सावधान.. मेहरबान.. धीरजवान.. प्रेमवान.. दयावान.. कोचवान.. दफ्तरवान.. निजीकामवान.. आप जो भी है, एक और कार्ड के लिए तैयार रहें। जहां तक हमारा खयाल है, ज्यादातर लोगों को तैयार रहने की जरूरत नहीं। वो हमेशा तैयार रहते हैं। चौबीसों क्लॉक तैयार..एवरेडी। भरी नींद में से जगाकर लाइन में लगा द्यो। लग जाएंगे। कारण ये कि हमें इस का जोरदार अनुभव है। हमें लाइन में लगने की आदत पड़ चुकी है। हम लाइनगिरे हैं। लाइनखोर हैं। हमारे लिए लाइन-वाइन कुछ नहीं। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
लाइन के आगे वाइन का उपयोग रूटीन में किया गया है। ऐसा महज हमने नहीं किया, ना आप या इन-उन में से कोई कर रहा है। अपने पुरखे भी ऐसा कर चुके होंगे। होंगे नहीं, बल्कि यकीनन किया होगा तभी तो अपन भी कर रहे हैं। पुरखों के पुरखों ने पुरखों को यह कला विरासत में दी। जिसे हम-आप प्रोत्साहन दे रहे है। इस का बिस्मिल्लाह किस ने किया था। कब किया था। किस प्रसंग में किया था। इसकी जानकारी हमारे पास नही। हमारे तो क्या, अपने आप को इतिहास और भूगोल का कीमिया बताने वालों के पास भी इसके बारे में कोई अधिकृत जानकारी नही होगी। आज कल के नौजवानों को गुगल गुरू पे कुछ ज्यादा ही नाज है। वहां हर सवाल का जवाब मिल जाता है।
गुगल महाराज ने जो कहा, नई नस्ल उसे सही मान बैठती है। किसे पता कि वो कह रहे हैं या बता रहे हैं वो सौ टका सही है। जैसे हम-आप टेरे ठोकते हैं, वैसे वो भी तो ठोक सकते हैं। एक पल के लिए मान लिया कि गुगल बाबा सही कहते हैं तो उन्हें पूछ के देखो कि सत्ते पे सत्ता की शुरूआत किसने की थी। होता तो सत्ते पे अट्ठा है मगर हम सत्ते पे सत्ता इसलिए कह-लिख रहे हैं ताकि तरन्नुम सही रहे।
सत्ते पे सत्ता बोले तो-एक शब्द सटीक और दूसरा तरन्नुम में। एक अक्षर सही और दूसरा राग बिठाने में। शब्दों के जोडे का मजा ही कुछ अलग है। इन जोड़ों की अलग-अलग धाराएं फूटती हैं। खांचे भी अलग-अलग। आप इन धाराओं को ना जाने कब से देख रहे हैं, मगर नजर डालने की जहमत अभी तक नही उठाई। हम इन खांचों को पिछले लंबे समय से देख रहे हैं, मगर गंभीरता से गौर नही किया कि धाराएं और खांचे कौन सी राग छेड़ रहे हैं। धाराएं हमारे ऊपर से निकलती है। खांचे हमारे सामने फिट होते है मगर जैसा चल रहा है, वैसा चल रहा है। रूटीन के टीन-कनस्तर बज रहे हैं। बोलने वाले बोल रहे है। सुनने वाले सुन रहे हैं। सुनने वाले कहते भी है, कहने वाले सुनते भी है। सब रूटीन में। शब्दों का जोड़ा भी उसी का हिस्सा।
शब्दों का पहला जोड़ा रिश्तों और और रोजमर्रा की वस्तुओं का तथा दूसरा अपना बनाया हुआ। उदाहरण के तौर पे पहले रिश्तों को लेते हैं-चाचा-चाची। मामा-मामी। कहने-बोलने-लिखने में यह जोड़ा ठीक बैठता है। माता-पिता। भाई-बहन। मौसी-मौसा और भुआ-भुड़ोसा भी इसी पैकिंग के। यदि चाचा को मौसी या भुआ को मामा के साथ बिठा दिया जाए तो ओपेगा भी नही। रिश्तों का सिणगार भी बेढंगा और लिखने-पढने में भी अटपटा लगेगा। इसी प्रकार रोजमर्रा की वस्तुओं का अपना जोड़ा। इस में पेंट-शर्ट। साबुन-साबुनदारी और जूते-जुराब को लिया जा सकता है। यह तो मिसाल भर है वरना जोड़े भतेरे। यही टोटका अपने बनाए जोड़े पे लागू होता है। इसे तरन्नुमी जोड़ा कह सकते हैं। इसकी कायनात भी लंबी-चौडी। मोटी-तगड़ी। इसकी राग अपनी जुबान पर न जाने कब से बिराजी है मगर ध्यान नहीं दिया। बोला और नक्की। बोलबुला के नक्की किया।
हथाईबाजों का कहना है कि आज राग तरन्नुम पे गौर कर ही लिया जाए ताकि लाइन के साथ वाइन की भ्रांति भी दूर हो जाए। लाइन के साथ वाइन के माने शराब नहीं वरन तरन्नुम। आगे बढें तो रोटी-सोटी। काम-धाम। चाय-चू। पढाई-सढाई। कप-सप। पैन-वैन। कागज-वागज और गाड्डी-साड्डी सरीखे सैकड़ों तरन्नुमी जोड़े हैं जिनका हम रूटीन में उपयोग करते हैं। लाइन-वाइन उन्हीं में से एक। लाइन के लिए तैयार रहने के आहवान के पीछे एक कार्ड आने वाले दिनों प्रचलन में आएगा। मानखे की आधी जिंदगी तो कार्ड बनवाने में बीत रही है-तिस पे एक और कार्ड। शादी के कार्ड से लेकर विजिटिंग कार्ड। सामाजिक उत्सव के कार्ड से लेकर अस्पताल के कार्ड।
आधार कार्ड से लेकर वोटर कार्ड। आईडी कार्ड से लेकर भामाशाह कार्ड। राशन कार्ड से लेकर पंचिंग कार्ड। हर कार्ड का अपना उपयोग। मानखे की उम्र का एक लंबा हिस्सा कार्ड बनवाने की लाइन में खप जाता है। खुद के कार्ड के साथ-साथ परिवार वालों के भी कार्ड। बिन कार्ड सब सून। अब राज्य सरकार भामाशाह कार्ड को विदा कर जन आधार कार्ड का लोकार्पण करने की तैयारी कर रही है। वर्ष 2014 से चल रहा भामाशाह कार्ड 31 मार्च 2020 तक प्रचलन में रहेगा। उसके बाद कार्ड बंदी। उसकी जगह दूसरा कार्ड। जिस भामाशाह कार्ड को बनवाने के लिए दफ्तर से छुटटी ली। घंटों लाइन में लगे, अब उस की विदाई। नए कार्ड के लिए नई मशक्कत। पहले भामाशाह कार्ड पर करोड़ों फूंके अब जन आधार कार्ड पर करोड़ों फूंकने की तैयारी। वाह री सरकार..।