शादी की दुकान

देखने-सुनने और पढने में शीर्षक सामान्य सा लगता है। थोड़ा गौर करें तो लगेगा कि कुछ छूट रहा है। गहराई में जाएं तो पता चलेगा कि कैसी खिचड़ी पक रही है। खिचड़ी अगर चावल-मूंगों की होती तो कोई बात नहीं और अगर चरकी-नमकीन हो तो खाने से पहले चखना और चखने से पहले जांच पड़ताल कर लेना जरूरी है। ऐसा ना हो कि खिचड़ी के रूप में परोसे जा रहे लड्डू आगे चलकर कोई बखेड़ा कर दे। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
आप ने बाजार तो देखे ही होंगे। यकीनन देखे होंगे। खरीददारी भी की होगी। बेशक की होगी। खरीददारी के बखत धामाधामी भी की होगी। यकीनन की होगी। पुरूषों की कह नही सकते, अगर खरीददार महिला हो तो धामाधामी अवश्य की होगी। पुरूष बिचारे जितना दाम बताए उतना दे दुआ के चल देते हैं मगर अम्मा। आंटिएं। खाला। चाचियां। भाभियां। खातून। आपा। बी’जी। बहन जी। मासीसा और बुआजी ऐसा नही करती। थोड़ा-बहुत कीमत कम करवा के ही दम लेती है। दुकानदार भी जानते हैं कि चाचिएं सोरेसास खरीददारी करने वाली नही है। लिहाजा वो चाराने की वस्तु पांचाने की बताने से बाज नहीं आते। धामाधामी कर के चाराने पर सौदा पक्का। खाला-चाची उसमे ही खुश। दुकानदार भी राजी।
बाजार में भांत-भांत की दुकाने होती है। कई नगरों-महानगरों की व्यवस्थाएं अलग हैं जो पुरातनकाल से चली आ रही है। वहां पर एक जैसी वस्तुओं की दुकाने। खिलौना बाजार में खिलौनो की दुकानें। इस छोर से ले के उस छोर तक खिलौने ही खिलौने। इसी प्रकार कपड़ा बाजार। किराणा बाजार। जूता-जूती-चप्पल कॉर्नर। घी-तेल मंडी। मसाला बाजार। किसी को बाजार दर बाजार घूमने की जरूरत नहीं। फल खरीदने है तो फ्रूट बाजार में घुस जाओ और साक लेना है तो सब्जी मंडी में। खरीददारी करके लौटोगे। आगे चलकर यह प्रथा-व्यवस्था दरक गई। स्थापित बाजारों में दीगर वस्तुओं की दुकाने खुल गई। मॉल्स खुल गए। हॉट का दौर शुरू हो गया। हफ्तावारी बाजार शुरू हो गए। सोमवार को इस क्षेत्र में बाजार तो अदीतवार को उस इलाके में। इसी तर्ज पर क्षेत्रीय बाजार पनप गए। एक जमाने में घंटाघर अनाज मंडी और सब्जी मंडी के डंके बजते थे। लगभग पूरे शहर के लोग वहां खरीददारी करने आते थे। आज मंडियां सिमट के रह गई। रातानाड़ा के लोग रातानाडा मंडी से खरीददारी कर लेते हैं। कड़ी क्षेत्र के लोग अपने यहां लगी दुकानों से। लोगों की सहूलियत और मांग को देखते हुए दुकानदारों ने विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिष्ठान खोल दिए। इसका फायदा ये कि लोगों को दूर-दराज के बाजारों का रूख नहीं करना पड़ता है। इसके बावजूद जो बाजार स्थापित है, उन पर ग्राहकों की भीड़ सदाबहार। मसलन जोधपुर के त्रिपोलिया बाजार, नई सड़क, सोजती गेट, घंटाघर, सरदारपुरा सी रोड़, पावटा, रातानाडा सहित कई क्षेत्रों में वही रौनक देखने को मिलती है जो कल थी, बल्कि रौनक और बिक्री में इजाफा ही हुआ है।
‘शादी की दुकानÓ पर हैरत भी और सामान्यता भी। सामान्य भाव इसलिए कि वहां शादी-ब्याह का सामान मिलता होगा। आप जाइए, एक ही छत के नीचे टीके-टामणों से लेकर जूतिएं-मोजड़ी तकातक मिल जाएंगे। ऐसा है तो व्यापारियों को ‘शादी के सामान की दुकानÓ के बोर्ड लगवाने चाहिए मगर बोर्ड से सामान गायब पण, दुकान में मिल रहा है। सामान के साथ-साथ सलाह और कानूनी सहायता के भी पक्के इंतजाम। शादी-ब्याह सामान्य तौर तरीके से हो रहे हैं तो पूरा सामान खरीदो। भुगतान करो और छुट्टी। इसका फायदा ये कि आप को इधर-उधर भटकने की जरूरत नहीं। हैरत इस बात की कि सामान के साथ-साथ सहूलियत और कानूनी सलाह भी मुहैया करवाई जा रही है।
असल में इन दिनों चंडीगढ़ के बाहरी क्षेत्रों में ‘शादी की दुकानेÓ खुल रही है। वहां पर शादी के दौरान काम आने वाला सारा सामान मिलता है। यह दुकाने खास कर उन युवक-युवतियों के लिए खोली गई है जो अपने घरवालों की मरजी को लांघ कर शादी करते हैं। इन दुकानों पे पंडित और वकीलों का इंतजाम भी करवाया जाता है। पहले सामान की खरीददारी। फिर पंडित सेवा फिर वकील की। वकील साब कोर्ट के जरिए प्रेमी युगल को सुरक्षा मुहैया करवाने मे मदद करते हैं। मराज को क्या मतलब कि छोरा कौण है और छोरी कौण। उन्हें दक्षिणा से मतलब। दुकानदार का सामान बिक रहा है और पंडित-वकील की फीस में से हिस्सा भी।
हथाईबाजों को यह हथकंडा बिलकुल नहीं जंच रहा। आप सामान बेचों किसी को कोई एतराज नहीं। किसी को घर से भगाणे में मदद करो-यह उचित नहीं। हम प्रेम-प्रेमियों और प्रेम विवाह के खिलाफ नहीं। ऐसा घरवालों की सहमति से किया जाए तो और ज्यादा बेहतर रहेगा। माना कि उन्हें वयस्क होने के बाद अपनी मरजी से विवाह करने और अपने हिसाब से जीने का अधिकार है, मगर वो यह ना भूलें कि मां बाप और घर परिवार के प्रति उनके कुछ कर्तव्य भी हैं, रही बात दुकानदारों की, तो उन्हें बात का एहसास तब होगा जब उनके घर के छोरा-छोरी उन्ही की दुकान पे सामान-सलाह और सहूलियत लेणे पहुंच जाएंगे। हमें तो ऐसी दुकानें पसंद नहीं। आप की आप जाणो। इन्हें रोका ना गया तो कल को गली-गुवाड़ी में फेरी वालों के सुर गूंज सकते हैं-शादी करवा ल्यो शादी..।

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