
जोधपुर । डॉ एसआर राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय के मौलिक सिद्धांत विभाग की ओर से राष्ट्रीय वेबीनार इफेक्ट ऑफ स्वभावोपरमवाद इन लॉकडाउन पीरियड विषय पर आयोजित की गई।
वेबीनार में डॉ एसआर राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति अभिमन्यु कुमार ने कहा कि लोकडाउन में अनायास ही हजारों वर्षों पूर्व चरक संहिता में लिखित सिद्धांत स्वभावोपरमवाद की पालना स्वत: ही हो गई एवं उसके सुखद परिणाम भी सामने आए हैं, जैसे की गंगा का निर्मल हो जाना।
सैकड़ों किलोमीटर दूर स्थित पहाडिय़ां, जो बिल्कुल नजर नहीं आती थी, साफ नजर आने लगी। इन सब से आयुर्वेद के सिद्धांत साक्षात चरितार्थ होते नजर आए। पूर्व कुलपति प्रोफेसर बनवारी लाल गौड़ ने कहा कि गंगा का पानी तो पवित्र ही था, हमने विकार एवं प्रदूषण करके जबरन उसे दूषित कर दिया।
आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति अभिमन्यु कुमार ने कहा कि लोकडाउन में अनायास ही हजारों वर्षों पूर्व चरक संहिता में लिखित सिद्धांत स्वभावोपरमवाद की पालना स्वत: ही हो गई
स्वभावोपरमवाद का सिद्धांत यही बताता है कि विकारों के कारण प्रकृति का दूषण होता है, जो कि हमारे रोगों का कारण बनता है। यदि उन विकारों को दूर कर लिया जावे तो प्रकृति का प्राकृत स्वरूप आरोग्य स्वभाव से ही बन जाएगा, उसे किसी दूसरे कारण की अपेक्षा नहीं है।
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श्री कृष्णा आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बलदेव धीमान् ने कहा कि कारखाने बंद होने के कारण वायु प्रदूषण कम हो गया। लोगों में बीमारियां तुलनात्मक कम हुईं। यह स्वभावोपरमवाद सिद्धांत की पुष्टि है कि प्रकृति अपने स्वाभाविक स्वरूप में ही रहती है, जब तक कि उसे विकृत ना किया जाए।
यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ आयुर्वेद के प्राचार्य प्रोफेसर गोविंद सहाय शुक्ला, डीवाई पाटिल डी ड विश्वविद्यालय आयुर्वेद महाविद्यालय के डीन प्रोफेसर महेश हारीत और अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान नई दिल्ली के प्रोफेसर महेश व्यास व वेबीनार के समन्वयक वैद्य मनोज कुमार शर्मा ने भी विचार रखें।
आयोजन सचिव डॉ राकेश शर्मा, मु य समन्वयक डॉ देवेंद्र चाहर व सह समन्वयक डॉ मोनिका वर्मा रहे। अंत में डॉक्टर देवेंद्र चाहर ने आभार जताया।