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फाइल ऑन व्हील

सवाल ये नही कि वैसा क्यूं होता है। सवाल ये नही कि यहां और वहां में इतना फरक क्यूं है। भाई, ये तो स्वाभाविक...

हमले पर हंसी

सुना तो हंसी आई। बात ही ऐसी। मसला ही कुछ ऐसा। बहुत कोशिश की, कि हंसी रूक जाए। मगर नहीं रूकी। पहले तो आजू-बाजू...

धाणा-मेथी में फरक

उनने पूछा। डंके की चोट पूछा। सार्वजनिक तौर पे पूछा। सब के सामने पूछा। जरूरी नहीं कि उस पूछापूछी का कोई सकारात्मक परिणाम सामने...

बाड़ खाए-खेत हमार

शीर्षक का राजस्थानीकरण किया जाए तो भी अर्थ नही बदलना है। बोली-भाषा और तर्ज-तरन्नुम में भले ही बदलाव दिख जाए, मगर मायने नही बदलने।...

अंटी लेकर शपथ

नीचे से लेकर ऊपर तक और ऊपर से लेकर नीचे तक जो कुछ हो रहा है, उसे देखते हुए कभी-कभार मन में यह विचार...

दो बात की एक बात

शीर्षक की तर्ज किस कहावत पर आधारित है, इस संबंध में गांगत गाणे की जरूरत नहीं। जहां तक हमारा अंदाज है, इस बारे में...

हमारे चालीस लाख तो गए नीं…

भाए की बोली में कहे तो चालीस लाख गिया..। शहरिया कहेगा-'खाया-पीया कुछ नहीं..गिलास फोड़ी सो अलग..। हम-आप से पूछें तो जवाब मिलेगा-...

गली-गली में पार्षद

हम खूब-हमारे दो की घोषणा होते ही नक्शा सामने आ गया था। पूतों के पांव उसी बखत पालने में दिख गए थे, पर पालना...

सुबह का आलम क्या होगा !

शीर्षक को पूरा करें तो एक गीत के सुर निकलेंगे। गाना पूरा तो याद नहीं मगर इतना जरूर याद है कि 'तो के आगे...

पहले रहते यूं तो कफ्र्यू लगता क्यूं

आखिर वही हुआ, जिसकी आशंका पहले ही जता दी गई थी। प्यार से कहा था। भाइबीरे से समझाया था। चेताया था। जगाया था। सावचेत...