
एक जमाने में वो नारा खूब चावा हुआ। वो इमरजेंसी का समय था। आपातकाल में तो खैर हाथ-पांव-मुंह-टांगे सब बांध दिए गए थे। अच्छों भलों को अंदर टेक दिया था। इमरजेंसी हटने के बाद हुए लोकसभा चुनावों के दौरान वो नारा जम के चला। दिल्ली से लेकर डिगाडी तक। कश्मीर से लेकर कबूतरों का चौक तक। हर संसदीय क्षेत्र में यउसी की गूंज-‘ कांगरेसी ने क्या किया।
उस के बाद जो जवाबी लहर उठती वो आज भी हमारे बखत के लोगों के कानों में गूज रही है। हमने उस में तनिक भी बदलाव कर दिया। मामूली परिवर्तन। ‘कांगरेस की जगह ‘कांगरेसी ने क्या किया कर दिया, तो नारा हो गया-‘कांगरेसी ने क्या किया। शहर की एक हथाई परआज उसी के चर्चे हो रहे थे। कई बंदों को आज भी पता नहीं कि देश में इमरजेंसी लगी थी या नहीं।
लगी थी तो कब लगी थी-इसके बारे में भी उनको कुछ पता नहीं। आपात स्थिति किस ने थोपी थी और उस दौरान क्या-क्या हुआ था, कई लोगों को इस की भी खबर नहीं। बात करीब 45 साल पुरानी है। देश और देशवासियों ने करीब दो-पौने दो साल तक आपात स्थिति भुगती। जाहिर है कि आज के कई युवाओं के माता-पिता का उस बखत विवाह भी नहीं हुआ होगा।
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हो सकता है आज के खेले खाए उस समय स्कूलों में बाराखड़ी पढ रहे हों। कुछ की उमर खेलने की। कई स्कूली तो कई कॉलेज में पढ रहे होंगे। जिन्हें समझ थी उन्हें वो दिन याद है और जिनका बचपना था उन्होंने आगे चल कर जानकारी प्राप्त कर ली। उस समय जो बच्चे थे आज उनकी उमर 45-50 लाख। जो किशोरावस्था में थे वो जीवन की दूसरी पारी में और जो युवावस्था में थे वो तीसरी पारी में टुक-टुक कर रहे हैं।
सब हरि शरणम होते गए
कई लोग तो रामप्यारे हो गए। भतेरे ऐसे बंदे हैं जो आपातकाल के समय दूसरी-तीसरी पारी खेल रहे थे। धीरे-धीरे कर के हरि शरणम होते गए। इक्के-दुक्के बचे हों तो कह नहीं सकते वरना ज्यादातर लोग सिधार गए। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वर्ष 1975 में देश में आपातकाल लागू किया था। उस दौरान लोगों के सारे अधिकार ‘सीज कर दिए गए। जो सरकार की खिलाफत करे उसे जेल में टेक दिया जाता।
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प्रशासन मानो शहंशाह
जो सरकार के विरूद्ध बोले-जो सरकार के विरूद्ध लिखे वो अंदर। पुलिस और प्रशासन मानो शहंशाह बन गए। पुलिस वाले आए दिन निकलते। थोड़ी सी बदमाशी करने पर आधे बाल और एक मूंछ कटवा कर बाजार में फेरी लगवाते। किसी पर पाबंदी। कोई तडीपार। कई लोग नजरबंद। विपक्ष के नेते जेलों में। कई नेते-कार्यकर्ता भेष बदल के घूमते। जबरिया नसबंदी करने का जुनून भी सवार।
नागरिक अधिकारों का इतना जोरदार हनन
मजाल पडी जो कोई मुंह खोल दे। अखबारों पर प्रतिबंध। टीवी-रेडियों पर सरकारी कब्जा। कुल जमा नागरिक अधिकारों का इतना जोरदार हनन किया गया कि लोग आज भी सिहर उठते हैं। कई नेतों को इतना ठोका उन पर इतने अत्याचार हुए कि 30 किताबें लिखीज गई। सरकारी आतंक के खिलाफ लोकनायक जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में सारे विपक्षी दल एकजुट हुए। जनता पार्टी का गठन हुआ। आंदोलन चला।
कांगरेस की करारी हार हुई
पूरा देश एक तरफ-दूसरी ओर कांगरेस। वर्ष 1977 में हुए चुनाव में कांगरेस की करारी हार हुई। मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। खुद इंदिरा गांधी को हार का मुंह देखना पड़ा था। चौधरी चरणसिंह के साथी रहे राज नारायण ने उन्हें हराया था। उस समय के चुनावों में नारा फूटा था-कांग्रेरस ने क्या किया..इसका जवाब कई लोगों को पता है। हजम उन से कह देंगे जो जानना चाहते है वो उन्हें बता देंगे। हम हिंट दे सकते है।
भुगतभोगी उस खाली स्थान को भर देंगे
खाली जगर रख सकते है। भुगतभोगी उस खाली स्थान को भर देंगे। ‘कांगरेस ने क्या किया, देश को किया। इस नारे को हथाईबाजों ने एकल रूप में बदल दिया। नारे में था कांगरेस-हमने बना दिया कांगरेसी। कांगरेस माने संगठन और कांगरेसी माने संगठन का चंगु-मंगु। कई लोग कांगरेस को संगठन कहना उचित नहीं मानते। उनकी नजर में कांगरेस गांधी-नेहरू परिवार की जेबी संस्थान बन के रह गई है।
कांगरेस माने सोनिया-राहुल-प्रियंका।
कांगरेस माने सोनिया-राहुल-प्रियंका। पार्टी क्या कर रही है, वो जाने और उसका काम जाने। पार्टी ने क्या किया-दिल्ली में दिख गया। मगर हथाईबाज जिस करने की बात कर रहे हैं उसके तार कांगरेसी से जुडे हुए। ज्यादा से ज्यादा यूं कह लें-‘कांगरेसी के तार कांगरेसी से जुडे हुऐ और नारे का जिक्र करें तो वो बदल के हो गया-‘कांगरेसी ने क्या किया। इसका जवाब मध्यप्रदेश से आई हवा ने दिया। वहां कांगरेसी ने जो किया उसकी धमक संगठन-सरकार और मीडिया में गूंज रही है।
कांगरेसी भाई ने कांगरेसी भाई को भी नही बख्शा
कांगरेसी भाई ने कांगरेसी भाई को भी नही बख्शा कांगरेसी ने कांगरेसी के घर में डाका डाल दिया। हुआ यूं कि इंदौर का एक कांगरेसी नेता अपने दल भाई की बीवी को भगा ले गया। मामला इंदौर के भंवर कुआ थाना क्षेत्र का है। पीडि़त ने इस की शिकायत थाने में की पर कार्रवाई नही हुई। इस पर वह डीआईजी के पास पहुंचा और अपनी दास्तान बयान की। पीडि़त ने अपने नेतों को भी अपने संगठन भाई की करतूत से अवगत करवा दिया है।
अपने संगठन भाई को भी नही,
हमारी हमदर्दी पीडित के साथ। उस कांगरेसी पे लानत, जिसने अपने संगठन भाई को भी नही, छोड़ा। कांगरेसी-कांगरेसी की पत्नी को वापस कांगरेसी के सुपुर्द करेगा या नहीं? कांगरेसी की बीवी वापस आएगी या नहीं। वह उस के साथ रहेगी या नहीं यह बाद की बात। फिर नारा उछल रहा है-‘कांगरेसी ने क्या किया।