक या ऑटो भी। ट्रक भी हो सकता है-ट्रोला भी। ऐसा नहीं कि केवल साइकिलें ही पंक्चर होती हों। तीस-तीस चक्के वाले ट्रक-ट्रोले भी पैरों से लाचार हो जाते हैं। ऐसा ट्यूब पर घोबे लगने से होता है। साइकिल-स्कूटी-स्कूटर या बाइक के चक्के में कील या और कोई नुकीली चीज घुस जाए तो गाड़ी पंक्चर।

बड़े वाहनों के चक्कों के साथ भी ऐसा ही होता है। यदि किसी का वाहन ऐसी जगह धोखा दे जाए जहां दूर तक कोई आबादी ना हो, तो हालत खस्ता हो जाती है। ऐसे में कुछ विकल्प काम आते हैं। कै तो किसी मिस्त्री को लोकेशन बता के वहां बुलाओ। कै वाहन ‘ठिड़ कर बस्ती तक लाओ या फिर वाहन वही छोड़ के किसी अन्य साधन से बस्ती में आओ और मिस्त्री को सामान सहित वहां लेकर जाओ। तीनों विकल्प कठिन, मगर उसके सिवाय कोई अन्य चारा भी नहीं।

कई लोग वाहन वाले पंक्चरों की तुलना शासन-प्रशासन की व्यवस्था से करते है। उनका मानना है कि व्यवस्था में कई जगह पंक्चर है। कुछ लोग इससे भी आगे। उनका कहना है कि व्यवस्था में पंक्चर नहीं छेद हैं। खड्डे हैं। खाडे हैं। जिन से रिसाव होता रहता है। पंक्चर तो चेपचुपा के एक बार निकाल दिया जाता है। गाड़ी के चक्के में ब्लास्ट हो जाए तो ट्यूब-टायर बदलने की नौबत आ जाती है। प्रशासन में कई जगह ब्लास्ट। कई जगह छेद।

कई जगह खड्डे फिर भी धूड़ धाणी धक्का पाणी। जैसा चलता आया है, वैसा चल रहा है। हमारे एक पीएम सर ने बड़े फख्र के साथ कहा था कि हम एक रूपया देते हैं, नीचे पंद्रह पैसे पहुंचते हैं। यदि उन्होंने लाचारगी दिखाने के बजाय डंडा घुमाया होता तो सारे पंक्चर-ब्लास्ट निकल जाते। ऐसा करने के लिए मजबूत इच्छा शक्ति की जरूरत है, वह दिख नही रही। अब जब एक उम्मीद जगी तो पेटरोल-डीजल और रसोई गैस की कीमतों में ब्लास्ट हो रहा है। पता नहीं छप्पन इंच का वो सीना कहां खो गया, जिसकी दुहाई ताल ठोक के दी जाती थी।

यहां हथाईबाजों का इशारा नीचे से लेकर ऊपर तक होते जा रहे छेदरूपी पंक्चरों की ओर। शासन-प्रशासन में जिस प्रकार भ्रष्टाचार के छेद हो रहे हैं, वह चिंतनीय है। राज्य में पिछले दिनों एसीबी द्वारा की गई कार्रवाइयों पर नजर डालें तो पता चलेगा कि ज्यादातर पकड़मपकड़ाई अफसरों की हुई। कई बड्डे-बड्डे अफसर। उनके परिजन और दलाल घूस लेते पकड़े गए। वह भी लाखों में। ऐसा लगता हैं मानों रिश्वत की रेट बढती जा रही है। यह पंक्चर नहीं व्यवस्था के लिए ब्लास्ट है।

बात करें वास्तविक ‘पिंचर की, तो उनका सालाना खरचा भी लाखों से कम नहीं। इससे अच्छा तो यह हो कि शासन मिस्त्रियों को बंधी बंधाई तनखा पे रख कर सामान-साधन मुहैया करवा ले। जिस विभाग की गाड़ी पंक्चर हो वहां जाकर एंट्री करवा के सुधरवा ले। इससे लाखों का रिसाव रूकने के पक्के आसार। यह आइडिया रोज पिंचर होती गाडिय़ों की पंक्चरगिरी रोकने के लिए आया।

जयपुर नगर निगम हेरिटेज अपनी गाडिय़ों के पंक्चर निकलवाने पर प्रतिमाह तीस हजार और नगर निगम ग्रेटर सत्तर हजार रूपए चुपड़ रहा है दोनों के पास करीब 170 वाहन है। आए दिन कोई ना कोई वाहन पंक्चर। नही हो तो कागजों में पंक्चर। यह पिंचरगिरी रोकने के लिए हथाईबाजों ने नई व्यवस्था लागू करने का सुझाव दिया। ठीक लगे तो लागू कर दो वरना लाखों के पिंचर करोड़ों में जा सकते है।

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