8941. दुरजन जण बब्बलू वन

दुरजण जण बब्बूल वन, जे सींचै अभियेण।
तोइस कांटा बींधणा, जाती तणै गुणेण।।


जो दुर्जन व्यक्ति होता है, यदि उस अमृत से भी सींचा जाए, तो अपने जातीय गुण के कारण उसके कांटे औरों को बींघने वाले होते हैं।
एक बनिया अपनी पत्नी को लाने के लिए अपनी ससुराल गया। पत्नी को विदा कराकर वह रथ से लौटने लगा। उसके साथ कोई सारथी नहीं था, वह स्वयं ही रथ चला रहा था। मार्ग में उसने देखा कि एक थका-मांदा यात्री एक पेड़ के नीचे बैठा हुआ है और वह सूरदास भी है। बनिये को उस पर दया आ गई और उसने रथ रोका। उसने सूरदास से पूछा कि कहां जाना है? उसने बताया तो उसे पता चला कि उसे मार्ग में आने वाले एक नगर में जाना है। बनिये ने उसे रथ में बिठा लिया कि वह उसे वहां छोड़ देगा। अब सूरदास चैन में था। रथ आगे चलकर एक नगर में पहुंचा। वहां बनिये ने धर्मशाला में ठहर कर विश्राम किया। सूरदास को उसी नगर में पहुंचना था, लेकिन वह भी धर्मशाला में विश्राम करने लग गया। रथ में बैठे बैठे सूरदास को यह तो पता चल गया था कि बनिया अपनी पत्नी के साथ है।

अत: जब बनिया धर्मशाला से जाने को तैयार हुआ, तो सूरदास ने चिल्लाना शुरू किया कि यह बनिया मुझे अंधा समझ कर मेरी पत्नी को भगाये ले जा रहा है। इस पर वहां लोग इकठटे हो गए और सबने बनिये को घेर लिया। बनिये ने लोगों को समझने की कोशिश की, लेकिन लोगों ने एक नही सुनी। उसकी पत्नी कुछ कहना चाहा तो उसको भी झूठा मान लिया गया कि शायद वह अंधे से पिंड छुड़ा कर बनिये के साथ जा रही है। फिर तो मामला राजा के सामने पहुंचा। राजा भी सारी बात सुनकर चकित हो गया। लेकिन दोनों की बातें सुनकर वह कुछ निर्णय नही कर सका। तब राजा ने सूरदास, बनिये के रहने के लिए अलग अलग स्थान बतला दिये गए। राजा की ओर से उनके लिए सब प्रकार की अच्छी व्यवस्था कर दी गई।

राजा ने अपने सेवकों को उन तीनों पर नजर रखने को कह दिया। सेवकों से कहा कि यह पता लगाओ कि ये तीनों अपने अपने स्थान पर समय किस प्रकार गुजारते हैं। सेवकों ने लौटकर राजा को बताया कि बनिया तो दुख के मारे पागल हो रहा है, लेकिन सूरदास बड़े चैन से बैठा है। कई बार उसके मुंह से निकल पड़ता है कि सूर की सटट, सधे तो सधे, नहीं तो मालपुए गटट। सेवकों से मिली इस जानकारी से राजा साफ समझ गया कि अंधा झूठ बोल रहा है और बनिया सच्चा है। इससे अधिक जांच-पड़ताल की कोई आवश्यकता नहीं थी। इसके बाद राजा ने सब लोगों के सामने इस मामले का फैसला करते हुए कहा कि यह अंधा झूठा है और यह बनिया सच्चा। इसलिए बनिया ससम्मान अपनी पत्नी को लेकर घर जा सकता है। लेकिन दया का पात्र होते हुए भी इस अंधे ने ऐसा झूठ बोलकर अपराध किया है, अत: इसे कारागार का दंड दिया जाता है। यह दया का पात्र बिलकुल ही नही है।