8934. घणा सरळ बणियै नहीं

  • घणा सरळ बणियै नहीं, देख्या जो वणराय।
  • सीधा-सीधा काटतां, बांका तरू बच जाय।।


मनुष्य को बहुत सरल भी नहीं बनना चाहिए। अब वन के पेड़ों को ही देखिए। सीधे-सीधे पेड़ सहजता से काट लिये जाते हैं, लेकिन जो बांके पेड़ होते हैं, वे काट नहीं पाये जाते हैं।
एक बार एक साधु कहीं से गुजर रहे थे। उन्हें पता लगा कि बस्ती के पास एक सांप रहता है। वह बड़ा खतरनाक है। उसने लोगों को बहुत ही डरा रखा है। उधर से जो भी निकलता है, उसी पर वह दौड़ता है। लोगों ने अपनी हैरानी साधु को बताई और कहा कि महाराज, कुछ ऐसा उपाय कीजिए, जिससे हमारा संकट दूर हो। तब साधु उधर गए, जहां सांप रहता था। सांप के पास पहुंचकर वे खड़े हो गए। सांप ने दौड़कर उन पर हमला करना चाहा, लेकिन साधु की आंखों से बरसते प्रेम और चेहरे से टपकती निडरता को देखकर वह सहम गया। साधु ने सांप से कहा कि सर्पराज, यह भी कोई जिंदगी है कि सब अपने से डरें और कोई पास भी न फटके।

तुम लोगों को काटना छोड़ दो और सबके साथ दया और प्रेम का बर्ताव करो। प्रेम से बढकर दुनिया में कोई शक्ति नहीं है। सांप ने साधु का उपदेश सुना। उसका उस पर गहरा असर पड़ा। अपनी उग्रता से वह स्वयं परेशान था। उसे हर घड़ी चौकन्ना रहना पड़ता था। इतना ही नहीं, आवेग से उसके सारे शरीर में तनाव आ जाता था और उस तनाव के हटने पर उसकी देह टूटने लगती थी। साधु की बात मानकर उसने अपनी उग्रता छोड़ दी। वह अहिंसक बन गया। लोगों ने जब देखा कि वह विषधर सांप उन्हें देखकर दौड़ता नहीं है तो उन्हें बड़ी शांति मिली। लेकिन इस खबर के फैलते ही लड़कों की टोली वहां पहुंच गई और उन्होंने सांप को चुपचाप पड़ा देखकर उस पर पत्थर फंकने शुरू किए। पत्थरों की चोट से सांप लहूलुहान हो गया, लेकिन उसने अपने निश्चय को नही छोड़ा। उस पर चोटें पड़ती रहं, लेकिन उसने अपना मुंह तक नही उठाया।

उसका शरीर चूर चूर हो गया। कुछ समय बाद वही साधु फिर वहां आए। सांप की हालत देखकर वे बड़े दुखी हुए। उन्होंने सांप से पूछा कि क्यों, क्या बात है? सांप ने कहा कि मेरी यह हालत आपके कारण हुई। आपने मुझे उपदेश दिया था कि मैं अपनी उग्रता छोड़ दूं। सबको प्रेम करूं। उसी का यह नतीजा है। मुझे शांत और चुपचाप पड़े देखकर लड़कों ने पत्थर मार मार कर मुझे बेहाल कर दिया है। साधु सारी बात समझ गए। वे बोले कि मेरे भोले भाई, मैंने तुझसे काटना छोडऩा को कहा था, फुफाकारने से मना थोड़े ही किया था। इसलिए फुफकारना मत छोड़ो। फुफकारते रहने पर कोई तुझे नहीं सताएगा। बिना तेजस्विता के अहिंसा बेमानी है। साधु से सांप को नया मार्ग मिला उसने फिर फुफकारना शुरू कर दिया। उसने जैसे ही फुफकाना आरंभ किया, बच्चे बड़े डर के मारे भागने लगे, उससे दूर रहने लगे। सांप की हैरानी दूर हो गई।