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8948. सकळ सुधारै काम

ज्यां घट बहुळी बुध बसै, रीत नीत परिणाम। घड़ भांजै, भांजै पडै़, संकळ सुधारै काम।। जिनके भीतर रीति-नीति के परिणाम वाळी बुद्धि बहुतायत से रहती...

8947. अकल बिना रा आदमी

नहिं समझै मानैं नहीं, जिणरो कोइ न जोर। अकल बिना रा आदमी, ढबै किसी विध ढोर।। जो नहीं समझते हैं और नहीं मानते हैं...

8946. चिंता को के काम

राखै जिण विधि राम, ता विधि ही रहणो भलो। चिंता को के काम, रहो मौज में रमणियां।। जिस तरह भगवान हमें रखना चाहते हैं,...

8945. जितरी हिम्मत होय

हिम्मत जितरी होय, काम उतोही कीजियै। जितरी चादर होय, पांव पसारो पनयसी।। मनुष्य को जितनी हिम्मत हो, उतना ही काम करना चाहिए। जितनी लंबी...

8944. संपत सूं सब की हुवै

संपत सूं सब की हुवै, काज करो जो कोय। बिन संपत की ना हुवै, लोग हंसाई होय।। एकता से सब कुछ संभव होता है,...

8943. म्हैं हूं संख डफोळ

वाही संखी सोवणी, म्हैं हूं संख डफोळ। देण-लेण नै कुछ नहीं,हामळ भरूं करोड़।। वह तो छोटी सी सुंदर शंखी थी, लेकिन मैं ढपोलशंख हूं।...

8942. दगा किसी का नहिं सगा

दगा किसी का नहिं लगा, कर देखो रे भाई।चिटठी बामण ऊतरी, नाक कटायो नाई।। दगा किसी का भी सगा नहीं हुआ करता है। यदि किसी...

8941. दुरजन जण बब्बलू वन

दुरजण जण बब्बूल वन, जे सींचै अभियेण। तोइस कांटा बींधणा, जाती तणै गुणेण।। जो दुर्जन व्यक्ति होता है, यदि उस अमृत से भी सींचा जाए,...

8940. गइ पत कबहुं न आय

धन्न गयो फिर आ मिलै, त्रिया गयी मिल जाय। भोम गयी फिर सूं मिलै, गइ पत कबहूं आय।। मनुष्य को गया हुआ धन फिर आ...

8939. वचन न लोपै कोय

पदमनाभ पंडित भणै, भावी चंचळ होय। सज्जन जे अंगी करै, वचन न लोपै कोय।। पंडित पदनाभ का कहना है कि भावी यानी होनहार तो चंचल...