सरपंच इन राजमहल

घटत-बढत होगी तब होगी। घटने का तो सवाल ही नही उठता, बढने के आसार हंडरेड परसेंट पक्के। बढोतरी कहां जाकर थमती है, यह जोड़-गणित करने के बाद पता चलेगा, फिलहाल आंकड़ा ‘नेग का। इस पर भतेरे। सवालों की भरमार। मोटामोटी सवाल ये कि जब सरपंच के पास दौलत का इतना मोटा-तगड़ा पहाड़ तो उसके आगे जहान और भी हैं। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

घटत-बढत-नेग-सवाल-सरपंच और दौलत के पहाड़ के बीच एक हिसाब से देखा जाए तो न कोई तार ना कोई तम्य नजर आता है। नहीं आता तो नहीं आता। जरूरी नहीं कि हरेक के तारों का कनेक्शन नजर आए। अंदरखाने ऐसी कई बातें हैं जो थ्री डी चश्मा लगाने के बाद भी नजर नही आती। ये ऐनक तो कुछ नहीं, दूरबीन लगा के देखोगे तब भी नजर नही आणा है। मिसाल के तौर पे पक्ष-विपक्ष के सदस्यों को ही ले लीजिए। उदाहरण के लिए देग का एक चावल ही बहुत है।

पूरी खिचड़ी देखने की जरूरत नहीं। एक चावल अंगुली-अंगुठे के बीच ‘पींच कर देखने से ही पता चल जाएगा कि दाळ हिंजी-कि-भिंजी। याने कि मंूग की दाल वाली खिचड़ी पक गई या नहीं। जरूरी नही कि यह टोटका खिचड़ी पे आजमाया जाए। नमकीन खिचड़ी-तेहरी और कबूली-पुलाव पर भी यही मंतर चलता है। ऐसा नहीं कि तेहरी के चावल अंगूली-अंगूठे से पींच कर देखे जाते हों और कबूली के चावल ‘पकड़ या ‘संडासी से पींच कर।

पक्ष-विपक्ष के सदस्य सदन में ऐसे लड़ते हैं मानों सदन अखाडा हो। कभी शोरगुल। कभी हंगामा। कभी नारेबाजी। कभी पेपर फाड़ प्रतियोगिता तो कभी तख्तीबाजी। कई बार तो मल्ल युद्ध जैसी स्थिति बन जाती है। ऐसा लगता है मानो बाहर निकलने के बाद का नजारा भयंकर-भयानक होगा। नजारा वाकई में अलग होता है। ना भयंकर ना भयानक बल्कि दोनों पक्ष के माननीय केंटीन में एक साथ बैठकर दही-पराठों का आनंद उठाते हैं। कई माननीय एक गाड़ी में बैठकर निकलते हैं। लोग भले ही इसे हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और कहें। वो इसे भारतीय लोकतंत्र की खूबियों का एक हिस्सा बताने से नहीं चूकते। यही बात घटत-बढत-नेग-आदि-इत्यादि पे लागू होती है। ऊपरी तौर पे जो कुछ नजर आ रहा है वो आंखों का भ्रम और अंदरखाने जो पक रहा है उसकी खुशबू कुछ और ही कहानी बयान करती है।

घटत-बढत और नेग का नगाड़ा भी आस-पास ही बजता-गूंजता सुनाई पड़ जाएगा। घटत-बढत हर क्षेत्र में चलती रही है। आलू आज बीस रूपए तो कल बाईस रूपए किलो। कांग्रेस सरकार के दौरान पेटरोल चालीस रूपए प्रति लीटर था आज एक सौ दस के ऐड़े-नेड़े पहुंच गया। रसोई गैस की टंकी चार सौ रूपए के करीब थी, आज नौ सौ का आंकड़ा छू रही है। लोगों में इस बात की आशंका अभी से घर कर रही है कि देर-सवेर दाम एक हजार पहुंचने तय हैं। शेयर बाजार कभी चढता है-कभी गिरता है। सोना चमका-चांदी गिरी। शक्कर उछली-गोटा नरम हुआ। दाल में उबाल-चावल ठंडे पड़े। इसके माने भावों में तेजी-मंदी का आना।

‘नेग के बारे में हर कोई जानता है। नेग लेने-देने की परंपरा अरसों से चली आ रही है और बरसों तक चलती रहेगी। हर शुभ कार्य में नेग देने-लेने का रिवाज है। यह अगली पार्टी पे डिपेंड है कि नेग कितना दे पर ‘एकी में देणा तय है। हमारे जमाने में एक-पांच और ज्यादा से ज्यादा ग्यारह-इक्कीस रूपए का नेग लगता था। इसकी लिखा-पढी होती थी। आज कम से कम एक सौ एक से शुरू होता है, आगे आप की श्रद्धा। नेग और शुभकार्य का हथलेवा पक्कमपक्का। शादी-ब्याह में जीमण-जीमा-लिफाफा पकड़ाया और जैरामजी की। यहां तक तो ठीक है। बीच में सरपंच का पदार्पण समझ से बाहर। इस में गांव-गुवाड़ी-चौपाल या ओमजी-भोमजी काके-बड्डे का जिक्र होता तो समझ में आता। सरपंच और दौलत का पहाड़ आया तो होजकोज होणा लाजिमी था।

हुआ यूं कि मध्यप्रदेश लोकायुक्त ने रीवा जिले की उजूर तहसील के बैजनाथ पंचायत की महिला सरपंच के यहां छापा मार कर ग्यारह करोड़ की आघोषित संपत्ति का खुलासा किया। दो शानदार बंगले। बंगलों में राजशाही सुविधा। एक में तरणताल। तीस लग्जरी गाडि़एं। जेसीबीज। आभूषण के ढेर। जमीनों की रजिस्ट्रियां। कुल कीमत अंदाजन ग्यारह करोड़। जाहिर है कि दौलत का यह पहाड़ खून-पसीने की कमाई से तो खड़ा हुआ नहीं। हम-आप मकान की टीप-टाप नही करवा सकते और वहां सरपंच इन राज महल। एक बात और एमपी में लोकायुक्त ने जब-जब-जहां-जहां छापे डाले, करोड़ों से कम बाहर नही आए। बाबू किरोडी। अफसर किरोडी। प्राचार्य किरोडी। डाक्टर किरोडी और अब सरपंच किरोडी। जब सरपंच के पास दौहत का पहाड़ है तो अन्य जन प्रतिनिधियों के पास कितना होगा। इस सवाल के जवाब का इंतजार है।

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