घूस भवन

सारे विकल्प खोल रखे है। जिसे जो पसंद आए चुन सकता है। चुनने के लिए सारे दरवाजे खुले हैं और खुले दरवाजों के लिए चुनाव भी खुला। कल कोई यह नही कह दे कि हमारे सामने कोई विकल्प नहीं छोड़ा। बीसी में बिग ‘बी भी चार विकल्प परोसते हैं। इनके अलावा लाइफ लाइन का विकल्प भी खुला। कम से कम उन का तो अनुसरण करो। हम ने कर दिया। चार क्या चालीस विकल्प खोल दिए। आराम से चुनिए। शांति से चुनिए। अकेले चुनिए-दुकेले चुनिए या सामूहिक तौर पर। चाय पर चर्चा के बखत चुनिए या छाछ पर चर्चा के बखत। मरजी आपकी। हमने तो विकल्प खुले रखने थे, सो रख दिए। चुनने की जिम्मेदारी आप की। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

 

मानवीय जीवन-इंसानी फितरत और विकल्प का रिश्ता अरसों-बरसों पुराना है। पहला विकल्प किस ने खोला। किस मसले-मुद्दे पे खोला। कौन से सन्-ईस्वी या हिजरी सन् में खोला। भारतीय नववर्ष में खोला या-अंगरेजी नववर्ष में। किस वर्ष के किस माह-हफ्ते-तारीख या वार को खोला इस के बारे में किसी के पास कोई अधिकृत जानकारी नही। नई नस्ल जिस गुगल को गुरू मानती है उसे भी पूछ के देख ल्यो। सही जवाब मिलने से रहा। टोरे ठोकने के लिए किसी की जरूरत नहीं। इसके लिए हम ही काफी हैं। इत्ता जरूर है कि मानखों और विकल्प के बीच का रिश्ता सैंकड़ों-हजारों साल पुराना है।

 

हम कहें कि इंसान का हर क्षेत्र में विकल्प से जुड़ाव है, तो भी गलत नहीं। कोई एक-एक की गिनती करने को कहे तो गिनना संभव नहीं। ऐसा नहीं कि हमें गिनना नहीं आता। हमें गिनती अच्छी तरह याद है। हिन्दी वाली भी और अंगरेजी वाली भी। हिन्दी में बोलें तो एक-दो-तीन-चार और अंगरेजी में बोलें तो-वन-टू-थ्री-फोर। किसी ने राजस्थानी में गिनती नहीं घड़ी, वरना उसे सबसे पहले याद करते। एक हमने दुदू-विद्दू चार का रट्टा मारा हुआ है जो अब भी याद है। गिनती में राजस्थानी का मारा तड़का भी कंठस्थ है। मिसाल के तौर पे एके लारे दो मिंडिंया पूरा हो गया सौ। कुल जमा किसी भी भाषा में विकल्पों की गिनती करना चाहें तो कैलेंडर बदल जाएंगे। मगर खास-खास की अनदेखी ना तो कभी की है, ना कभी होगी।

 

बिस्मिल्लाह नामकरण से करते है। घर में नए मेहमान के आने के बाद कई रस्में निभाई जाती है। अब तो उनमें कटौती हो गई, वरना एक जमाने में सूरज पूजन से लेकर अन्न प्रासन्न, नामकरण, मुंडन, कान-नाक छिदाई सहित कई प्रकार के उत्सव होते थे। तीसरी जमात को पता चलने पर जोरदार धमचक होती थी। शिखंडिय़ों की पलटन पूरी गली ऊपर उठा लेती। विकल्प का पहला मोड नाम पर। मराज बच्चे की पैदाइश का दिन-वार-समय देखकर नाम का पहला अक्षर और राशि बता देते हैं फिर शुरू होती है नामों की खोज। दादी अपनी पसंद बताती-दादा अपनी। काके-बड्डे और चाची-ताई की अपनी पसंद। मां की अपनी और बापू की अपनी पसंद। बुआ अपनी पसंद रखती। नाना की अपनी पसंद। नानी की अपनी। मामा-मामी की अपनी और मासी की अपनी पसंद। कई बार आम राय से नामकरण तो कभी घर के मुखिया की पसंद के अनुसार। समय ने अन्य विकल्प भी खोल दिए। पूनम को कन्या आई तो पूर्णिमा या पूनम और शरद पूर्णिमा को कन्हैया लाल आए आया तो शरद। अब तो फिल्म रिलीज होने वाले दिन नए मेहमान की आमद होने पर फिल्मी नाम रखे जाने लगे है। वक्त-मौसम और अवसर के अनुसार नए मेहमान का नाम। इस की सबसे ताजा मिसाल-नागरिकता। जिस दिन नागरिकता संशोधन विधेयक पर राष्ट्रपति के साइन हुए उस दिन दिल्ली के मजनूं का टीला क्षेत्र में रहने वाले पाक विस्थापित परिवार के यहां कन्या पैदा हुई। उस का नाम नागरिकता रख दिया गया।

 

परीक्षा के दौरान भी विकल्प परोसे जाते हैं। ऑब्जेक्टिव में ए-बी-सी-डी जरूरी और सब्जेक्टिव में भी विकल्प तैयार। या तो इस सवाल का जवाब दो, या उस का। परीक्षार्थी को जिस का आंसर आता है, खींच देते है। पर हथाईबाज जिस विकल्प की बात कर रहे हैं वो निवास स्थान से संबंधित। निवास स्थान बोले तो घर और घर बोले तो निवास स्थान। जहां निवास करते हों वो निवास स्थान। अपने यहां घर पे मुलम्मा चढाने की परंपरा रही है। घर तो घर और निवास स्थान तो निवास स्थान होवे है पर उस में सिणगार करने का प्रचलन अलग से। कई जन अपने घर के बाहर निवास सदन-भवन-निकेतन-हाउस-हवेली-मेंशन-टॉवर-कुंज-विहार और ना जाने क्या-क्या लिखवाते रहे हैं। कहीं शर्मा सदन तो कहीं मेहता भवन। अब सवाल ये कि कटारिया सदन और चौहान निवास के बीच घूस भवन कहां से आ गया। जवाब ये कि जिस घर में निवास के साथ घूसगिरी होती रहें तो उसे क्या कहें।

 

एसीबी ने कोटा के अधीक्षण खनिज अभियंता को अपने ही घर में एक लाख की घूस लेते गिरफ्तार किया। ये अफसर घर में ही लेन-देन करते थे। ना दफ्तर में घूस लेने की रिस्क ना किसी सार्वजनिक स्थान पे। देने वाले घर आते चाय-वाय पीते। रकम थमाते और जैरामजी की। उसके यहां इत्ते रूपए कि गिनने के लिए मशीने मंगवानी पड़ी। अपना कहना ये कि जब जुआंघर हो सकता है। जब शराबघर हो सकता है। हम ने घूस भवन बना दिया तो गलत क्या है।