बेगानी शादी में …..

अफसोस तो होता ही है। दुख के साथ कोफ्त भी होती हैं। बात ज्यादा आगे बढ़ जाए तो गुस्सा भी आता है। ये कैसे अब्दुल्ले हैं जो बेगानी शादी में दिवाने बने फिर रहे हैं। प्यार से कह दिया। भाईबीरे से समझा दिया। तुम खामखां क्यूं उछल रहे हो। काहे को सियासी मोहरे बन रहे हो। तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं। मगर वो हैं कि खाया-पीया कुछ नहीं..दो गिलास फोड़ी …वाली लीक पे चल रहे है। वो भूल रहे हैं कि ये जमीन अपनी है। ये देश अपना है। ये लोग अपने है। सरकारी संपत्ति अपनी हैं। तुम जो कर रहे हो वो ठीक नही है। शहर की सभी हथाईयों पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

 

अब्दुल्ले पे संशय। वो इस लिए कि अपने यहां भतेरे अब्दुल्ले हैं। एक ढूंढो, पौने दो हजार मिलते है। इस से ज्यादा ही मिल जाणे है। कम का तो सवाल ही नहीं उठा। संशयता इस वास्ते कि अब्दुल्ला कौन सा। जितने सिर के बाल, देश में उतने अब्दुल्ले। उन पर भी भांत-भांत की धाराएं। हर धारा पे सवाल। अब्दुल्ला फलां मौहल्ले वाला या ढिमका कॉलोनी वाला। अब्दुल्ला फलां भईसाब वाला या ढिमका चचा वाला। अब्दुल्ला खाला वाला या फूफी वाला। इन के आजू-बाजू नजर दौड़ाएं तो दिखेगा कि किसी के आगे अब्दुल्ला किसी के पीछे अब्दुल्ला। अब प्रश्न ये कि इन में से दिवाना कौन। इसके लिए दिवानों का वर्गीकरण किया जा सकता है। हर अब्दुल्ला दिवाना हो संभव नहीं, तस्वीर का दूसरा रूख देखें तो हर अब्दुल्ला दिवाना भी हो सकता है। नहीं तो नहीं है। नहीं के आगे कोई इफ एण्ड बट नहीं। नहीं के आगे कोई किंतु-परंतु नहीं। आपणी राजस्थानी में कहते भी ”एक नन्हो सौ दुख टाले।

 

बात करे हर अब्दुल्ला के दिवाना होणे की तो इस में भी कोई शकशुबा नहीं। इस दिवानगी को सकारात्मक नजरिए से देखा जाए तो सब कुछ अच्छा-अच्छा नजर आएगा। यह दुनिया का दस्तूर है। संत-सयानों ने भी कहा कि विचार और भाव हमेशा शुद्ध ओर सुट्ठे रखने चाहिएं। बोली हमेशा मीठी बोलनी चाहिए। आपकी नजर अच्छी हैं तो चारों और अच्छा नजर आएगा और नजर खराब हें तो पाक और पाकिजा में भी खोट नजर आएगी। इस सबक को ध्यान में रखते हुए अब्दुल्ले की दिवानगी को देखें तो मन करेगा कि हर अब्दुल्ला ऐसा दिवाना हो। अब्दुल्ला क्या अमर और अरूण भी ऐसे दिवाने हो। अमनजीत ओर आमिर भी ऐसी दिवानगी में डूबे रहें।

 

यहां दिवानगी पर स्पष्टीकरण देना जरूरी। ना भी दें तो गुनाह नहीं हो जाएगा। ना हमारी नागरिकता पर आंच आने की अफवाह में दम साबित होगा। दिवानगी पढाई की। दिवानगी काम के प्रति समर्पण की। दिवानगी सेवा की। दिवानगी प्रेम और सद्भाव की। दिवानगी राष्ट्र के प्रति प्रेम की। दिवानगी अपनी मातृ भूमि का कर्ज चुकाने की। दिवानगी देश प्रेम की। आप ये क्यूं समझते हैं कि दिवानगी उसी की होती है जिस पर आप की शक की सूई घूम रही है। आप सोच रह होंगे कि दिवानगी सिर्फ इश्क की होती है। अगर आप की सोच ऐसी है तो गलत है। हम हमारी सोच की दिवानगियों का खुलासा कर चुके हैं।

 

बात घूमाफिरा कर कहने की बजाय सीधे तौर पे कहना ठीक रहेगा। असल में ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दिवाना एक कहावत है जो सदियों से कही-सुनी जा रही है। इस पर सवाल उठाएं तो वही उपजेगा कि अब्दुल्ला कौन सा और दिवानगी कैसी। अपन को इस में नहीं उलझना मगर कहावत की व्याख्या करना जरूरी। इस के माने ये कि फालतू में टांग अड़ाना। ना कोई बात ना कोई चीत इस के बावजूद ‘म्हें लाडे री भुआ’बनना। बेगानी शादी में अब्दुल्ला दिवानी का मतलब खामखा की पंचायती करना। अब्दुल्ला दिवाना बनने के माने आप का किसी मसले-मुद्दे से अवैध रिश्ता भी नहीं और आप उसे ओढे जा रहे हैं। खामखा अपने पे ले रहे हैं। वो गुमराह कर रहे हैं और आप हो रहे हैं। वो मदारी बने हैं और आप नाच रहे हैं। वो सियासी रोटिएं सेंक रहे है और आप आटा गूंथ रहे हैं। वो अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं और आप मोहरे बन रहे हैं।

 

कुल जमा बात एनआरसी और सीसीए की। इन दोनों मसले पर किसी भारतीय को चिंतित होने की जरूरत नहीं। किसी धर्म के लोगों को फिकर करने की जरूरत नहीं। ये देश अपना था, है और रहेगा। हां, घुसपैठियों के लिए यहां कोई जगह नहीं। सरकार ने साफ कह दिया कि किसी भी हिन्दुस्तानी को इस मुद्दे पर माथे पर बळ डालने की जरूरत नहीं। जो लोग इनके खिलाफ हिंसा कर रहे है वो सियासत अलियों के हाथों में खेल रहे है। उन्हें पता ही नहीं कि इन दोनों की परिभाषा क्या है। वो ना तो एनआरसी के बारे में जानते हैं ना सीसीए के बारे में। कुछ लोग उन्हें गुमराह कर रहे हैं और वो हो रहे है। कुछ पार्टियां उन्हें मोहरा बना रही है और वो बन रहे है। हम फिर कह रहे हैं कि बेगानी शादी में किसी को अब्दुल्ला बनने की जरूरत नहीं है। किसी को गुमराह होने की जरूरत नहीं। जय हिन्द … जय भारत।