
सबसे ज्यादा बारिश में निकलते हैं सर्प
डरने की जरूरत नहींं, ये करें इलाज
बारिश आने के साथ ही सर्पों का दिखना आम बात हो जाती है। ऐसे में सर्पदंश की घटनाएं बढऩा भी लाजमी है। कटते जंगल और घटते वनों के कारण बारिश के दिनों में सर्प घरोंं तक पहुंच जाते हैं। इसलिए लोगों में घर में सर्प आने का भय व्याप्त रहता है। रहे भी क्यों नहीं, सर्प का नाम सुनते ही अच्छे-अच्छों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है, लेकिन आपको अब इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है। क्योंकि हम आपको बताने जा रहे हैं कि बारिश के दिनों में आपके घर में सर्प नहीं आए इसके लिए आपको क्या उपाय करने हैं।
विशैले जंतुओं के दंश में सर्पदंश सबसे अधिक भंयकर माना जाता है। इसके दंश से कुछ ही मिनटों में मौत भी हो जाती है। विशैले सर्प भी कई प्रकार के होते हैं। विशैले सांपों में नाग कोबरा, काला नाग, नागराज किंग कोबरा, करैत, कोरल वाइपर, रसेल वाइपर, डिस फालिडस, मावा, वाइटिस गैवौनिका, रैटल स्नेक, क्राटेलस हॉरिडस आदि हैं। विशैले सर्पों के विष एक से नहीं होते। कुछ विष तंत्रिका तंत्र को आक्रांत करते हैं। कुछ रुधिर को और कुछ तंत्रिकातंत्र और रुधिर दोनों को प्रभावित करते हैं।
सर्पदंश के प्रमुख लक्षण
जब कोई सर्प किसी को काट देता है तो उसे सर्पदंश या सांप का काटना कहते हैं। सर्प के काटने से घाव हो सकता है और कभी-कभी विषाक्तता भी हो जाती है। जिससे मृत्यु तक सम्भव है। सर्प प्राय: अपने शिकार को मारने के लिए काटते हैं, लेकिन इसका उपयोग आत्मरक्षा के लिए भी करते हैं। कुछ सांपों के काटने के स्थान पर दांतों के निशान काफी हल्के होते हैं। पर शोथ के कारण स्थान ढंक जाता है। दंश स्थान पर तीव्र जलन, तंद्रालुता, अवसाद, मिचली, वमन, अनैच्छिक मल-मूत्र-त्याग, अंगघात, पलकों का गिरना, किसी वस्तु का एक स्थान पर दो दिखलाई देना तथा पुतलियों का विस्फारित होना प्रधान लक्षण है। अंतिम अवस्था में चेतनाहीनता तथा मांपेशियों में ऐंठन शु डिग्री हो जाती है और श्वसन क्रिया रुकने से मृत्यु हो जाती है। विष का प्रभाव तंत्रिकातंत्र और श्वास केंद्र पर विशेष रूप से पड़ता है। कुछ सांपों के काटने पर दंशस्थान पर तीव्र पीड़ा उत्पन्न होकर चारों तरफ फैलती है। स्थानिक शोथ, दंशस्थान का काला पड़ जाना, स्थानिक रक्तस्त्राव, मिचली, वमन, दुर्बलता, हाथ पैरों में झनझनाहट, चक्कर आना, पसीना छूटना, दम घुटना आदि अन्य लक्षण हैं। विष के फैलने से थूक या मूत्र में रुधिर का आना तथा सारे शरीर में जलन और खुजलाहट हो सकती है।
बचने के उपाय

बुंदेलखंड क्षेत्र में बारिश के समय सबसे अधिक सर्पदंश की घटनाएं सामने आती हैं। इससे हमें बारिश के दिनों सबसे अधिक सतर्क रहने की जरूरत है। इसके लिए कुएं या गड्ढे में अनजाने में हाथ न डालना, बारिश में अंधेरे में नंगे पांव न घूमना व जूते को झाड़कर पहनना चाहिए। खास तौर से बिना रोशनी के घर के बाहर नहीं जाएं तो बेहतर है। बाहर जाते समय यदि टॉर्च भी साथ में रखेंगे तो सबसे बेहतर होता है।
उपचार
सर्पदंश का प्राथमिक उपचार बिना देर किए करना चाहिए। लोग अधिकांशत: तंत्र-मंत्र की क्रियाओं में लग जाते हैं। जिससे कई बार मरीज की जान चली जाती है, इसलिए किसी नजदीकी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र या फिर जिला अस्पताल लेकर पहुंचें। जिससे वहां समय से उपचार शुरू हो सके। दंशस्थान के कुछ ऊपर और नीचे रस्सी, रबर या कपड़े से ऐसे कसकर बांध देना चाहिए कि धमनी का रुधिर प्रवाह भी रुक जाए। जानकार बताते हैं कि दंशस्थान पर साबुन, या नमक के पानी, या 1 प्रतिशत पोटाश परमैंगनेट के विलयन से धोना चाहिए। यदि यह नहीं मिले तो पुरानी दीवार के चूने को खुरचकर घाव में भर देना चाहिए। कभी कभी पोटाश परमैंगनेट के कणों को भी घाव में भर देते हैं, पर कुछ लोगों की राय में इससे विशेष लाभ नहीं होता। यदि घाव में सांप के दांत रह गए हों तो उन्हें चिमटी से पकड़कर निकालकर बाहर कर देना चाहिए। प्रथम उपचार के बाद व्यक्ति को शीघ्र निकटतम अस्पताल या चिकित्सक के पास ले जाना चाहिए। वहां प्रतिदंश विष का इंजेक्शन देना चाहिए। दंशस्थान को पूरा विश्राम देना चाहिए। किसी दशा में भी गरम सेंक नहीं करना चाहिए। बर्फ का उपयोग कर सकते हैं। ठंडे पदार्थों का सेवन किया जा सकता है। घबराहट दूर करने के लिए रोगी को अवसादक औषधियां दी जा सकती हैं। चाय, काफी तथा दूध का सेवन कराया जा सकता है, पर भूलकर भी मद्य का सेवन नहीं कराना।
यह भी पढ़ें : आज तय होंगे ईडी के अधिकार… जाने क्या हो सकते है?