
जोधपुर । श्रमण संघीय उपाध्याय प्रवर श्री प्रवीण ऋषि जी म. सा. के चातुर्मास प्रवचन : सिद्धातों की चर्चा करना बहुत अच्छा लगता है, सिद्धांतों के जयकारे लगाना भी बहुत अच्छा लगता है। ये कहना भी मन को बड़ा सुकुन दे जाती है कि जैन धर्म विश्व धर्म है, इसमें सभी समस्याओं का हल है, सुनने में भी बहुत अच्छा लगता है। यह भी सर्वविदित है कि मोर खुशी मे झूम उठता है और अपने पंखो को देखता है तो बहुत खुश होता है किंंतु जैसे ही उसकी नज़र पंजो पर पड़ती है तो मोर के आंसू आ जाते हैं।

श्रमण संघीय उपाध्याय प्रवर श्री प्रवीण ऋषि जी म. सा. ने रविवार को अपने चातुर्मास प्रवचन में कहा कि सिद्धांत के पंख हो सकते हैं पर पांव नही हो सकते हैं और जब तक की सिद्धांतों को पांव नही बनाया जा सकता है तब तक सिद्धांत केवल आसमान के तारे बनकर ही रह जाते हैं।
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केशी श्रमण और इन्द्रभूति गौतम के एक गेम चैंजर संवाद का उल्लेख करते हुए उपाध्याय प्रवर बताते हैं केशी श्रमण दीक्षा में उनसे बड़े थे, दोनों के तीर्थंकर अलग थे, लेकिन इन्द्रभूति गौतम को अपने पास आता देख कर केशी श्रमण ने उनका बहुमान किया, उन्हें आसन ग्रहण करवाया। चन्द्र सूर्य समप्रभ: सुधर्मा स्वामी ने शब्द देकर कहा कि ऐसी धर्म सभा लग रही थी कि मानो चांद और सूरज एक साथ विराजमान हो ।

उस सभा में दूसरे पंथ संप्रदाय के लोग भी आनंद लेने के लिए आये थे, देवता भी साक्षात पधारे थे, संवाद ऐसा होता है। संवाद ऐसा करो कि देवता भी सुनने के लिए विवश होकर आयें । ऐसा संवाद ना करें कि सामने वाले के कानों का मैल बढ जाए।