स्कूली बच्चों में बढ़ रही है आत्महत्या की प्रवृति, इसे रोकें, वरना…

बच्चों में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृति को कैसे रोकें
बच्चों में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृति को कैसे रोकें

पूरे देश में छात्रों-युवाओं में बढ़ती आत्महत्या विकराल रूप लेती जा रही है। छात्रों का हब कहे जाने वाले शहर अब आत्महत्याओं के हब बन गए हैं। भविष्य की अनिश्चितता से हताश, निराश छात्र आज जिन्दगी के बजाय मौत को चुनने के लिए मजबूर हैं। ये वे हत्याएं हैं जिनका न कोई सुराग है, न ही सुनवाई। जैसे-जैसे दुनिया एडवांस होती जा रही है, ठीक वैसे ही बच्चों पर पढ़ाई का प्रेशर भी बहुत अधिक पड़ता जा रहा है। समझदारी उतना न हो पाने के कारण आजकल के स्कूली बच्चों में डिप्रेशन आम बात हो गई है।

जैसे ही बोर्ड के रिजल्ट आते हैं, आप अखबारों या न्यूज चैनलों में देखा, पढ़ा और सुना होगा कि कम नंबर आने के चलते या फिर फेल होने के कारण छात्र-छात्राएं खुदकुशी कर रहे हैं। मासूमियत भरी इस उम्र में बच्चे कैसे आत्महत्या कर लेते हैं? एक्सपर्ट के अनुसार, बच्चे अलग-अलग प्रकार की चुनौतियों और परेशानियों को अनुभव करते है, जो उनके मन में निराशा की भावना को उत्पन्न करते हैं। जिसकी वजह से आत्महत्या जैसे विचार भी आते है। एक बच्चे के मन में सुसाइड के ख्याल आने की कई वजह हो सकती हैं।

मानसिक समस्या

मानसिक समस्या
मानसिक समस्या

बच्चे अवसाद, चिंता या अन्य मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों से जूझ सकते हैं, जो बच्चों के मन में आत्महत्या के विचार आने के जोखिम को बढ़ा सकते हैं।

डराना-धमकाना

डराना-धमकाना
डराना-धमकाना

स्कूल में, ऑनलाइन या अपने सामाज में लोगों द्वारा डराने-धमकाने का अनुभव करने से बच्चे के आत्म-सम्मान और मानसिक स्वास्थ्य पर काफी बुरा प्रभाव पड़ सकता है, जिससे उनके मन में सुसाइड का ख्याल आना संभव है।

पारिवारिक समस्याएं

पारिवारिक समस्याएं
पारिवारिक समस्याएं

परिवार के अंदर चल रहे विवाद जैसे-तलाक, घरेलू हिंसा या उपेक्षा बच्चे की भावनाओं पर काफी गहरा प्रभाव डाल सकते हैं और उन्हें खुद को नुकसान पहुंचाने के विचारों के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकते हैं।

एकेडमिक प्रेशर

शिक्षा के क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव, चाहें वह माता-पिता, शिक्षकों या सामाजिक अपेक्षाओं से हो। कुछ बच्चों पर ये बहुत बुरा प्रभाव डाल सकते हैं। जिससे वे आत्महत्या के बारे में सोच सकते हैं।

ओपन कम्युनिकेशन

बच्चे के लिए अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए एक सुरक्षित और नॉन-जजमेंटल स्थान बनाएं। उन्हें अपने बारे में बोलने का मौका दें और इसे कहने के लिए प्रोत्साहित करें। उनकी चिंताओं को बिना रोक-टोक के ध्यान से सुनें।

एक्सपर्ट की मदद लें

मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स जैसे कि थेरेपिस्ट, साइकोलॉजिस्ट या काउंसलर आदि की मदद लें, जो बच्चों की परेशानी समझने में माहिर हों। वे आपके बच्चे की जरूरत के अनुसार उचित सहायता और मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं।

बच्चों के साथ मेलजोल बढ़ाएं

अपने बच्चे के जीवन में रुचि दिखाएं और सक्रिय रूप से शामिल रहें। जैसे- स्कूल के कार्यक्रमों में भाग लें, उनके शौक में शामिल हों। इसके अलावा बच्चों के साथ अच्छा समय बिताएं। इस प्रकार माता-पिता और बच्चे के बीच मजबूत संबंध बनेगा।

खुद को शिक्षित करें

आत्महत्या के विचार के वार्निंग साइन्स और इससे जुड़े जोखिम कारकों के बारे में जानें। इससे आपको अपने बच्चे में संभावित संकेतों को पहचानने और उचित सहायता प्रदान करने में मदद मिल सकती है।

एक सुरक्षित वातावरण बनाएं

माता-पिता को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आपके घर का वातावरण संभावित खतरों से मुक्त हो। फायर आम्र्स, दवाओं और अन्य हानिकारक पदार्थों को सुरक्षित रूप से बंद करके रखें। साइबर धमकी या अन्य हानिकारक चीजों के संपर्क में आने से रोकने के लिए अपने बच्चे के इंटरनेट और सोशल मीडिया के उपयोग की निगरानी करें।

तनाव मुक्त रहने के तरीकों को सिखाएं

अपने बच्चे को तनाव और इमोशन्स को मेनेज करने के स्वस्थ तरीके सिखाएं, जैसे कि फिजिकल एक्टिविटी में शामिल होना, अपने शौक को पूरा करना, रिलैक्सेशन टेक्निक्स की प्रेक्टिस करना या दोस्तों या परिवार के सदस्यों से सोशल सपोर्ट प्राप्त करना।

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