कलराज मिश्र: आत्मीयता और अपनेपन के दो वर्ष

राजस्थान राज्यपाल पद के दो वर्ष के कार्यकाल पर विशेष

राजस्थान में मुझे आत्मीयता और जो अपनापन मिला है, वह मेरी अमूल्य थाती है। मैं इस दृष्टि से अपने को सौभाग्यशाली मानता हूं कि ऐसे प्रदेश के संवैधानिक प्रमुख के पद पर मुझे कार्य करने का अवसर मिला है, जिसके कण-कण में प्रेम और अपनत्व की सुंगघ घुली हुई है। मुझे याद है, वह 9 सितम्बर, 2019 का दिन था जब राजस्थान मे राज्यपाल का पदभार संभाला था। राजभवन में दो वर्षों का समय यहां जैसे पंख लगाकर उड़ता चला गया है। राजस्थान आने के बाद मैं जैसलमेर गया। वहां सीमा पर तैनात सैनिकों से संवाद किया और मरु संस्कृति को निकट से जाना। कुछ समय पहले ही आबू स्थित राजभवन भी गया और वहां एक सप्ताह रहा। बरसों से आबू राजभावन उजाड़ पड़ा था। प्रयास किया कि वहां स्थानीय लोगों की चुनौतियों को समझ उनके लिए कुछ करूं। इससे पहले डूंगरपुर-बांसवाड़ा के आदिवासी क्षेत्रों में वागड़ की संस्कृति को करीब से अनुभूत किया। कोटा-सवाई माधोपुर, मारवाड़ आदि क्षेत्रों में जाने से पता चला विविधता में एकता लिए है राजस्थान। मैंने यहां आने के बाद लोगों से निरंतर मुलाकातें की।

राज्यपाल राहत कोष का विस्तार किया

प्रयास किया कि स्वयं यहां के क्षेत्रों से रू-ब-रू होकर जन-जन से जुड़कर उनके दुख-दर्द का सहभागी बनूं। कोटा संभाग में बाढ़ की विपदा जब देखी तो जलभराव क्षेत्रों का एरियल सर्वे किया। हर संभव प्रयास किया कि राज्य सरकार के साथ बाढ़ पीडि़तों को समयबद्ध मदद मिले। राज्यपाल राहत कोष का विस्तार किया। इसके तहत ऐसे जरूरतमंदों को सहायता देना सुनिश्चित किया जिन्हें अब तक किसी स्तर पर सहायता नहीं मिली है। मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि राज्यपाल राहत कोष और अन्य स्तर पर लोगों को राहत पहुंचाने के लिए भामाशाहों, विश्वविद्यालयों, संस्थाओं और व्यक्तिगत रूप में मुझे निंरतर सहयोग मिला। कोविड के विकट दौर में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री राहत कोष में राज्यपाल राहत कोष से मदद की गयी। इसके साथ ही कोविड से बचाव के लिए चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भी पीपीई कीट और मास्क बांटने के लिए सहयोग किया गया।

शिक्षा के सुदृढ़ीकरण के लिए टास्क फोर्स का गठन किया

कोविड महामारी के दौर में जिन्दगी जैसे थम गयी। लोंगों को घरों में कैद होकर रहना पड़ा। मैं भी राजभवन से बाहर नहीं जा पाया। पर वक्त कहां कभी थमता है! पर कोविड के विकट दौर में भी सूचना और संचार तकनीक ने मदद की और इसके जरिए निरंतर लोगों से जुड़ाव हो सका। सभी दीक्षांत समारोह हमने ऑनलाईन किए। नई शिक्षा नीति को लागू करने के लिए विश्वविद्यालयों का तीन दिवसीय विशेष सम्मेलन बुला नीति को व्यवहार में लागू करने को मूर्त रूप देने के लिए आगे बढे। शिक्षा के सुदृढ़ीकरण के लिए टास्क फोर्स का गठन किया। उद्देश्य यही रहा है कि वैश्विक चुनौतियों के परिप्रेक्ष्य में समय संदर्भों के साथ उच्च, तकनीकी, कृषि, चिकित्सा शिक्षा का प्रभावी रूप में प्रदेश में विकास हो।

विश्वविंद्यालयों में संविधान पार्कों के निर्माण की पहल की

राजस्थान के राज्यपाल के रूप में मेरा निरंतर यह प्रयास रहा है कि संवैधानिक प्रमुख के रूप में अपने दायित्वों का पूरी तरह से निर्वहन करूं। संविधान से राष्ट्र और हमारी संस्कृति जुड़ी है। मैंने यहां आने के बाद प्रयास किया कि संविधान से हर आम और खास जुड़े। राजस्थान की विधानसभा में जब मेरा अभिभाषण हुआ तो मैंने इस परम्परा का भी सूत्रपात किया कि वहां संविधान की उद्देषिका और मूल कर्तव्यों का पाठ हो। यह सुखद है कि यह संभव हो सका। चाहता हूं यह परिपाटी आगे भी बनी रहे। विश्वविंद्यालयों में संविधान पार्कों के निर्माण की पहल इसीलिए की कि युवापीढ़ी संविधान की संस्कृति के मूल्यों को आत्मसात कर आगे बढे।

कोविड से बचाव और राहत कार्यों में तेजी लाने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलायी

राजभवन में भी हम विश्वविद्यालय पार्क बनवा रहे हैं ताकि सभी विश्वविद्यालय अपना-अपना कोई एक उत्कृष्ट कार्य वहां प्रदर्शित कर सके। कोविड के दौरान व्यक्तिगत मुख्यमंत्री, मंत्रियों और दूसरे जन प्रतिनिधियों से सीधे संवाद का भी मेरा निरंतर प्रयास रहा। कोविड से बचाव और राहत कार्यों में तेजी लाने के लिए मैंने जब सर्वदलीय बैठक बुलायी तो उसमें बगैर किसी मनभेद के सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने मानवता की रक्षा के लिए संकल्प लिया। अपने स्तर पर स्काउट-गाईड, पूर्व सैनिकों, रेडक्रोस सोसायटी और अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं, ट्रस्ट, गैर सरकारी संस्थाओं और भामाशाहों को इस बात के लिए प्रेरित करने का प्रयास भी इस दौरान किया कि वे आपदा की इस घड़ी में कोविड बचाव के लिए किए जा रहे कार्यों में सरकार को हर संभव सहयोग करें।

खुशहाल राजस्थान के लिए हम सभी मिलकर प्रयास करें

सही वक्त पर और सही मात्रा में ऑक्सिजन, दवाईयां और अन्य उपकरण सभी जरूतमंदो को मुहैया हो, इसके प्रबंधन की भी निरंतर मोनिटरिंग की। इसके सकारात्मक परिणाए आए, यही बड़ी सफलता है। स्वामी विवेकानन्द जी ने भारत के दो प्रमुख आदर्श बताए हैं। यह दो प्रमुख आदर्श हैं-त्याग और सेवा। हमारे यहां तो कहा भी गया है कि जीवित वही हैं, जो दूसरों की सेवा के लिए जीते हैं। प्रयास करूंगा कि आप सबके मध्य प्रतिबद्ध होकर सर्वांगीण विकास के लिए कार्य करता रहूं। आईए, त्याग और सेवा भाव के साथ समृद्ध, संपन्न और खुशहाल राजस्थान के लिए हम सभी मिलकर प्रयास करें।