
हम लोगों ने पानी पानी होना वाला मुहावरा तो अवश्य सुना होगा। नहीं सुना, ऐसा हो ही नहीं सकता। जिनने सुना, उनसे सुन लिया और जिनने नहीं सुना वो सुन सकते है। पढ़ भी सकते हैै। हम जानते है कि उसका अर्थ-मतलब बदला नहीं जा सकता, ना मुहावरे के मूल स्वरूप के साथ छेड़छाड़ की जा सकती है मगर इन दिनों उस पे पानी पड़ता दिख रिया है। हम यह भी जानते है कि पानी कुछ दिनों से बह जाणा है, या कि कोई नया कांड सूूत के ले जाएगा, मगर इन दिनों पानी की जगह रिया-रिया हो रिया है। रागग रिया को देख कर ऐसा लगता है मानो सारे खबरिया चैनल्स रिया-रिया हो रिए है। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
पानी-पानी होना मुहावरे का अर्थ है -शर्मिन्दा होना। लज्जित होना। शरम के मारे गढ़ जाना। आंखे शरम से झुक जाना। लगता है यह सब बाते अब मुहावरे तक ही सीमित रह गई है। आजकल शरम किसी को नहीं आती। ज्यादातर लोग नंगे हो गए। नंंगों का मतलब ये नही कि चड्डी-बंडी भी खोल दी, वरन ये कि लोगों ने लाज-शरम छोड दी। एक जमाना था तब बुजुर्गों के सामने मोट्यार सिर झुका के खड़े हो कर बात करते थे। मजाल पडी जो डोकरे-डोकरी को उनके सामने गोद में उठा लिया।
महिलाएं और युवतियां ढके-ढके वस्त्र पहनती थी। पति-पत्नी को बाहर जाना होता तो पति पहले निकल कर गली के मुहाने पे जा कर खडा होता फिर पत्नी निकलती। वापसी के समय भी दोनों अगाडी-पिछाडी आते। लडके-लडकियों में भी अदब-कायदा कूट-कूट के भरा। ना आलतू का आना ना फालतू का जाना। सब अपने-अपने काम में व्यस्त। नो ताका-नो झांकी। आज वो बातें हवा हो गई। सब चलता है अथवा जमाना बदल रहा है की आड में हम अपनी भाषा-संस्कृति-मान और मर्यादा सब कुछ भूलते जा रहे है। बुजुर्ग हाशिए पे। नई नस्ल अपनी मस्ती में। छोटों-बड़ों का लिहाज खतम। आधुनिकता के नाम पर संस्कारों की गला घुटाई। पच्छम की हवा की नकल ने खराबा कर दिया। सारा रायता बिखेर दिया। उसके बावजूद भी शरम नहीं।
कई बार लगता है कि जिस बंदे ने पानी-पानी होना मुहावरा घड़ा वो जरूर प्यासा रहा होगा। धाप के पानी पिया फिर पानी का महिमा गान किया। वैसे भी पानी का महिमामंडन करने की जरूरत नहीं। बिन पानी सब सून। यह तो बात में से बात निकली तभी बात चला दी वरना उनने चाय-दूध या छाछ-कॉफी का जिक्र तो नहीं किया। मुहावरे में पानी की जगह शरबत-शिकंजी अथवा लस्सी भी हो सकती थी। पानी की जगह राबया गलवाणी को बिठाया जा सकता था। फर्ज करो कि मुहावरा कॉफी-कॉफी होना होता तो? वह लिख के राजी भले ही हो लो, मगर पानी की जगह ना कोई ओपा है ना कोई ओपता। लिहाजा पानी यथावत। भले ही कोई अपने घटिया कृत्य-करतूतों पे पानी-पानी होवे या नहीं होवे, पानी की पूछ ना कभी कम हुई है ना होगी। भले ही कोई राब-राब होना या छाछ-छाछ होना कह दे। पानी दा जवाब नहीं। होणा भी नहीं है।
हां, पानी की जगह किसी और को बिठाने के प्रयास में वो लोगों की नजर में पानी-पानी जरूर हो रिया है, मगर उनको इस बात का एहसास नहीं हो रिया है, भले ही सोशल मीडिया उन्हेें कोसे। दर्शक श्रोता भले ही ऊब जाए। इसे देखो तो दिखाए जा रिया है, उसे देखो तो दिखाए जा रिया है। हमें नही लगगता कि अब रिया पे ज्यादा पत्रवाचन करने की जरूरत है। पहले इसपे एक कौम जमात की बोली का एकाधिकार माना जाता था। खा रिया है। पी रिया है। आ रिया है। जा रिया है। मार रिया है। भाग रिया है। बणा रिया है। तोड़ रिया है। घुडा रिया है। चल रिया है। इस जुबान वाली रिया के माने रहा। चल रिया है का अर्थ चल रहा है। खा रिया है के माने खा रहा है।
अब उनकी जुबान इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने पकड़ ली। सोशल मीडिया में भी रिया-रिया हो रिया है। सोशल मीडिया में तो तंज और खबरिया चैनल्स जिस प्रकार गांगत गा रहे है, वैसी अब तक नहीं गाई गई। सुबह देखो तो रिया-रिया शाम देखों तो रिया-रिया। हर चैनल पे रिया। यहां से उकता के वहां जाओ तो रिया-वहां से यहां आओ तो रिया। गोया कि वो हिन्दुस्तान की बहुत बड़ी तोप हो। समझने वाले समझ रहे है कि आखिर राग रिया क्यूं गाया जा रहा है। सुशांत सिंह को हमारी ओर से श्रद्धाजंलि। उसके साथ क्या हुआ था-भगवान जाने। देर-सवेर सीबीआई सच सामने ले आएगी। तब तक राग रिया से छुटकारा मिलना मुुश्किल है। सुनते-सुनते कान पक गए। शंका होती है कि कहीं ओ प्रिया-प्रिया की जगह ओ रिया.. रिया.. के सुर ना बिखर जाए। बावले चैनल खबर वहीं जो रिया मन भाए का वाचन शुरू ना कर दे। कहीं रिया मिलन की रूत आई.. की लहरियां ना बिखर जाए। एक संगीन मामले में कथित रूप से संदिग्ध मानी जा रही युवती के पीछे चैनल्स का इस प्रकार दौडऩा और दिन भर रिरियाना ठीक नही है। कल को दर्शक-श्रोता नारे लगाने शुरू कर देंगे बंद करो ये रिया.. रिया..।