राशन लेने आए मृतकिस्तानी!

क्या मृत लोगों को भूख लगती है? लग रही है तो कब से? क्या वो गेहूं के अलावा और कुछ नहीं खाते? क्या मृत्यु लोक में गेंहू पीसने वाली चक्की, साक, तेल, मिर्च-मसालों और भोजन बनाने के काम आने वाली अन्य सामग्री की व्यवस्था नही है? क्या मृत्यु लोक में रसोई है? मृतकिस्तानी देसी चूल्हे पर घूघरी पकाते हैं या गैस के चूल्हे पर? इन से मिलते-जुलते कुछ और सवाल हैं जिन का सिर्फ-ओ-सिर्फ एक जवाब है-‘नहीं.. नहीं.. और नहीं..। हम भी इस जवाब से संतुष्ट। हम भी इस जवाब से सौ टका सहमत। तो फिर उनके नाम का राशन कौन खा रहा है? शहर की एक हथाई पर आज इन्हीं सवालों की बौछारें हो रही थीं।


जितने सवाल उठे, या उठाए गए उन सबका जवाब मिल गया। सवाल भले ही कितने ही खड़े किए गए, उन सब का जवाब एक लाइन में मिल गया। हम संतुष्ट भी हो गए, मगर सवाल है कि सिमटने का नाम ही नही ले रहे। कई लोग जिंदगी को एक सवाल मानते हैं, कई लोगों का कहना है कि जीवन में और कुछ मिले या नहीं मिले, सवालों का कभी ना खतम होने वाला सफर जरूर मिल जाता है। नए मेहमान के दुनिया में आने से लेकर किसी के रामप्यारा होने तक के सफर में सवाल ही सवाल। पहला सवाल कब, किसने और किस प्रसंग पे पूछा और उसका जवाब क्या मिला, इसकी जानकारी देश और दुनिया में किसी के पास नहीं।


कई बार मन में विचार आता है कि भाई-बांधवों ने इतनी बड़ी गलती कैसे कर दी। हमने पढा-हमारे पुरखों ने पढा-नई नस्ल पढ रही है कि फलां का अविष्कार फलां ने फलां समय में किया था। ढिमका का युद्ध ढिमका से ढिमका सन्-ईस्वी में ढिमका मैदान पे हुआ था। उस बखत के लोग आज के कंप्यूटर-मोबाइल युग से भी ज्यादा जागरूक थे। आज का डिजीटलकाल भी पुरातनकाल के सामने फीका। दादू की अम्मी को भले ही तारीख-सन्-याद नही था मगर वो बताती थी कि बऊआ का जनम हुआ उसी दिन भूरी भैस ब्याही थी।

नानी की अम्मा बताती थी कि छुटकी के ब्याह वाले दिन जोरदार बारिश हुई थी। कई लोग तो कीमिए। उनका बही खाता जोरदार। सारी बातें उनमें इंद्राज। अपने आप को इतिहासकार बताने वालों ने हल्दीघाटी के युद्ध के बारे में तो लिख दिया। अपने आप को इतिहासकार समझने वालों ने मेहरानगढ किले का निर्माणकाल और उसमें आई बाधाओं की विगत तो बांच दी। फलां के पास लाल किले का इतिहास। ढीमके के पास हवा महल की पूरी जानकारी, पण पहले सवाल के बारे में किसी के पास कोई जानकारी नहीं। पहले सवाल का गिलास खाली। पहले प्रश्न का कप उलटा।


हथाईबाजों का कहना है कि सवालों के इतिहास के बारे में भले ही किसी के पास अधिकृत जानकारी ना हो मगर इसका सागर अथाह है। यहां से लगा के ठेठ वहां तक। इतना लंबा-इतना चौड़ा-इतना ऊंडा-इतना विशालतम-इतना महानतम की आखी दुनिया उसमें समा जाए। ऐसा शायद ही कोई कौना-खोंचरा होगा जहां सवाल ना सुलगते हों। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जहां प्रश्न सागर की लहरे हिलोरे ना मारती हो। आम लोगों का मानना है कि मानखों की जिंदगी में तीन पारिएं होती है। बचपन, जवानी और वृद्धावस्था। कुछ लोग पहली पारी नही खेल पाते। कुछ लोग दूसरी पारी और कई लोग तीसरी पारी जस-तस या शान से खेलते है। जिंदगी की डोर पहली-दूसरी या तीसरी पारी में कब टूट जाए, कहा नही जा सकता।

इस के बावजूद हम एक और पारी बढाने के मूड में। हिसाब से देखा जाए तो हम-आप की जिंदगी का एक हिस्सा तो सवाल-जवाब में ही खप जाता है। क्यूं ना इन हिस्सों को चौथी पारी से जोड़ दिया जाए। सवाल सब जगह होते है। कुछ वाजिब-कई गैर वाजिब। कुछ लाजिमी-कई खड़े कर दिए जाते है। कई जगहों का तो अस्तित्व ही सवालों की बुनियाद पे टिका हुआ है। थाणे-चौकियों या कोर्ट-कचहरी को ही देख ल्यो। शिक्षण संस्थान चाहे प्राथमिक हो या उच्च। बिन सवाल सब सून।

ग्राम पंचायत की सभा से लेकर संसद के दोनों सदनों में सवालों की बौछार। अब तो खैर सार्थक बहस और सवालों की बजाय सदन में हंगामा ज्यादा होता है वरना एक जमाने में जोरदार सवाल-जवाब हुआ करते थे। धांसू बहस होती थी। शब्द बाण तब भी चलते थे, मगर इतने घटिया नहीं-जैसे आज चलाए जाते है। आज बहस कम बकवास ज्यादा होती है। पर हथाईबाज जिन सवालों की बात कर रहे हैं या मृत्युलोकवासियों के खाने-पीने के बारे में सवाल खड़े कर रहे हैं, उनके पीछे कई सवाल खड़े है, उन में से कई तो हथाई के पहले पेरेग्राफ में दाग दिए गए हैं। इसे भांडे का एक चावल माना जाए। जब एक चावल में इतने सवाल है तो पूरी देग कैसी होगी, इसका अंदाज सहज लगाया जा सकता है।


देश में इन दिनों ‘वन नेशन-वन राशन कार्ड योजना के तहत राशन कार्ड की आधार से सीडिंग का कार्य चल रहा है। झालावाड़ में इसके प्रारंभिक काल में ही बारह हजार ऐसे लोगों का पता चला जो सिधार चुके है, मगर उनके नाम का गेंहू उठ रहा है। सवाल ये कि उनके नाम का गेंहू उठा कौन रहा है। इसका जवाब भी सब जानते हैं। फिर भी सवाल तो सवाल है। जब पहले चरण के शुरूआती दौर में यह हाल है-तो और कितनी आत्माएं राशन की दुकान पर लाइन में लगी नजर आएंगी। यह भी सवाल है।